मनीषा शर्मा। राजस्थान का भरतपुर एक बार फिर सुर्खियों में है, जहां पूर्व राजघराने के मोती महल में शाही झंडा लगाने को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। यह मामला केवल झंडे का नहीं बल्कि पूर्व राजपरिवार की आंतरिक खींचतान और जाट समाज में गहराते बंटवारे से भी जुड़ा हुआ है। इस विवाद ने न केवल स्थानीय राजनीति को गरमाया है बल्कि ऐतिहासिक धरोहर मोती महल के चारों ओर तनाव का माहौल पैदा कर दिया है।
विवाद की शुरुआत: दो झंडे और दो पक्ष
मोती महल पर झंडा लगाने का विवाद दो प्रतीकों को लेकर है। पहला झंडा “पचरंगा” कहलाता है, जिसमें हरे, नारंगी, बैंगनी, पीले और लाल रंग शामिल हैं। यह झंडा रियासतकालीन प्रतीक माना जाता है। दूसरा झंडा सरसों रंग की पृष्ठभूमि पर भगवान हनुमान की तस्वीर और लाल-नीले-भूरे रंग के चौकोर डिज़ाइन वाला है।
लंबे समय तक मोती महल पर भगवान हनुमान वाला झंडा फहराया जाता रहा, लेकिन करीब एक महीने पहले इसकी जगह पचरंगा झंडा फहरा दिया गया। इसी बदलाव ने विवाद को जन्म दिया। जाट समुदाय के एक बड़े हिस्से ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि शाही परंपरा से छेड़छाड़ की जा रही है। इसके जवाब में दूसरी तरफ के लोग पचरंगा झंडे को वैध और ऐतिहासिक बताते हुए उसका समर्थन कर रहे हैं।
पंचायत से टकराव तक
जाट समाज के नेताओं ने इस विवाद पर कई जगह पंचायतें कीं और 21 सितंबर को मोती महल पर जुटने का आह्वान किया। प्रशासन ने हालात बिगड़ने की आशंका जताई और महल पर राष्ट्रीय तिरंगा फहरा दिया। हालांकि विवाद शांत नहीं हुआ। रविवार रात को तीन लोगों — मनुदेव सीनसी, भगत सिंह और दौलत फौजदार — ने मोती महल के पिछले दरवाज़े को तोड़कर अंदर घुसपैठ की और गार्ड रूम पर भगवान हनुमान वाला झंडा फहरा दिया। इसके बाद प्रशासन ने महल के चारों ओर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया और हालात पर करीबी निगरानी रखी जा रही है।
पूर्व राजपरिवार की भूमिका और तनाव
यह विवाद केवल धार्मिक या सांस्कृतिक प्रतीकों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे पूर्व राजपरिवार का आंतरिक संपत्ति संघर्ष भी गहराई से जुड़ा हुआ है। भरतपुर के पूर्व मंत्री और विधायक रहे विश्वेंद्र सिंह और उनके पुत्र अनिरुद्ध सिंह के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। विश्वेंद्र सिंह ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि उन्हें अवैध रूप से महल से निकाल दिया गया है और वह अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग कर रहे हैं।
भगवान हनुमान वाले झंडे का समर्थन करने वालों को विश्वेंद्र सिंह का परोक्ष समर्थन मिलता दिखाई दे रहा है। उन्होंने स्पीकर फोन के जरिए समुदाय से संवाद कर कहा कि वह उचित समय पर मोती महल आकर “मूल झंडे” को उसकी सही जगह पर पुनः स्थापित करेंगे। इसके अलावा उन्होंने महल में घुसपैठ करने वाले तीन लोगों पर दर्ज एफआईआर की भी आलोचना की।
प्रशासन की भूमिका और तिरंगा का फैसला
झंडा विवाद को देखते हुए प्रशासन ने पहले ही अनिरुद्ध सिंह को सलाह दी थी कि किसी भी तरह के धार्मिक या रियासती प्रतीकों के बजाय राष्ट्रीय ध्वज फहराना बेहतर होगा। विश्वेंद्र सिंह ने भी समुदाय से अपील की थी कि वे मोती महल के बाहर प्रदर्शन न करें। लेकिन स्थिति धीरे-धीरे नियंत्रण से बाहर होती चली गई और अब यह मुद्दा पूरे भरतपुर जिले में तनाव का कारण बन गया है।
ऐतिहासिक महत्व का केंद्र बना मोती महल
मोती महल केवल भरतपुर राजघराने की शान ही नहीं बल्कि ऐतिहासिक धरोहर भी है। 1916 में निर्मित यह महल ब्रिटिश, मुगल और राजपूत स्थापत्य शैली का अद्भुत मिश्रण है। यही वजह है कि यह महल पर्यटकों और स्थानीय लोगों के बीच विशेष आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन वर्तमान विवाद ने इसकी ऐतिहासिक पहचान को राजनीतिक और सामाजिक खींचतान में धुंधला कर दिया है।
विवाद का असर: जाट समाज में विभाजन
झंडे के इस विवाद ने जाट समाज में गहरी दरार पैदा कर दी है। एक वर्ग पचरंगा झंडे को भरतपुर रियासत का असली प्रतीक मानता है, जबकि दूसरा वर्ग भगवान हनुमान वाले झंडे को राजपरिवार और समुदाय की आस्था से जोड़कर देखता है। पंचायतों और विरोध प्रदर्शनों ने इस विभाजन को और स्पष्ट कर दिया है।


