शोभना शर्मा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधा हमला बोला। उन्होंने अमेरिका और पाकिस्तान के साथ जारी कूटनीतिक गतिविधियों पर तीखे सवाल खड़े करते हुए कहा कि भारत सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को किस अधिकार से कश्मीर और सीजफायर जैसे गंभीर मुद्दों पर बोलने दिया?
दिल्ली स्थित एआईसीसी दफ्तर में मीडिया से बात करते हुए गहलोत ने कहा कि हाल में हुए भारत-पाक संघर्ष और उसके बाद अचानक हुए सीजफायर से सरकार की नैतिक साख (मोरल अथॉरिटी) पर सवाल खड़ा हो गया है। उन्होंने ट्रंप के उस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था कि ‘हमने रात भर मेहनत करके भारत-पाक के बीच युद्ध रोका।’
गहलोत ने पूछा- ट्रंप कौन होते हैं पंचायती करने वाले?
गहलोत ने कहा कि यह देश जानना चाहता है कि ट्रंप को किसने अधिकार दिया कि वे भारत और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता या सीजफायर का ठेका लें? उन्होंने सवाल उठाया, “ट्रंप खुद को किस हैसियत से ठेकेदार बना बैठे हैं? क्या भारत सरकार की चुप्पी उनके हौसले बढ़ा रही है? उन्होंने कौनसी मेहनत की और किनके साथ मिलकर की, यह बात देश के सामने साफ होनी चाहिए।”
उन्होंने अमेरिकी हस्तक्षेप को भारतीय संप्रभुता के लिए खतरनाक करार दिया। “ट्रंप कहते हैं कि कश्मीर का हल वह करवा सकते हैं। वह किस आधार पर कह रहे हैं कि उन्होंने संघर्षविराम करवाया? यह सब बहुत ही चिंताजनक है,” गहलोत ने कहा।
शिमला समझौते का हवाला देते हुए दी सरकार को नसीहत
पूर्व मुख्यमंत्री ने 1971 के युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुए शिमला समझौते का हवाला देते हुए कहा कि इस समझौते के तहत यह तय हुआ था कि कश्मीर मुद्दा सिर्फ द्विपक्षीय बातचीत से हल होगा, और इसमें न संयुक्त राष्ट्र और न ही कोई तीसरा पक्ष हस्तक्षेप करेगा।
उन्होंने कहा, “शिमला समझौते में साफ लिखा है कि कश्मीर पर कोई तीसरा पक्ष पंचायत नहीं करेगा। तो फिर ट्रंप को यह बात क्यों नहीं समझाई गई? विदेश मंत्रालय को तत्काल इस पर सफाई देनी चाहिए थी, जो नहीं दी गई। प्रधानमंत्री को खुद सामने आकर स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी।”
‘मोदी सरकार डैमेज कंट्रोल करने में नाकाम रही’
गहलोत ने कहा कि देश गंभीर सुरक्षा संकट से जूझ रहा था, और ऐसे समय में प्रधानमंत्री को देश को संबोधित कर यह स्पष्ट करना चाहिए था कि सीजफायर क्यों किया गया और ट्रंप को बयान देने का अधिकार किसने दिया।
“प्रधानमंत्री को डैमेज कंट्रोल करना था, लेकिन वे चूक गए। इससे सरकार की छवि को भारी नुकसान हुआ है। इंदिरा गांधी ने 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए थे, और आज की सरकार ने सीजफायर करवा दिया,” गहलोत ने तीखा हमला बोला।
‘मैंने अस्थायी सीजफायर का नाम भी नहीं सुना’
अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान पर भी तंज कसा जिसमें उन्होंने कहा था कि ऑपरेशन सिंदूर ‘अस्थायी रूप से स्थगित’ किया गया है। गहलोत ने कहा, “मैंने आज तक ऐसा नहीं सुना कि अस्थायी सीजफायर होते हैं। सीजफायर सोच-समझकर होता है, न कि जल्दबाजी में। यह दिखाता है कि सरकार बिना ठोस योजना के कदम उठा रही है।”
पहलगाम की घटना पर जताया शोक, सेना की तारीफ
गहलोत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर शोक व्यक्त किया, जिसमें 26 निर्दोष नागरिकों की जान गई थी। उन्होंने भारतीय सेना की कार्रवाई की सराहना करते हुए कहा कि सेना ने आतंकियों के ठिकानों पर जोरदार हमला किया और करीब 100 आतंकियों को ढेर किया।
“हमारी सेना ने हमेशा देश का सिर ऊंचा किया है। आजादी के बाद से भारतीय फौजों का इतिहास गौरवशाली रहा है। लेकिन सरकार का नेतृत्व इन सफलताओं को रणनीतिक बढ़त में बदलने में नाकाम रहा है,” गहलोत ने कहा।
अमेरिका के पुराने हस्तक्षेपों का दिया उदाहरण
गहलोत ने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि अमेरिका पहले भी भारत पर दबाव डालने की कोशिश कर चुका है, लेकिन तब की सरकारों ने उसकी परवाह नहीं की।
उन्होंने कहा, “1961 में जब गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया था, तब भी अमेरिका ने दबाव डाला था। सिक्किम के भारत में विलय पर भी अमेरिका नाराज था। 1971 में अमेरिका ने अपना सातवां बेड़ा रवाना कर दिया था, लेकिन इंदिरा गांधी ने परवाह नहीं की और पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए।”
पड़ोसी देशों की चुप्पी पर भी उठाया सवाल
गहलोत ने तुर्की और अजरबैजान के पाकिस्तान के पक्ष में खड़े होने और भारत के साथ किसी भी देश के न खड़े होने पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, “जब प्रधानमंत्री मोदी दुनिया भर में नेताओं को गले लगा रहे थे, तब राहुल गांधी चेताते रहे कि यह दोस्ती एकतरफा है। आज वह बात सच साबित हो रही है।”