मनीषा शर्मा। देश के सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसी याचिका पर सुनवाई हुई, जिसने न केवल पश्चिम बंगाल बल्कि राजस्थान और देश के कई अन्य राज्यों में काम कर रहे प्रवासी मजदूरों के हालात पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मामला उन गरीब मजदूरों से जुड़ा है जिन्हें केवल इसलिए हिरासत में लिया जा रहा है क्योंकि वे बंगाली भाषा बोलते हैं या उनके पास बंगाली में लिखे दस्तावेज मौजूद हैं। इन्हें तुरंत बांग्लादेशी नागरिक मान लिया जाता है और नागरिकता की जांच के नाम पर हिरासत में डाल दिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गंभीरता दिखाते हुए केंद्र सरकार और नौ राज्यों — राजस्थान, ओडिशा, महाराष्ट्र, दिल्ली, बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा और पश्चिम बंगाल — से जवाब मांगा है। अदालत ने साफ कहा कि असली भारतीय नागरिकों को इस तरह से बेवजह परेशान नहीं किया जा सकता और इसके लिए एक ठोस एवं न्यायसंगत प्रक्रिया तैयार की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता की दलील: भाषा और दस्तावेज बने परेशानी का आधार
इस याचिका को पश्चिम बंगाल प्रवासी कल्याण बोर्ड ने दायर किया है। याचिकाकर्ता का कहना है कि गृह मंत्रालय के एक सर्कुलर का हवाला देकर राज्यों में बंगाली भाषी मजदूरों को निशाना बनाया जा रहा है। मजदूरों के वकील प्रशांत भूषण ने अदालत में बताया कि यदि किसी मजदूर के पहचान पत्र या किसी अन्य दस्तावेज में बंगाली भाषा का इस्तेमाल है, तो अधिकारियों द्वारा इसे संदेह का आधार मान लिया जाता है। कई मामलों में तो सिर्फ भाषा बोलने के कारण ही व्यक्ति को बांग्लादेशी समझ लिया जाता है।
यह समस्या केवल एक राज्य तक सीमित नहीं है। मजदूरों के साथ इस तरह की घटनाएं राजस्थान समेत उन सभी राज्यों में हो रही हैं जहां प्रवासी श्रमिक बड़ी संख्या में काम करते हैं। इन मजदूरों की भूमिका स्थानीय अर्थव्यवस्था में अहम है, लेकिन हालात ऐसे हैं कि अब उन्हें रोजी-रोटी के साथ अपनी पहचान बचाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।
राजस्थान में भी बढ़ी चिंता
राजस्थान में भी, विशेषकर निर्माण, ईंट-भट्टा, कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बंगाली भाषी मजदूर काम करते हैं। ये लोग वर्षों से राज्य की आर्थिक गतिविधियों में योगदान दे रहे हैं। लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि नागरिकता जांच के नाम पर इन लोगों को हिरासत में लिया जा रहा है, जिससे उनके बीच भय का माहौल है। कई मजदूरों का कहना है कि उन्हें बिना किसी ठोस सबूत के केवल भाषा के आधार पर हिरासत में लिया गया, और फिर लंबी पूछताछ के बाद ही छोड़ा गया।
वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में यह भी कहा कि सरकार को नागरिकता की जांच करने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इस प्रक्रिया में मजदूरों को हिरासत में रखना अन्यायपूर्ण है। इससे न केवल उनकी आजीविका प्रभावित होती है, बल्कि यह उनके मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी: असली और नकली में फर्क जरूरी
सुप्रीम कोर्ट की बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमल्य बागची शामिल थे, ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि राज्यों को यह जानने का अधिकार है कि मजदूर कहां से आए हैं। लेकिन समस्या तब उत्पन्न होती है जब जांच पूरी होने तक इन मजदूरों को हिरासत में रखकर उन्हें अनावश्यक कष्ट दिया जाता है।
बेंच ने कहा कि अभी किसी तरह का अंतरिम आदेश देना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे गलत तरीके से देश में प्रवेश करने वाले लोगों को भी फायदा मिल सकता है। अदालत का मानना था कि नागरिकता की जांच एक संवेदनशील मुद्दा है और इसमें जल्दबाजी से कोई भी पक्ष नुकसान में आ सकता है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी जोर देकर कहा कि असली भारतीय नागरिकों को किसी भी परिस्थिति में बेवजह परेशान नहीं किया जाना चाहिए।
राज्यों से जवाब की मांग
अदालत ने केंद्र सरकार और सभी संबंधित राज्यों से यह बताने के लिए कहा है कि मजदूरों की पहचान की जांच के लिए वर्तमान में क्या प्रक्रिया अपनाई जा रही है। साथ ही, यह भी पूछा गया है कि किस तरह यह सुनिश्चित किया जाएगा कि भारतीय नागरिक, विशेषकर गरीब और अशिक्षित प्रवासी मजदूर, इस प्रक्रिया के दौरान प्रताड़ना का शिकार न हों। अदालत ने कहा कि राज्य सरकारों को संतुलन बनाना होगा — अवैध रूप से देश में आए लोगों की पहचान और देश से निष्कासन जरूरी है, लेकिन इसके बहाने असली नागरिकों के अधिकारों का हनन स्वीकार्य नहीं है।
मजदूरों के अधिकार और अदालत का दृष्टिकोण
यह मामला केवल कानूनी बहस तक सीमित नहीं है, बल्कि यह गरीब प्रवासी मजदूरों के मानवीय अधिकारों से जुड़ा मुद्दा है। नागरिकता के सबूत पेश करना किसी भी अशिक्षित, गरीब या प्रवासी व्यक्ति के लिए आसान काम नहीं होता, खासकर तब जब वे सैकड़ों किलोमीटर दूर आकर काम कर रहे हों। सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप से उम्मीद है कि भविष्य में भाषा या दस्तावेज के आधार पर किसी को संदिग्ध मानकर हिरासत में लेने की प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।


