शोभना शर्मा। राजस्थान में बिजली संकट की संभावनाएं एक बार फिर मंडराने लगी हैं। झालावाड़ जिले के कालीसिंध थर्मल पावर प्रोजेक्ट की एक यूनिट को 40 दिनों के लिए शटडाउन पर रखा गया है। इस यूनिट के बंद रहने से राज्य को प्रतिदिन 1.44 लाख यूनिट बिजली की आपूर्ति से हाथ धोना पड़ेगा। प्रशासनिक स्तर पर इसे एक नियमित तकनीकी प्रक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मानसूनी बारिश का दौर थमा, तो यह राज्य की ऊर्जा आपूर्ति पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
1200 मेगावाट क्षमता वाला कालीसिंध थर्मल प्लांट
झालावाड़ जिले में स्थित कालीसिंध थर्मल पावर प्लांट राजस्थान की बिजली आपूर्ति प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इस पावर प्रोजेक्ट में दो इकाइयां कार्यरत हैं, जिनमें प्रत्येक की क्षमता 600 मेगावाट है। दोनों इकाइयों से संयुक्त रूप से 2.88 लाख यूनिट बिजली प्रतिदिन राष्ट्रीय ग्रिड को सप्लाई की जाती है।
अब जबकि इनमें से एक इकाई को वार्षिक रखरखाव और तकनीकी सुधार के लिए बंद किया गया है, इसका सीधा असर बिजली की आपूर्ति पर पड़ना तय है। उत्पादन घटने से राज्य को हर दिन 1.44 लाख यूनिट बिजली की कमी का सामना करना पड़ेगा।
क्यों लिया गया लंबा शटडाउन?
कालीसिंध थर्मल प्रशासन के अनुसार, यह शटडाउन एक वार्षिक अनिवार्य प्रक्रिया है, जो कि राजस्थान सरकार के ऊर्जा विभाग के निर्देश पर की जाती है। इस प्रक्रिया के अंतर्गत प्लांट की पूरी इकाई की बारीकी से तकनीकी जांच और मेंटेनेंस किया जाता है। उद्देश्य यह है कि यूनिट को दीर्घकालिक स्थिरता और सुरक्षित उत्पादन के लिए पूरी तरह दुरुस्त किया जा सके।
अधिकारियों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब यूनिट को बंद किया गया है। “पिछले एक वर्ष में तकनीकी खामियों के चलते प्लांट की दोनों यूनिट्स को मिलाकर लगभग 10 से 12 बार उत्पादन रोका गया है। हालांकि उस समय अस्थायी रुकावटें थीं, लेकिन इस बार 40 दिनों का लंबा शटडाउन रखा गया है ताकि गहराई से मरम्मत की जा सके।”
मानसून के कारण थोड़ी राहत, लेकिन भविष्य में बढ़ सकती है समस्या
फिलहाल राजस्थान के कई हिस्सों में जारी मूसलधार बारिश और बादलभरा मौसम बिजली की मांग को नियंत्रित कर रहा है। बिजली की खपत में कुछ कमी आई है, जिससे शटडाउन का असर फिलहाल उतना नहीं दिख रहा। लेकिन मौसम में जैसे ही बदलाव आएगा और तापमान में वृद्धि होगी, बिजली की मांग अचानक से बढ़ सकती है।
इस स्थिति में राज्य को अन्य ऊर्जा स्रोतों, जैसे सौर ऊर्जा, जल विद्युत और अन्य थर्मल यूनिट्स पर अधिक निर्भर रहना होगा। अगर वैकल्पिक व्यवस्थाएं प्रभावी नहीं रहीं तो राज्य को लोड शेडिंग और अनियमित आपूर्ति जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
थर्मल प्लांट्स पर निर्भरता बनी चुनौती
राजस्थान जैसे बड़े और विविधतापूर्ण राज्य में ऊर्जा की मांग वर्ष भर बनी रहती है। विशेषकर गर्मियों और मानसून के बाद की अवधि में यह मांग तेजी से बढ़ती है। राज्य की ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा थर्मल पावर प्लांंट्स से पूरा किया जाता है। कालीसिंध के अलावा सूरतगढ़, कोटा, छबड़ा जैसे थर्मल प्लांट्स भी राज्य की ग्रिड आपूर्ति में अहम भूमिका निभाते हैं।
ऐसे में किसी भी बड़ी यूनिट का बंद होना राज्य की संपूर्ण विद्युत आपूर्ति व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है। इस कारण हर बार एक बड़ी यूनिट को शटडाउन करने से पहले राज्य सरकार और विद्युत उत्पादन निगम को वैकल्पिक प्रबंधन योजनाएं तैयार रखनी पड़ती हैं।
राज्य सरकार की रणनीति
राजस्थान सरकार की ओर से अब तक इस शटडाउन पर कोई अलग प्रेस बयान नहीं आया है, लेकिन ऊर्जा विभाग के सूत्रों का कहना है कि प्रशासन पूर्व-निर्धारित वैकल्पिक योजनाओं के तहत कार्य कर रहा है। अन्य यूनिट्स की उत्पादन क्षमता बढ़ाने, वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों से सप्लाई बढ़ाने और निजी कंपनियों से आपूर्ति की व्यवस्था पर कार्य किया जा रहा है।
राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि यह नियमित रखरखाव है और इसमें कोई आपात स्थिति नहीं है, लेकिन जलवायु परिस्थिति और मांग पर नजर रखी जा रही है। यदि आवश्यक हुआ तो बिजली वितरण कंपनियों को निर्देश दिए जाएंगे कि वे आपूर्ति संतुलन बनाए रखें।