शोभना शर्मा। राजस्थान की राजनीति में मिर्धा परिवार हमेशा से ही सत्ता और सियासी संघर्ष का पर्याय माना जाता रहा है। मारवाड़ की जाट राजनीति में इस परिवार का प्रभाव गहरा रहा है। कभी कांग्रेस को मजबूत करने वाले नाथूराम मिर्धा का परिवार आज कांग्रेस और भाजपा के बीच अपनी सियासी पकड़ बनाए रखने के लिए निरंतर जद्दोजहद करता दिखाई देता है। ताजा घटनाक्रम में कुचेरा नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष तेजपाल मिर्धा ने भाजपा को अलविदा कहते हुए कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। उन्होंने अपने 500 से अधिक समर्थकों के साथ यह कदम उठाया, जिससे नागौर की राजनीति में नया समीकरण बनने लगा है।
भाजपा में क्यों गए थे तेजपाल मिर्धा?
तेजपाल मिर्धा कभी कांग्रेस के उभरते चेहरे माने जाते थे। लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान उनका हनुमान बेनीवाल से गहरा मतभेद हो गया। उस समय कांग्रेस ने नागौर लोकसभा सीट से बेनीवाल को गठबंधन प्रत्याशी बनाया था, जबकि तेजपाल और उनका गुट इसका विरोध कर रहा था। यही कारण था कि उन्होंने बेनीवाल के खिलाफ प्रचार किया और भाजपा उम्मीदवार ज्योति मिर्धा का समर्थन किया। इस बगावत के चलते कांग्रेस ने तेजपाल मिर्धा समेत तीन नेताओं को छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। निष्कासन के बाद तेजपाल ने अपने समर्थकों के साथ भाजपा का दामन थामा और वहां अपनी सियासी पारी शुरू की।
कांग्रेस में क्यों लौट आए तेजपाल?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नागौर में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही अपने समीकरण साधने की कोशिश कर रहे हैं। तेजपाल मिर्धा, ज्योति मिर्धा के साथ ज्यादा दिन तक तालमेल नहीं बैठा पाए। परिवार के भीतर की खींचतान और भाजपा में सीमित राजनीतिक अवसरों ने उन्हें फिर से कांग्रेस की ओर लौटने को मजबूर कर दिया। दूसरी ओर, हनुमान बेनीवाल भी अब कांग्रेस गठबंधन से अलग हो चुके हैं, जिससे तेजपाल की राह और आसान हो गई। उनके लिए कांग्रेस में वापसी का माहौल बन गया और पार्टी ने भी जाट समुदाय में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए उन्हें जगह दी।
कांग्रेस को क्या फायदा होगा?
नागौर जाट राजनीति का गढ़ माना जाता है और यहां कांग्रेस फिलहाल कमजोर नजर आ रही थी। पिछले कुछ सालों में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता या तो भाजपा में शामिल हो गए या पार्टी में हाशिए पर चले गए। ऐसे हालात में तेजपाल मिर्धा की वापसी कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर सकती है। जाट समुदाय में उनकी पकड़ अच्छी है और स्थानीय स्तर पर वे एक मजबूत कार्यकर्ता नेटवर्क रखते हैं। जानकारों का कहना है कि उनकी एंट्री से कांग्रेस को नागौर में नई ताकत मिलेगी और पार्टी अपने वोट बैंक को फिर से साधने में सफल हो सकती है।
नागौर की सियासत और मिर्धा परिवार की भूमिका
नागौर की राजनीति लंबे समय से मिर्धा परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही है। नाथूराम मिर्धा के बाद उनके वंशजों ने कांग्रेस में रहते हुए प्रदेश और केंद्र की राजनीति में अहम भूमिका निभाई। हालांकि, समय के साथ परिवार के अलग-अलग धड़े कांग्रेस और भाजपा में बंट गए। 2019 के लोकसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल ने कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को हराकर बड़ा उलटफेर किया था। 2024 में कांग्रेस-आरएलपी गठबंधन के तहत बेनीवाल को टिकट दिया गया, जिससे मिर्धा परिवार में खलबली मच गई और तेजपाल ने खुलकर विरोध किया। यही टकराव उन्हें कांग्रेस से बाहर और भाजपा के करीब ले गया। लेकिन अब वे दोबारा कांग्रेस के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
भविष्य का समीकरण
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि तेजपाल मिर्धा की वापसी से कांग्रेस को तो फायदा होगा, लेकिन भाजपा और आरएलपी के लिए यह एक झटका साबित हो सकता है। नागौर की जाट राजनीति में जो खींचतान पहले से मौजूद है, उसमें यह कदम नए समीकरण बना सकता है। कांग्रेस आने वाले चुनावों में मिर्धा परिवार के प्रभाव का लाभ उठाना चाहेगी। वहीं, भाजपा को अब अपने संगठन को और मजबूत करना होगा ताकि मिर्धा फैक्टर से होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सके।


