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women world cup 2025: भारत की बेटियों ने रचा इतिहास

women world cup 2025: भारत की बेटियों ने रचा इतिहास

मनीषा शर्मा। ICC women world cup 2025 जीतकर भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने नया इतिहास रच दिया है। पहली बार इस खिताब को जीतने वाली टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर के नेतृत्व में भारत की बेटियों ने दुनिया के सामने यह साबित कर दिया कि मेहनत, जुनून और समर्पण से हर सपना साकार किया जा सकता है। इस जीत ने न केवल भारतीय क्रिकेट के इतिहास में स्वर्णिम अध्याय जोड़ा है, बल्कि देशभर में महिला क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।
लेकिन इन विजेता खिलाड़ियों की यह यात्रा आसान नहीं थी। हर खिलाड़ी के पीछे संघर्ष, साहस और त्याग की एक प्रेरक कहानी छिपी है। आइए जानते हैं इन विश्व विजेताओं के संघर्ष और सफलता के किस्से।

हरमनप्रीत कौर: लड़कों के साथ खेलकर बनीं ‘हरमन द हिटवुमन’

पंजाब के मोगा की रहने वाली हरमनप्रीत कौर आज भारतीय क्रिकेट इतिहास में कपिल देव के बाद दूसरी ऐसी कप्तान हैं जिन्होंने देश को विश्व कप जिताया। उनके पिता हरमंदर भुल्लर खुद एक क्रिकेट प्रेमी थे और उन्होंने हरमनप्रीत को बचपन से ही क्रिकेट खेलने के लिए प्रोत्साहित किया।
हरमन अपने पिता और भाई के साथ स्थानीय लड़कों के बीच क्रिकेट खेलती थीं। यही वजह है कि उन्होंने शुरू से ही तेज़ और आक्रामक बल्लेबाजी सीखी। 2017 विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उनका 171* रन आज भी भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अमर है। हरमनप्रीत की बल्लेबाजी का जुनून, उनके पिता की सोच और कोच कमलदीश सिंह सोढ़ी की मार्गदर्शन ने उन्हें आज विश्व क्रिकेट की दिग्गजों में शामिल कर दिया।

स्मृति मंधाना: 9 साल की उम्र में राज्य स्तर पर डेब्यू करने वाली सलामी बल्लेबाज

महाराष्ट्र के सांगली की स्मृति मंधाना बचपन से ही क्रिकेट में डूबी रहीं। उन्होंने अपने भाई श्रवण को खेलते देखा और खुद भी मैदान पर उतर गईं। मात्र 9 साल की उम्र में राज्य स्तर पर और 16 की उम्र में भारत के लिए डेब्यू किया।
2016 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला शतक लगाकर स्मृति ने खुद को दुनिया की सर्वश्रेष्ठ ओपनर के रूप में स्थापित किया। बाद में वे वनडे में नंबर-1 बल्लेबाज बनीं और टीम की उप-कप्तान के रूप में नेतृत्व की भूमिका निभाई। उनके कवर ड्राइव और स्थिर बल्लेबाजी आज हर युवा क्रिकेटर के लिए प्रेरणा हैं।

जेमिमा रोड्रिग्स: क्रिकेट और हॉकी दोनों में कमाल

मुंबई की जेमिमा रोड्रिग्स न केवल एक बेहतरीन बल्लेबाज हैं बल्कि राज्य स्तर पर हॉकी भी खेल चुकी हैं। 17 वर्ष की उम्र में भारत के लिए डेब्यू करने वाली जेमिमा ने 2022 विश्व कप में सेमीफाइनल में 127* रन बनाकर टीम को फाइनल में पहुंचाया।
उनकी मानसिक दृढ़ता और बल्लेबाजी की लय ने उन्हें भारतीय टीम का भरोसेमंद स्तंभ बना दिया है। जेमिमा का मानना है कि खेल में निरंतरता और मानसिक शक्ति सफलता की असली कुंजी है।

दीप्ति शर्मा: एक थ्रो से शुरू हुआ करियर

आगरा की दीप्ति शर्मा का क्रिकेट सफर एक संयोग से शुरू हुआ। उन्होंने बचपन में अपने भाई के साथ खेलते हुए एक गेंद को इतनी ताकत से फेंका कि भारतीय खिलाड़ी हेमलता काला का ध्यान उन पर गया।
17 वर्ष की उम्र में भारत के लिए खेलने वाली दीप्ति आज भारतीय महिला क्रिकेट की सबसे भरोसेमंद ऑलराउंडर हैं। उनके पास वनडे में 150 से ज्यादा विकेट हैं और वे झूलन गोस्वामी के बाद भारत की सबसे सफल गेंदबाजों में से एक हैं।

