मनीषा शर्मा। देशभर के शिक्षकों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर 2025 को एक अहम आदेश सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि अब किसी भी शिक्षक को यदि अपनी सेवा में बने रहना है या पदोन्नति (Promotion) पाना है, तो उन्हें टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना ही होगा। यह फैसला शिक्षा व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने की। आदेश में कहा गया कि जिन शिक्षकों की सेवा में 5 साल से अधिक समय बचा है, उन्हें TET क्वालिफाई करना अनिवार्य होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया तो उन्हें मजबूरी में इस्तीफा देना होगा या फिर कंपल्सरी रिटायरमेंट लेना पड़ेगा।
जिन शिक्षकों को मिली राहत
हालांकि कोर्ट ने उन शिक्षकों को राहत दी है जिनकी नौकरी में सिर्फ 5 साल या उससे कम समय बचा है। ऐसे शिक्षकों को अब TET पास करने की बाध्यता नहीं होगी। यानी सेवा के अंतिम चरण में पहुंच चुके शिक्षकों को इस नियम से छूट रहेगी।
माइनॉरिटी संस्थानों पर लागू होगा या नहीं?
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश फिलहाल माइनॉरिटी संस्थानों पर लागू नहीं होगा। इन संस्थानों के लिए यह नियम अनिवार्य होगा या नहीं, इसका फैसला बड़ी बेंच करेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले पर व्यापक सुनवाई की आवश्यकता है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 30 से भी जुड़ा है, जिसमें अल्पसंख्यक संस्थानों को विशेष अधिकार दिए गए हैं।
TET परीक्षा क्या है?
टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) एक राष्ट्रीय स्तर की पात्रता परीक्षा है, जिसे पास करने के बाद कोई उम्मीदवार कक्षा 1 से 8 तक शिक्षक बनने का हकदार होता है। इस परीक्षा को राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) ने साल 2010 में अनिवार्य किया था। TET परीक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्राथमिक और उच्च प्राथमिक शिक्षा स्तर पर पढ़ाने वाले शिक्षक न्यूनतम योग्यताओं पर खरे उतरें। परीक्षा पास करने से शिक्षकों की गुणवत्ता और शिक्षा का स्तर बेहतर होता है।
पूरा मामला कैसे शुरू हुआ?
इस पूरे विवाद की शुरुआत RTE एक्ट, 2009 की धारा 23(1) से हुई। इसमें प्रावधान था कि शिक्षकों की न्यूनतम योग्यता तय करने का अधिकार NCTE के पास होगा। 23 अगस्त 2010 को NCTE ने नोटिफिकेशन जारी कर दिया कि कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने के लिए किसी भी शिक्षक को TET पास करना अनिवार्य होगा। साथ ही नियुक्त हो चुके शिक्षकों को भी 5 साल का समय दिया गया कि वे यह परीक्षा पास कर लें। बाद में NCTE ने यह समय सीमा 4 साल और बढ़ा दी, यानी कुल 9 साल का अवसर शिक्षकों को दिया गया।
कोर्ट तक पहुंचा मामला
NCTE के इस फैसले को कई शिक्षकों और उम्मीदवारों ने चुनौती दी। उनका कहना था कि जो शिक्षक पहले से नियुक्त हैं, उन्हें TET पास करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। मामला मद्रास हाईकोर्ट तक पहुंचा। जून 2025 में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति 29 जुलाई 2011 से पहले हुई थी, उन्हें सेवा में बने रहने के लिए TET पास करना जरूरी नहीं होगा। लेकिन यदि वे पदोन्नति चाहते हैं तो उन्हें परीक्षा पास करनी होगी।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम आदेश
अब सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले में संशोधन करते हुए स्पष्ट कर दिया कि चाहे शिक्षक सेवा में बने रहना चाहते हों या प्रमोशन लेना चाहते हों, दोनों ही स्थितियों में उन्हें TET पास करना होगा। इस आदेश से यह भी तय हो गया कि शिक्षक अपनी नियुक्ति तिथि का हवाला देकर परीक्षा से बच नहीं सकते। केवल वही शिक्षक छूट पाएंगे, जिनकी सेवा में 5 साल से कम बचे हैं।
शिक्षा सुधार की दिशा में बड़ा कदम
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश देश की शिक्षा प्रणाली को मजबूत करने वाला है। लंबे समय से यह चर्चा चल रही थी कि कई शिक्षक बिना TET पास किए वर्षों से पढ़ा रहे हैं, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। अब यह आदेश सुनिश्चित करेगा कि हर शिक्षक कम से कम न्यूनतम योग्यता पर खरा उतरे। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला शिक्षा जगत के लिए ऐतिहासिक है। इससे स्पष्ट हो गया है कि आने वाले समय में शिक्षक बनना या शिक्षक बने रहना केवल डिग्री पर निर्भर नहीं होगा, बल्कि TET पास करना अनिवार्य होगा। जहां एक ओर यह आदेश शिक्षकों की गुणवत्ता और शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करेगा, वहीं दूसरी ओर उन शिक्षकों के लिए चुनौती भी होगा जिन्होंने अब तक यह परीक्षा पास नहीं की है। माइनॉरिटी संस्थानों पर इसका प्रभाव क्या होगा, यह फैसला बड़ी बेंच के आने के बाद तय होगा।