शोभना शर्मा। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-पाकिस्तान संघर्ष को लेकर अपने पूर्व दावे से पलटते हुए कहा है कि उन्होंने इन दोनों देशों के बीच किसी भी तरह की ‘मध्यस्थता’ नहीं की है। ट्रंप ने अब साफ किया है कि उन्होंने केवल तनाव को सुलझाने में मदद की, न कि युद्ध को रोकने के लिए कोई औपचारिक भूमिका निभाई। उनका यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत ने शुरू से ही किसी भी विदेशी मध्यस्थता को खारिज कर दिया था।
ट्रंप का पलटा हुआ बयान: मध्यस्थता नहीं, सिर्फ मदद की
कतर की राजधानी दोहा में अमेरिकी सैनिकों को संबोधित करते हुए डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, “मैं ये नहीं कहूंगा कि मैंने मध्यस्थता की, लेकिन मैंने निश्चित रूप से भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले सप्ताह बढ़ते तनाव को सुलझाने में मदद की।” उन्होंने कहा कि अगर तनाव और बढ़ता, तो वहां मिसाइलों का उपयोग होने की स्थिति बन सकती थी, लेकिन उन्होंने इस परिस्थिति को संभालने में योगदान दिया। ट्रंप ने यह भी दावा किया कि दोनों देशों के साथ उन्होंने व्यापार पर बात की और यह संदेश दिया कि यदि वे संघर्ष रोकते हैं, तो अमेरिका उनके साथ बड़े स्तर पर व्यापार करेगा।
व्यापार की धमकी से रोका युद्ध?
व्हाइट हाउस में संवाददाता सम्मेलन के दौरान ट्रंप ने कहा कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान से कहा कि अगर वे संघर्ष नहीं रोकते, तो अमेरिका उनके साथ व्यापार नहीं करेगा। ट्रंप ने अपने तरीके की तारीफ करते हुए कहा, “लोगों ने व्यापार का वैसा उपयोग कभी नहीं किया जैसा मैंने किया।” उनके मुताबिक, व्यापार के ज़रिए दबाव बनाकर उन्होंने परमाणु संघर्ष की संभावना को टाल दिया। ट्रंप के अनुसार, “हम भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ व्यापार करने को तैयार हैं, लेकिन शर्त यह है कि वे युद्ध या संघर्ष से दूर रहें। अगर वे नहीं मानते, तो कोई व्यापार नहीं होगा।”
भारत ने शुरू से ही मध्यस्थता को खारिज किया
ट्रंप के पहले के दावों को भारत ने सख्ती से खारिज किया था। भारत का स्पष्ट रुख रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी प्रकार का विवाद द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझेगा और इसमें किसी तीसरे पक्ष की आवश्यकता नहीं है। विदेश मंत्रालय ने ट्रंप के पिछले दावे को ‘गैर-जरूरी’ करार देते हुए कहा था कि संघर्षविराम भारत और पाकिस्तान के आपसी संचार का नतीजा है, न कि किसी बाहरी हस्तक्षेप का।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर अमेरिका की भूमिका पर सवाल
ट्रंप के इस बदले बयान से अमेरिका की विदेश नीति और उसकी गंभीरता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जहां एक ओर वह भारत और पाकिस्तान को एक-दूसरे के करीब लाने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी ओर वह पहले मध्यस्थता की बात करते हैं और बाद में उसे नकार देते हैं। यह विरोधाभासी रवैया अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में अमेरिका की साख को प्रभावित कर सकता है।