शोभना शर्मा। कई लोग अपने बैंक खाते, बीमा पॉलिसी या प्रॉपर्टी में नॉमिनी का नाम दर्ज करा देते हैं और यह मान लेते हैं कि उनके निधन के बाद वही व्यक्ति उस संपत्ति का पूरा मालिक बन जाएगा. लेकिन भारतीय कानून ऐसा नहीं कहता. नॉमिनी (Nominee) और उत्तराधिकारी (Legal Heir) की भूमिका अलग-अलग होती है. इस भ्रम की वजह से कई परिवारों में विवाद और मुकदमेबाज़ी होती है. इसलिए यह समझना जरूरी है कि आखिर नॉमिनी और उत्तराधिकारी में अंतर क्या है.
कौन होता है नॉमिनी?
नॉमिनी वह व्यक्ति होता है जिसे आप अपने बैंक खाते, बीमा पॉलिसी, म्यूचुअल फंड, शेयर या प्रॉपर्टी में दर्ज कराते हैं ताकि आपकी मृत्यु के बाद वह अस्थायी रूप से उस संपत्ति की देखभाल कर सके. सरल शब्दों में, नॉमिनी केवल ‘caretaker’ यानी देखरेख करने वाला होता है, संपत्ति का मालिक नहीं. उदाहरण के तौर पर अगर किसी व्यक्ति ने अपने बैंक खाते में पत्नी को नॉमिनी बनाया है और उसकी मृत्यु हो जाती है, तो बैंक पैसे पत्नी के नाम ट्रांसफर कर देगा. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वह पैसा केवल पत्नी का हो गया. कानून के हिसाब से उस रकम में बच्चों, माता-पिता या अन्य उत्तराधिकारियों का भी हक रहेगा.
कौन होता है उत्तराधिकारी (Legal Heir)?
उत्तराधिकारी वह व्यक्ति होता है जिसे भारतीय उत्तराधिकार कानून के अनुसार संपत्ति में हिस्सा मिलता है. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (Hindu Succession Act, 1956) के अनुसार, पति, पत्नी, माता-पिता और बच्चे प्राथमिक उत्तराधिकारी माने जाते हैं. उत्तराधिकारी को संपत्ति पर पूरा मालिकाना हक (Ownership Right) होता है. वह चाहे तो संपत्ति को बेच सकता है, बाँट सकता है या किसी अन्य के नाम ट्रांसफर कर सकता है. यानी, वास्तविक अधिकार उत्तराधिकारी के पास होता है, न कि नॉमिनी के पास.
क्यों नॉमिनी संपत्ति का मालिक नहीं होता
बहुत से लोग यह मान लेते हैं कि नॉमिनी बनने का मतलब है कि वह व्यक्ति संपत्ति का मालिक बन जाएगा. लेकिन यह गलतफहमी है. सुप्रीम कोर्ट ने कई बार अपने फैसलों में यह स्पष्ट किया है कि — “Nominee is not the owner of the property, but merely a trustee for the legal heirs.” यानि नॉमिनी केवल एक ट्रस्टी या संरक्षक है, जो संपत्ति को असली हकदारों के लिए सुरक्षित रखता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति ने अपनी बीमा पॉलिसी में बेटे को नॉमिनी बनाया है, तो मृत्यु के बाद बीमा कंपनी पैसा बेटे को दे देगी, लेकिन वह रकम बेटे की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होगी. उसमें पत्नी, माता-पिता और अन्य बच्चों का भी कानूनी अधिकार होगा.
बैंक खाते और बीमा पॉलिसी में नॉमिनी की भूमिका
जब कोई व्यक्ति बैंक खाता या बीमा पॉलिसी में नॉमिनी तय करता है, तो यह सुविधा इसलिए होती है ताकि उसके निधन के बाद राशि निकालने में परिवार को परेशानी न हो. नॉमिनी को पैसा इसलिए दिया जाता है ताकि वह तुरंत परिवार की जरूरतें पूरी कर सके, लेकिन आगे चलकर अगर अन्य कानूनी उत्तराधिकारी दावा करते हैं, तो उस रकम का बंटवारा उत्तराधिकार कानून के अनुसार होगा. इसी तरह अगर किसी फ्लैट, शेयर या संपत्ति में नॉमिनी का नाम दर्ज है, तो नॉमिनी अस्थायी रूप से मालिक बनता है, लेकिन अंतिम अधिकार वसीयत या उत्तराधिकार कानून तय करते हैं.
वसीयत (Will) क्यों है जरूरी?
कई लोग नॉमिनी तो बना देते हैं, लेकिन वसीयत नहीं बनवाते. यही सबसे बड़ी गलती होती है, क्योंकि बिना वसीयत के यह तय नहीं हो पाता कि संपत्ति किसे मिलेगी. इससे परिवार के बीच विवाद, कोर्ट केस और रिश्तों में दरार तक आ सकती है. एक Registered Will बनवाना इसलिए जरूरी है ताकि आप अपनी संपत्ति का स्पष्ट बंटवारा कर सकें. वसीयत में यह लिखा जा सकता है कि कौन-सी संपत्ति किस उत्तराधिकारी को मिलेगी और किस अनुपात में. इससे आपके निधन के बाद नॉमिनी और उत्तराधिकारी के बीच कोई कानूनी उलझन नहीं रहेगी.
कानूनी सलाह क्यों लें?
हर संपत्ति की कानूनी व्याख्या अलग होती है. बैंक खाते, बीमा पॉलिसी, म्यूचुअल फंड या रियल एस्टेट में नॉमिनी और उत्तराधिकारी के अधिकारों में फर्क हो सकता है. इसलिए किसी अनुभवी वकील या चार्टर्ड एकाउंटेंट से सलाह लेना हमेशा फायदेमंद रहता है. अगर आप पहले से यह कानूनी स्पष्टता रखेंगे, तो आपके परिवार को भविष्य में प्रॉपर्टी क्लेम, कोर्ट केस या विवाद जैसी परेशानियों से बचाया जा सकता है.
नॉमिनी केवल आपकी संपत्ति का अस्थायी संरक्षक होता है, जबकि वास्तविक मालिकाना हक कानूनी उत्तराधिकारियों का होता है. इसलिए यह जरूरी है कि आप न सिर्फ नॉमिनी तय करें बल्कि एक स्पष्ट वसीयत भी बनवाएं. इससे आपकी मेहनत की कमाई सही हाथों तक पहुँचेगी और परिवार को किसी तरह का विवाद नहीं झेलना पड़ेगा.


