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ओरण भूमि संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी: राज्य समिति गठित

ओरण भूमि संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी: राज्य समिति गठित

मनीषा शर्मा। राजस्थान की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से जुड़ी ओरण भूमि, जिसे लोकदेवताओं और मंदिरों के आसपास चरागाह एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सुरक्षित माना जाता है, को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा निर्णय लिया है। देश की सर्वोच्च अदालत ने राजस्थान राज्य सरकार द्वारा गठित समिति को औपचारिक मंजूरी प्रदान की है। साथ ही, पर्यावरण मंत्रालय के सचिव तन्मय कुमार के खिलाफ जारी अवमानना नोटिस को भी समाप्त कर दिया है।

समिति की अध्यक्षता हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश करेंगे

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश श्री जितेन्द्र राय गोयल को समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। इसके अतिरिक्त, राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित सभी सदस्यों के नामों को भी स्वीकृति दे दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संतोष जताते हुए कार्य को आगे बढ़ाने की अनुमति दी।

पृष्ठभूमि: कोर्ट का पूर्व आदेश और देरी

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर 2024 को दिए गए आदेश में ओरण भूमि के संरक्षण के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का निर्देश दिया था। इसके अनुपालन में राज्य सरकार ने 9 जनवरी 2025 को एक शपथ पत्र प्रस्तुत कर बताया कि उसने अपने सदस्यों का नाम तय कर लिया है और समिति के अध्यक्ष के लिए नाम पर्यावरण मंत्रालय को भेज दिया है।

लेकिन इसके बावजूद, पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गई। सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद 16 जनवरी और 16 अप्रैल 2025 को दो बार आदेश पारित किए, लेकिन मंत्रालय की ओर से न तो समिति के गठन की पुष्टि की गई और न ही प्रतिनिधि का नामांकन हुआ।

अवमानना नोटिस और सचिव की सफाई

समिति गठन में हुई इस देरी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण सचिव तन्मय कुमार के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था। सुनवाई के दौरान तन्मय कुमार स्वयं कोर्ट में उपस्थित हुए और उन्होंने समिति गठन की कार्यवाही पूरी करने से संबंधित शपथ पत्र अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया। कोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए उनके खिलाफ की गई अवमानना कार्रवाई को समाप्त कर दिया।

क्या है ओरण भूमि और इसका महत्व?

ओरण भूमि, जिसे देवबन भी कहा जाता है, राजस्थान की परंपरागत भूमि व्यवस्थाओं में एक विशेष स्थान रखती है। यह भूमि आमतौर पर लोकदेवताओं या मंदिरों के आसपास स्थित होती है, जहां जीव-जंतुओं, पशुओं और वन्य जीवों के लिए प्राकृतिक आवास छोड़ दिया जाता है। यह स्थान धार्मिक आस्था से जुड़ा होता है और यहां पेड़ की एक शाखा तक तोड़ना प्रतिबंधित होता है।

बीते कुछ वर्षों में ओरण भूमि को लेकर विवाद बढ़े हैं, क्योंकि कई स्थानों पर इस भूमि पर अवैध कब्जों, विकास कार्यों या उपयोग परिवर्तन की घटनाएं सामने आई हैं। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट को इसके संरक्षण हेतु निर्देश जारी करने पड़े।

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