शोभना शर्मा। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट से उम्रकैद के मामलों में ऊपरी अदालतों में अपील के दौरान सजा के सस्पेंशन पर एक अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया है कि आजीवन कारावास की सजा तभी निलंबित की जानी चाहिए जब पहली नजर में साफ हो कि ट्रायल कोर्ट से गलती हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक अदालतें आजीवन कारावास से जुड़े मामलों में सजा को तब तक सस्पेंड न करें, जब तक वे संतुष्ट न हो जाएं कि अपील के दौरान ट्रायल कोर्ट का फैसला टिकने वाला नहीं है। न्यायालय ने कहा कि निश्चित अवधि के कारावास और आजीवन कारावास को अलग-अलग करके देखने की जरूरत है।
जस्टिस जे. बी. पारदीवाला और जस्टिस उज्जल भुयान की वकेशन बेंच ने मर्डर के एक मामले में आजीवन कारावास की सजा के निलंबन की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “निश्चित अवधि की सजा और आजीवन कारावास के बीच सूक्ष्म अंतर है।” बेंच ने कहा, “अगर दी गई सजा निश्चित वर्षों के लिए है, तो अपीलीय अदालतें दोषी की अपील पर फैसला होने तक सजा को निलंबित करने के लिए अपने विवेक का उदारतापूर्वक इस्तेमाल कर सकती हैं, जब तक कि अभियोजन पक्ष अदालत को इसे निलंबित करने से रोकने के लिए असाधारण परिस्थितियों का हवाला न दे।”
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब मामला आजीवन कारावास का हो, तो अपीलीय अदालत का परीक्षण यह होना चाहिए कि क्या रिकॉर्ड के आधार पर ऐसा कुछ स्पष्ट है जिसके आधार पर अपीलीय अदालत प्रथम दृष्टया यह राय बना सके कि दोषसिद्धि कायम रखने योग्य नहीं है या दोषी के पास अपनी अपील में सफल होने का अच्छा मौका है।
मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सजा को निलंबित करने की दोषी की याचिका पर गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया और मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद तय की।