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जोधपुर में दशहरा पर रावण के वंशज मनाते हैं शोक, करते हैं पूजा और तर्पण

जोधपुर में दशहरा पर रावण के वंशज मनाते हैं शोक, करते हैं पूजा और तर्पण

मनीषा शर्मा।  देशभर में विजयदशमी यानी दशहरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। इस दिन पूरे भारत में रावण दहन कर उत्सव मनाया जाता है। लेकिन राजस्थान के जोधपुर में एक परिवार ऐसा भी है, जो खुद को रावण का वंशज मानता है और दशहरा के दिन शोक मनाता है। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है और आज भी उसी भाव के साथ निभाई जाती है।

रावण के वंशज क्यों मनाते हैं शोक

जोधपुर के किला रोड स्थित अमरनाथ महादेव मंदिर में इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है। यहां पुजारी कमलेश दवे और उनका परिवार हर साल दशहरा के दिन रावण का पूजन करते हैं। उनका कहना है कि रावण दहन के बाद वे शोक मनाते हैं, क्योंकि वे खुद को रावण का वंशज मानते हैं। रावण दहन देखने की बजाय वे स्नान कर जनेऊ बदलते हैं और शिवलिंग व रावण की पूजा करते हैं। कमलेश दवे ने बताया कि रावण की शादी जोधपुर में मंदोदरी से हुई थी। उस समय श्रीलंका से उनके समाज के लोग भी यहां आए थे। शादी के बाद रावण और मंदोदरी श्रीलंका चले गए, लेकिन उनके वंशज यहीं रह गए। आज भी उनके परिवार इस परंपरा को निभा रहे हैं।

रावण के गुणों की पूजा

25 साल पहले पंडित नारायण दवे उर्फ सरदार जी ने जोधपुर में रावण मंदिर की स्थापना की थी। इस मंदिर में रावण की पूजा की जाती है। दवे परिवार का कहना है कि रावण सिर्फ बुराई का प्रतीक नहीं थे, बल्कि वे अत्यंत विद्वान और शक्तिशाली व्यक्ति थे। रावण ने ज्योतिष गणित में ग्रहों की अवधि को बांधा था। वे वेदों और शास्त्रों के ज्ञाता थे। संगीतज्ञ और शिवभक्त होने के साथ-साथ उन्होंने कई वर्षों तक तप किया और सिद्धियां हासिल कीं। इसी कारण उनके वंशज दशहरा के दिन उनके गुणों का पूजन करते हैं।

तर्पण और ब्राह्मण भोजन की परंपरा

दवे परिवार हर साल आसोज कृष्ण पक्ष की दशमी को रावण का तर्पण करते हैं। इस दिन ब्राह्मण भोज करवाया जाता है। जबकि अश्विन शुक्ल पक्ष दशमी यानी दशहरा के दिन वे शोक मानते हैं। इस दौरान वे स्नान कर शिवलिंग और रावण की पूजा करते हैं, प्रसाद चढ़ाते हैं और दहन नहीं देखते। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और पीढ़ी दर पीढ़ी इसका पालन किया जा रहा है।

रावण का पहला ससुराल : मंडोर

जोधपुर का मंडोर क्षेत्र रावण का ससुराल माना जाता है। मंदोदरी का जन्म यहीं हुआ था। मंड का अर्थ होता है उदर और माना जाता है कि यहीं उनकी उत्पत्ति हुई थी। यही कारण है कि इसे रावण का पहला ससुराल कहा जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि जितना ज्ञानी और विद्वान रावण था, वैसा न कोई पहले हुआ न आगे होगा। इसलिए यहां उनके गुणों की पूजा की जाती है।

समाज के अन्य लोगों की राय

पंडित ओदिच्च्य ने बताया कि रावण द्रविड़ संप्रदाय के ब्राह्मण थे और ज्योतिष विद्या के बड़े जानकार थे। इसलिए आज भी उनकी पूजा करना उचित माना जाता है। वहीं दर्शन करने आई वंदना शर्मा ने कहा कि वे कई वर्षों से यहां दर्शन करने आती हैं। उनका परिवार सूर्यवंशी है और हर बार नवरात्रि के बाद वे रावण की पूजा करते हैं। कुलदीप शर्मा, जो ब्रह्मपुरी क्षेत्र के निवासी हैं, बताते हैं कि दशहरा के बाद वे भगवान शिव के भक्त के रूप में रावण की पूजा करना अपना कर्तव्य मानते हैं।

जोधपुर का पहला रावण मंदिर

पूरे भारत में गिने-चुने स्थानों पर ही रावण के मंदिर हैं। राजस्थान की बात की जाए तो पहला रावण मंदिर जोधपुर में ही है। यह मंदिर विद्वत्ता, शक्ति और भक्ति के प्रतीक रावण की स्मृति में स्थापित किया गया है। जहां पूरा देश दशहरा के दिन रावण दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है, वहीं जोधपुर का दवे परिवार इस दिन शोक मनाता है। उनका मानना है कि रावण सिर्फ एक नकारात्मक पात्र नहीं थे, बल्कि वे महान विद्वान, शिवभक्त और शक्तिशाली व्यक्तित्व थे। यही कारण है कि उनकी पूजा और तर्पण आज भी परंपरा के रूप में जीवित है।

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