मनीषा शर्मा। राजस्थान में आगामी नगरीय निकाय चुनाव 2025 को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। प्रदेश के 309 नगरीय निकायों में अगले साल एक साथ चुनाव करवाने की चर्चाएं अब जोरों पर हैं। लेकिन इन चर्चाओं के बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस बार निकाय प्रमुखों — यानी मेयर, सभापति और अध्यक्षों का चुनाव — प्रत्यक्ष होगा या अप्रत्यक्ष? इस सवाल का जवाब अब काफी हद तक साफ हो गया है। शहरी विकास एवं आवासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने संकेत दिए हैं कि सरकार फिलहाल मौजूदा व्यवस्था यानी अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली को ही बरकरार रखेगी।
मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने स्पष्ट किए सरकार के इरादे
मीडिया से बातचीत में यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा कि राज्य सरकार के पास निकाय चुनावों को लेकर दो प्रकार के सुझाव आए थे — पहला, मुखिया का चुनाव सीधे जनता द्वारा (प्रत्यक्ष चुनाव) करवाने का और दूसरा, वर्तमान प्रणाली यानी पार्षदों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव कराने का। उन्होंने बताया कि पहले भी प्रदेश में एक बार प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली अपनाई गई थी, लेकिन उससे गंभीर व्यावहारिक दिक्कतें सामने आई थीं। खर्रा ने कहा, “जब प्रत्यक्ष चुनाव हुए, तो कई बार मुखिया एक विचारधारा से और बोर्ड दूसरी विचारधारा से निर्वाचित हो गया। इससे पूरे पांच साल तक खींचतान चलती रही। ऐसे में यदि इस खींचतान का कोई स्थायी समाधान नहीं निकलता, तो हम वर्तमान अप्रत्यक्ष प्रणाली को ही जारी रखेंगे।”
कांग्रेस सरकार ने 2009 में किए थे प्रत्यक्ष चुनाव
राजस्थान में प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली की शुरुआत वर्ष 2009 में कांग्रेस सरकार के दूसरे कार्यकाल में की गई थी। उस समय मुख्यमंत्री अशोक गहलोत थे और सरकार ने जनता द्वारा सीधे मेयर और अध्यक्ष चुनने की व्यवस्था लागू की थी। 2009 के चुनावों में जयपुर नगर निगम का बोर्ड भाजपा का बना था, जबकि मेयर कांग्रेस से निर्वाचित हुए थे। इस राजनीतिक असमानता के कारण बोर्ड और मेयर के बीच लगातार टकराव और खींचतान चलती रही। नतीजतन, नगर निगम में प्रशासनिक कार्य प्रभावित हुए और लंबे समय तक संचालन समितियां भी नहीं बन पाईं। यह अनुभव सरकार के लिए एक चेतावनी साबित हुआ, जिसके बाद 2014 में वसुंधरा राजे सरकार ने इस व्यवस्था को बदलकर फिर से अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली लागू कर दी।
अब भी कायम रहेगा अप्रत्यक्ष चुनाव का स्वरूप
मंत्री झाबर सिंह खर्रा के बयान से यह लगभग तय माना जा रहा है कि इस बार भी निकाय प्रमुखों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से पार्षदों द्वारा ही किया जाएगा। यानी जनता सीधे मेयर या अध्यक्ष नहीं चुनेगी, बल्कि अपने-अपने क्षेत्र के पार्षदों को चुनेगी, और वही पार्षद अपने बीच से एक प्रमुख का चयन करेंगे। इस व्यवस्था के पक्ष में मंत्री का तर्क है कि इससे प्रशासनिक स्थिरता बनी रहती है और बोर्ड तथा प्रमुख के बीच विचारधारात्मक टकराव की संभावना कम होती है।
309 नगरीय निकायों में एक साथ चुनाव की तैयारी
राज्य में वर्तमान में अधिकांश नगरीय निकायों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है। ऐसे में सरकार जल्द ही सभी पर प्रशासक नियुक्त कर चुकी है। जानकारी के अनुसार, अगले साल फरवरी 2025 तक 141 निकायों का कार्यकाल पूरा हो जाएगा। वहीं, जिन निकायों का कार्यकाल पहले ही खत्म हो चुका है, उनमें प्रशासक व्यवस्था लागू है। इस प्रकार, सरकार आगामी वर्ष 309 नगरीय निकायों में एक साथ चुनाव करवाने की दिशा में तैयारी कर रही है। राज्य निर्वाचन आयोग भी इस संबंध में अपनी रूपरेखा तैयार कर रहा है। यदि सब कुछ तय समय पर हुआ, तो 2025 की शुरुआत में राज्य में सबसे बड़ा स्थानीय निकाय चुनावी अभियान देखने को मिल सकता है।
राजनीतिक दलों में मंथन शुरू
मंत्री झाबर सिंह खर्रा के बयान के बाद अब राजनीतिक दलों में भी रणनीतिक चर्चा शुरू हो गई है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के स्थानीय नेता आगामी चुनाव में उम्मीदवार चयन और गठबंधन रणनीतियों पर विचार कर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में पार्षदों की भूमिका बेहद अहम होती है। ऐसे में स्थानीय स्तर पर गुटबाज़ी, पार्टी निष्ठा और पार्षदों के बीच समझौते चुनाव परिणामों को प्रभावित कर सकते हैं।


