शोभना शर्मा। देश भर में मुस्लिम समुदाय में बकरीद का जोश चरम पर है, और राजस्थान का अजमेर शहर इस उत्सव की तैयारियों में पूरी तरह डूबा हुआ है। बकरीद के अवसर पर हर साल बकरों की कुर्बानी दी जाती है, लेकिन इस बार अजमेर में बकरों की देखभाल और परवरिश का स्तर असाधारण है। यहां के बकरे सिर्फ स्थानीय बाजार में ही नहीं, बल्कि दुबई और सऊदी अरब जैसे देशों में भी अपनी खास नस्ल और परवरिश की वजह से काफी डिमांड में हैं।
एक साल की सेवा, बच्चों की तरह परवरिश
अजमेर की दरगाह के पास स्थित साबरी गली में रहने वाले रमजान अली चिश्ती, सैयद जिशान ख़्वाजगानी और तालिब चिश्ती जैसे पशुपालक पिछले एक वर्ष से बकरीद के लिए खास नस्ल के बकरों की सेवा में लगे हुए हैं। ये बकरे केवल पशु नहीं हैं, बल्कि इन्हें परिवार का हिस्सा माना जा रहा है। उन्हें रोजाना दूध, दही, काजू, बादाम, पिस्ता, किशमिश, अंगूर और आम जैसे महंगे फलों का आहार दिया जाता है। इनकी परवरिश इतनी विशेष है कि ये बकरे सामान्य बकरों से कहीं अधिक ताकतवर, सुंदर और स्वस्थ नजर आते हैं।
गर्मी से राहत के लिए एसी-कूलर
राजस्थान की भीषण गर्मी में बकरों को राहत देने के लिए रमजान अली और अन्य पशुपालकों ने विशेष इंतजाम किए हैं। बकरों को एयर कंडीशनर और कूलर युक्त कमरों में रखा जाता है ताकि वे गर्मी की वजह से बीमार न हों और स्वस्थ रहें। रमजान अली का कहना है कि जब कोई चीज़ अल्लाह की राह में कुर्बान की जाती है, तो उसका पालन-पोषण भी उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ होना चाहिए।
उन्होंने बताया कि इन बकरों से एक प्रकार का भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है। जब कुर्बानी का वक्त आता है तो एक ओर खुशी होती है कि अल्लाह का हुक्म पूरा हो रहा है, वहीं दूसरी ओर इनसे बिछड़ने का दुख भी होता है। यही इस त्योहार की असली भावना है—प्यार, समर्पण और त्याग का संगम।
बकरीद: इतिहास और धार्मिक परंपरा
इस्लाम धर्म में बकरीद का विशेष स्थान है। इसे ईद-उल-अजहा या कुर्बानी की ईद भी कहा जाता है। इस परंपरा की जड़ें पैगंबर इब्राहिम अलैहिस्सलाम की उस परीक्षा से जुड़ी हैं जब उन्होंने अल्लाह के आदेश पर अपने सबसे प्रिय पुत्र इस्माइल को कुर्बान करने का फैसला लिया। अल्लाह ने उनकी नीयत देखी और एक बकरे को भेजा ताकि उनकी जगह कुर्बानी दी जा सके। तभी से इस्लामिक परंपरा में बकरीद पर कुर्बानी देना धार्मिक कर्तव्य बन गया है।
अजमेर की बकरा मंडी में विदेशी डिमांड
अजमेर की बकरा मंडी में इन दिनों विशेष हलचल देखी जा सकती है। मंडी में गुजरात, सोजत, बीकानेर और आसपास के गांवों से आए बकरे बिक्री के लिए उपलब्ध हैं। यहां के बकरों की न केवल राजस्थान में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी मांग है। व्यापारी बताते हैं कि दुबई, कतर, कुवैत और सऊदी अरब से भी इन बकरों की ऑनलाइन डिमांड आती है, और कई बार बकरे वहां भेजे भी जाते हैं। अजमेर के बकरों की खासियत उनकी देखभाल, नस्ल और पोषण है, जिसकी वजह से ये अच्छी कीमत पर बिकते हैं।
एक व्यापारी ने बताया कि एक खास नस्ल का बकरा जो आमतौर पर 15 से 20 हजार में मिलता है, उसकी कीमत यहां 50 हजार से एक लाख रुपये तक जाती है। वहीं, जिन बकरों की देखभाल बेहद लगन से की गई होती है, वे दो से तीन लाख रुपये में भी बिक जाते हैं।
प्यार और कुर्बानी का अनोखा संगम
बकरीद केवल कुर्बानी का त्योहार नहीं है, बल्कि यह प्यार, सेवा और श्रद्धा का संदेश भी देता है। अजमेर जैसे धार्मिक और सांस्कृतिक शहर में यह पर्व विशेष भक्ति और भव्यता के साथ मनाया जाता है। यहां बकरों को परिवार का सदस्य समझकर उनकी सेवा की जाती है। इससे समाज में पशुप्रेम, कर्तव्य और समर्पण का भाव भी उत्पन्न होता है।
बकरीद के इस अवसर पर जहां एक ओर धार्मिक आस्था की अभिव्यक्ति होती है, वहीं दूसरी ओर यह पर्व हमें सिखाता है कि अपने प्रियतम की भी कुर्बानी देकर ईश्वर की राह पर चलना सच्ची भक्ति का प्रतीक है।


