राजस्थान के अजमेर में स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह विश्वभर में एक प्रसिद्ध सूफी धार्मिक स्थल है। इस दरगाह को देखने हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं, लेकिन हाल ही में यह दरगाह एक बड़े विवाद के केंद्र में आ गई है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर की गई याचिका में दावा किया गया है कि दरगाह की जमीन पर पहले एक शिव मंदिर था। यह याचिका कोर्ट में स्वीकार कर ली गई है, जिसके बाद यह मामला धार्मिक और राजनीतिक बहस का हिस्सा बन गया है।
याचिका में ऐतिहासिक तथ्यों और किताबों का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि दरगाह की जगह पर पहले भगवान शिव का मंदिर था, जहां जलाभिषेक और पूजा होती थी। इसके साथ ही, जैन मंदिर के अवशेष होने का भी उल्लेख किया गया है। कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए प्रतिवादी को नोटिस जारी किए हैं, और अब यह मामला कानूनी निर्णय की ओर बढ़ रहा है।
याचिका में क्या है दावा?
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा दायर की गई याचिका में कई महत्वपूर्ण दावे किए गए हैं:
- शिव मंदिर का अस्तित्व: याचिका में कहा गया है कि वर्तमान दरगाह परिसर में पहले भगवान शिव का मंदिर था।
- किताब का हवाला: याचिका में हरविलास शारदा की किताब का उल्लेख किया गया है, जिसमें दावा किया गया है कि दरगाह परिसर में एक गर्भगृह या तहखाना है, जहां पहले शिवलिंग था।
- मंदिर के अवशेष: किताब के अनुसार, दरगाह के 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे का निर्माण मंदिर के मलबे के अंशों से किया गया है।
- जैन मंदिर का दावा: याचिका में यह भी दावा किया गया है कि दरगाह की जगह पर जैन मंदिर था।
शिक्षा मंत्री का बयान
राजस्थान सरकार के शिक्षा और पंचायती राज मंत्री मदन दिलावर ने इस विवाद पर कहा कि ऐतिहासिक तौर पर यह सच है कि बाबर, औरंगजेब जैसे शासकों ने कई मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई थीं। उन्होंने कहा कि न्यायालय इस मामले पर निर्णय करेगा। अगर खुदाई के आदेश दिए जाते हैं और शिव मंदिर के अवशेष मिलते हैं, तो यह साबित हो जाएगा कि याचिका में किए गए दावे सही हैं।
दरगाह की ऐतिहासिकता और धार्मिक महत्व
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह 12वीं सदी के सूफी संत से जुड़ी है, जो इस्लाम के चिश्ती सिलसिले के संस्थापक थे। यह दरगाह भारत में सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक एकता का प्रतीक मानी जाती है। यहां हर धर्म और पंथ के लोग श्रद्धा से आते हैं।
लेकिन, याचिका में दरगाह को शिव मंदिर या जैन मंदिर की भूमि बताने के दावे ने इसे धार्मिक टकराव का मुद्दा बना दिया है।
किताब का आधार
याचिका में हरविलास शारदा की किताब का हवाला दिया गया है। इस किताब में उल्लेख है कि:
- दरगाह परिसर में स्थित बुलंद दरवाजे का निर्माण मंदिर के मलबे से किया गया।
- परिसर के अंदर एक तहखाना है, जिसे गर्भगृह माना गया है।
- तहखाने में शिवलिंग होने के प्रमाण का भी दावा किया गया है।
- जैन मंदिर के अवशेष भी यहां होने का दावा किया गया है।
कोर्ट की प्रक्रिया और अगले कदम
27 नवंबर 2024 को कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए प्रतिवादी पक्ष को नोटिस जारी किए। अब कोर्ट इस मामले में जांच के आदेश दे सकता है, जिसमें खुदाई और ऐतिहासिक प्रमाणों की खोज शामिल हो सकती है।
अगर कोर्ट खुदाई के आदेश देता है और मंदिर के अवशेष मिलते हैं, तो यह विवाद और बढ़ सकता है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस मामले ने राजनीतिक और धार्मिक हलकों में हलचल मचा दी है।
- हिंदू संगठनों का समर्थन: कई हिंदू संगठन इस याचिका का समर्थन कर रहे हैं और इसे ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर सही बता रहे हैं।
- मुस्लिम संगठनों की प्रतिक्रिया: मुस्लिम समुदाय ने इन दावों को खारिज किया है और इसे धार्मिक सौहार्द बिगाड़ने की साजिश बताया है।
- सरकार की स्थिति: राज्य सरकार ने मामले को कोर्ट पर छोड़ दिया है, लेकिन शिक्षा मंत्री के बयान ने इसे और चर्चा में ला दिया है।
विशेषज्ञों की राय
इतिहासकार और पुरातत्वविद इस विवाद को ऐतिहासिक तथ्यों और धार्मिक आस्थाओं के बीच संतुलन का मामला मानते हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के दावे ऐतिहासिक स्थलों की धार्मिक पहचान को बदलने की कोशिश करते हैं।
वहीं, कुछ का कहना है कि अगर ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं, तो उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
दरगाह विवाद से उठते सवाल
- क्या धार्मिक स्थलों की ऐतिहासिक पहचान को बदलना उचित है?
- क्या ऐसे दावे सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकते हैं?
- अगर कोर्ट मंदिर के अवशेष मिलने की पुष्टि करता है, तो इसका धार्मिक और सामाजिक प्रभाव क्या होगा?
अजमेर की ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह का विवाद धार्मिक, सामाजिक और कानूनी बहस का प्रमुख मुद्दा बन गया है। याचिका में किए गए दावे और कोर्ट की सुनवाई इस मामले को और जटिल बना रहे हैं।