शोभना शर्मा। राजस्थानी भाषा को रीट परीक्षा में शामिल करने का मुद्दा अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। पदम मेहता (प्रधान संपादक, माणक राजस्थानी पत्रिका) और डॉ. कल्याण सिंह शेखावत की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 4.36 करोड़ लोग राजस्थानी भाषा बोलते हैं, फिर भी इसे रीट परीक्षा में शामिल नहीं किया गया है।
मातृभाषा में शिक्षा का महत्व
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राष्ट्रीय शिक्षा नीति और संविधान का हवाला दिया। शिक्षा नीति में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में अधिक तेजी और गहराई से सीखते हैं। इसलिए 5वीं कक्षा तक, और जहां संभव हो, 8वीं कक्षा तक शिक्षण का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए।
संविधान का अनुच्छेद 350 ए और शिक्षा का अधिकार अधिनियम, धारा 29 (2)(एफ) भी बच्चों को उनकी मातृभाषा में पढ़ाने की वकालत करता है। राजस्थान में राजस्थानी भाषा को व्यापक रूप से मातृभाषा के रूप में बोला जाता है।
हाईकोर्ट का फैसला और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
इससे पहले राजस्थान हाईकोर्ट में दायर याचिका को 27 नवंबर 2024 को खारिज कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि रीट परीक्षा की विज्ञप्ति में गुजराती, पंजाबी, सिंधी, और उर्दू जैसी भाषाओं को शामिल किया गया, लेकिन राजस्थानी भाषा को अनदेखा किया गया। सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी में इस मुद्दे को दोबारा उठाया गया।
राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में शपथ पत्र पेश करते हुए बताया कि नई शिक्षा नीति को लागू करने के लिए टास्क फोर्स गठित की गई है। हालांकि, सरकार ने राजस्थानी भाषा के उपयोग को पूरी तरह नकारा भी नहीं।
राजस्थानी भाषा को मान्यता का संघर्ष
राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए राजस्थान विधानसभा ने 25 अगस्त 2003 को प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में केंद्र सरकार से राजस्थानी भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल करने का अनुरोध किया गया था। हालांकि, आज तक यह मान्यता नहीं मिल पाई।
राजस्थान में राजस्थानी भाषा, भले ही आधिकारिक भाषा न हो, लेकिन इसे व्यापक रूप से बोला जाता है। इसे रीट परीक्षा में शामिल करने की मांग राजस्थानी भाषा प्रेमियों और सामाजिक संगठनों की पुरानी मांग रही है।
कौन हैं पदम मेहता?
जोधपुर के 74 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार पदम मेहता पिछले 44 वर्षों से राजस्थानी भाषा में मासिक पत्रिका का प्रकाशन कर रहे हैं। उन्होंने राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। वे ज्ञापन, धरना-प्रदर्शन, और संघर्ष समितियों के माध्यम से प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक इस मांग को पहुंचा चुके हैं।