शोभना शर्मा। राजस्थान की भजनलाल शर्मा सरकार ने राज्य के ग्रामीण इलाकों में स्थित महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों को लेकर एक बड़ा और दूरदर्शी निर्णय लिया है। यह फैसला बच्चों की भाषा संबंधी समस्याओं और स्कूलों में लगातार घटते नामांकन को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। अब इन स्कूलों में बच्चों को केवल अंग्रेजी माध्यम तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि उन्हें हिंदी माध्यम में पढ़ने का विकल्प भी प्रदान किया जाएगा। यह फैसला शिक्षा व्यवस्था में लचीलापन लाने और छात्रों की बुनियादी समझ को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से लिया गया है।
पृष्ठभूमि: गहलोत सरकार का अंग्रेजी माध्यम स्कूलों का निर्णय
पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार ने अपने कार्यकाल में एक महत्वाकांक्षी योजना के तहत ग्राम पंचायत स्तर पर संचालित हिंदी माध्यम स्कूलों को अंग्रेजी माध्यम में बदलकर ‘महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूल’ के रूप में परिवर्तित कर दिया था। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों को अंग्रेजी शिक्षा का लाभ देना था। लेकिन हकीकत में यह प्रयोग अपेक्षित सफलता नहीं दिला सका।
कई ग्रामीण विद्यार्थियों के लिए अंग्रेजी भाषा की पढ़ाई किसी चुनौती से कम नहीं थी। भाषा को समझ पाने में कठिनाई, पढ़ाई में पिछड़ने का डर, और शिक्षकों की पर्याप्त उपलब्धता न होने के कारण अभिभावकों ने अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेजने से परहेज करना शुरू कर दिया। नतीजा यह हुआ कि कई स्कूलों में नामांकन घटकर शून्य हो गया।
भजनलाल सरकार का सुधारात्मक निर्णय
इन समस्याओं की गंभीरता को समझते हुए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की सरकार ने इन स्कूलों को बंद करने के बजाय उनमें सुधार करने का रास्ता चुना। अब इन स्कूलों में विद्यार्थियों को अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी माध्यम में पढ़ने की सुविधा भी दी जाएगी। यानी यदि कोई छात्र अंग्रेजी माध्यम से असहज है तो वह अब उसी स्कूल में हिंदी माध्यम से भी शिक्षा ग्रहण कर सकता है।
स्कूल शिक्षा विभाग के शासन सचिव कृष्ण कुणाल द्वारा इस निर्णय को लेकर आदेश जारी कर दिए गए हैं। यह फैसला एक मंत्रीमंडलीय समिति की सिफारिशों के आधार पर लिया गया है, जिसकी अध्यक्षता उपमुख्यमंत्री प्रेमचंद बैरवा कर रहे हैं।
झालावाड़ जिले से शुरू हुई पहल
इस नई व्यवस्था की शुरुआत झालावाड़ जिले से की जा रही है, जहां कुल 26 महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूल संचालित हैं। इनमें से कई स्कूलों में नामांकन घटकर बेहद कम या शून्य रह गया है, खासकर पिड़ावा क्षेत्र के स्कूलों में। इनमें से कुछ स्कूल तो बिना भवन के भी चल रहे हैं। पूरे प्रदेश में ऐसे 3737 स्कूल हैं, जिनकी स्थिति समान रूप से चिंताजनक है।
शिक्षकों की नियुक्ति और संसाधन प्रबंधन
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि जिन स्कूलों में हिंदी माध्यम के लिए विषयाध्यापक उपलब्ध नहीं होंगे, वहां आसपास के स्कूलों से शिक्षकों को ड्यूटी पर लगाया जाएगा। ऐसे शिक्षकों को अतिरिक्त मानदेय देने का भी प्रावधान किया गया है। यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करेगी कि विद्यार्थियों को विषयों की पढ़ाई में किसी प्रकार की बाधा न आए और उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।
स्कूल खोलने या बंद करने का अधिकार अब उच्चस्तरीय समिति के पास
भविष्य में किसी स्कूल को बंद करने, नया स्कूल खोलने या किसी स्कूल को क्रमोन्नत करने का अधिकार अब केवल स्थानीय जनप्रतिनिधियों तक सीमित नहीं रहेगा। इसके लिए राज्य स्तर पर एक उच्चस्तरीय समिति गठित की गई है, जिसमें पक्ष और विपक्ष के जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ अभिभावक और विभागीय अधिकारी भी शामिल होंगे। इस समिति की सहमति के बिना अब कोई भी स्कूल बंद नहीं किया जा सकेगा। यदि विपक्ष के किसी प्रतिनिधि ने आपत्ति जताई, तो संबंधित प्रस्ताव को खारिज भी किया जा सकता है।
प्रवेश प्रक्रिया और अभिभावकों की प्रतिक्रिया
फिलहाल महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम में ही प्रवेश प्रक्रिया जारी है। झालावाड़ के माध्यमिक शिक्षा विभाग के जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) हेमराज पारेता ने जानकारी दी कि हिंदी माध्यम की पढ़ाई का निर्णय जिला स्तर तक पहुंचने के बाद ही लागू किया जाएगा। हालांकि यह फैसला ग्रामीण अभिभावकों के लिए बड़ी राहत बनकर सामने आया है, जो अब अपने बच्चों को पास के ही स्कूल में अपनी मातृभाषा में पढ़ा सकेंगे।
नई व्यवस्था से उम्मीद
इस नई व्यवस्था से यह उम्मीद की जा रही है कि स्कूलों में नामांकन में दोबारा बढ़ोतरी होगी और बच्चों को पढ़ाई में आसानी होगी। साथ ही, यह फैसला शिक्षा के लोकतांत्रिक स्वरूप को बनाए रखते हुए, हर वर्ग और क्षेत्र के बच्चों को उपयुक्त माध्यम में शिक्षा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।