मनीषा शर्मा। राजस्थान में छात्र राजनीति का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। छात्रसंघ चुनावों की बहाली को लेकर लंबे समय से चल रही बहस और आंदोलनों के बीच राजस्थान विश्वविद्यालय ने राजस्थान हाईकोर्ट में अपना जवाब पेश किया है। विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया कि छात्रसंघ चुनाव तभी होंगे जब राज्य सरकार चुनाव का नोटिफिकेशन जारी करेगी।
इस जवाब के साथ विश्वविद्यालय ने यह भी कहा कि चुनाव कराने का अंतिम अधिकार राज्य सरकार के पास है। विश्वविद्यालय केवल आदेश का पालन करेगा। इससे यह साफ हो गया है कि छात्रसंघ चुनाव पर अब पूरी जिम्मेदारी राज्य सरकार पर ही है।
हाईकोर्ट में पेश हुआ मामला
यह मामला छात्र जय राव द्वारा दायर याचिका से जुड़ा हुआ है। उन्होंने छात्रसंघ चुनाव बहाल करने की मांग की थी। इस पर सुनवाई के दौरान राजस्थान विश्वविद्यालय ने 1 सितंबर को हाईकोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया।
जवाब में विश्वविद्यालय ने कहा कि वह सरकार की मंशा के अनुसार ही कार्य करेगा। यदि राज्य सरकार चुनाव का नोटिफिकेशन जारी करती है तो विश्वविद्यालय तत्परता से चुनाव कराने के लिए तैयार है।
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे एडवोकेट शांतनु पारीक ने बताया कि केस की अगली सुनवाई अब 3 सितंबर को होगी।
सरकार पहले ही दे चुकी है जवाब
इससे पहले राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट में जवाब दाखिल किया जा चुका है। सरकार ने राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलगुरुओं (Vice Chancellors) की सिफारिशों को आधार बनाया और कहा कि इस समय छात्रसंघ चुनाव कराना उचित नहीं है।
पिछली सरकार ने नई शिक्षा नीति लागू होने का हवाला देकर छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगा दी थी। तब से छात्रों की ओर से लगातार चुनाव बहाली की मांग उठ रही है। कई जगहों पर आंदोलन और धरने भी हुए। बावजूद इसके सरकार ने चुनाव कराने को लेकर अपनी अनिच्छा स्पष्ट कर दी है।
यूनिवर्सिटी ने किया सरकार का समर्थन
राजस्थान विश्वविद्यालय ने अपने जवाब में साफ कहा कि छात्रसंघ चुनाव का नोटिफिकेशन जारी करने का अधिकार सरकार के पास है। विश्वविद्यालय केवल आयोजन की प्रक्रिया देख सकता है।
इस बयान के साथ यह भी स्पष्ट हो गया कि विश्वविद्यालय सरकार के पक्ष में खड़ा है और अदालत में भी उसने वही बात दोहराई जो सरकार पहले कह चुकी है।
छात्र आंदोलन और राजनीति पर असर
राजस्थान में छात्र राजनीति हमेशा से बड़े स्तर पर सक्रिय रही है। छात्रसंघ चुनाव केवल विश्वविद्यालय तक सीमित नहीं होते बल्कि राज्य की मुख्यधारा की राजनीति पर भी असर डालते हैं। यही कारण है कि छात्र लगातार चुनाव बहाली की मांग करते आ रहे हैं।
छात्र संगठनों का कहना है कि चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा हैं और इन्हें रोकना छात्रों की आवाज दबाने जैसा है। वहीं सरकार का पक्ष है कि नई शिक्षा नीति और बदलते शैक्षणिक माहौल में छात्रसंघ चुनाव इस समय उपयुक्त नहीं हैं।
अगली सुनवाई 3 सितंबर को
1 सितंबर को पेश किए गए जवाब के बाद अब मामला 3 सितंबर को फिर से हाईकोर्ट में सुना जाएगा। अदालत यह तय करेगी कि सरकार और विश्वविद्यालय की दलीलें किस हद तक उचित हैं और क्या छात्रों की बहाली की मांग पर कोई ठोस फैसला हो सकता है।