ऋचा घोष: टेबल टेनिस से क्रिकेट तक

सिलीगुड़ी की ऋचा घोष के पिता चाहते थे कि वह टेबल टेनिस खेलें, लेकिन ऋचा ने क्रिकेट चुना। उनके पिता ने अपना व्यवसाय बंद कर दिया ताकि वे बेटी के साथ कोलकाता जाकर अभ्यास कर सकें।
ऋचा ने 16 साल की उम्र में टी20 में डेब्यू किया और अपने पावर हिटिंग के लिए जानी जाती हैं। डब्ल्यूपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर से खेलने के बाद उन्होंने और भी परिपक्व प्रदर्शन दिखाया।

हरलीन देओल: हिमाचल से चंडीगढ़ तक का संघर्ष

हरलीन देओल ने सीमित संसाधनों के बावजूद हिमाचल से अपने करियर की शुरुआत की। उन्हें बेहतर सुविधाओं के लिए चंडीगढ़ शिफ्ट होना पड़ा। 2021 में इंग्लैंड के खिलाफ एक अविश्वसनीय कैच ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया।
उनकी यह कैच ईएसपीएन स्पोर्ट्स सेंटर पर प्रसारित हुई और लाखों लोगों ने इसे सोशल मीडिया पर पसंद किया।

प्रतिका रावल: दिल्ली की पहली जिमखाना ट्रेनिंग लेने वाली लड़की

दिल्ली की सलामी बल्लेबाज प्रतिका रावल ने नौ साल की उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू किया। उनके पिता प्रदीप रावल बीसीसीआई अंपायर हैं और उन्होंने ही प्रतिका को इस राह पर प्रेरित किया।
लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने पिता के साथ छत पर अभ्यास जारी रखा। प्रतिका महिला वनडे में सबसे तेज़ 1,000 रन बनाने वाली भारतीय हैं।

शैफाली वर्मा: पिता ने लड़कों की टीम में खिलाने के लिए कराया बॉय कट

हरियाणा की शैफाली वर्मा की कहानी बेहद प्रेरक है। उनके पिता संजीव वर्मा ने 10 साल की उम्र में उनके बाल छोटे कराए ताकि वह लड़कों की टीम में खेल सकें।
शैफाली ने उस टूर्नामेंट में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का खिताब जीता और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने 15 साल की उम्र में डब्ल्यूपीएल में धमाकेदार बल्लेबाजी से सबको चौंका दिया।
वह सचिन तेंदुलकर की बड़ी प्रशंसक हैं और मिताली राज के बाद टेस्ट में दोहरा शतक लगाने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं।

रेणुका सिंह ठाकुर: पिता का सपना किया पूरा

शिमला की रेणुका सिंह बचपन में अपने भाई के साथ लड़कों की टीम में क्रिकेट खेलती थीं। उनके पिता का सपना था कि वे क्रिकेट में नाम कमाएं। पिता के निधन के बाद मां और भाई ने उन्हें आगे बढ़ने में मदद की।
2022 कॉमनवेल्थ गेम्स में रेणुका ने 11 विकेट लेकर दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा।

राधा यादव: सब्जीवाले की बेटी से विश्व कप विजेता तक

मुंबई में जन्मी राधा यादव के पिता सब्जी बेचते थे, लेकिन उनकी मेहनत और कोच प्रफुल नाइक के सहयोग से राधा ने बड़ौदा के लिए खेलना शुरू किया।
उन्होंने लगातार 27 टी20 मैचों में कम से कम एक विकेट लेकर रिकॉर्ड कायम किया और अब विश्व कप विजेता टीम की अहम सदस्य हैं।

अमनजोत कौर: पिता ने खुद बनाया पहला बल्ला

चंडीगढ़ की अमनजोत कौर के पिता बढ़ई थे। जब पड़ोस के लड़कों ने बल्ला न होने पर उन्हें खेलने से मना किया, तो पिता ने खुद लकड़ी से बल्ला बनाया।
यह बल्ला अमनजोत के करियर की शुरुआत बना। पीठ की चोट से उबरने के बाद उन्होंने डब्ल्यूपीएल में शानदार वापसी की और श्रीलंका के खिलाफ 50+ रन बनाकर इतिहास रच दिया।

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ये बेटियां न सिर्फ मैदान पर बल्कि हर उस लड़की के दिल में प्रेरणा की मिसाल बन चुकी हैं, जो अपने सपनों को साकार करना चाहती है।
विश्व कप जीतने के साथ उन्होंने यह साबित कर दिया है कि भारत की बेटियां किसी भी मैदान में कम नहीं हैं।

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