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शायराना तेवर और तलवार हाथ में, वसुंधरा राजे के इशारों से गरमाई सियासत

शायराना तेवर और तलवार हाथ में, वसुंधरा राजे के इशारों से गरमाई सियासत

शोभना शर्मा। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की वरिष्ठ नेत्री वसुंधरा राजे एक बार फिर अपने शायराना अंदाज में गहरी राजनीतिक बात कह गईं। शुक्रवार, 2 मई को सिरोही जिले के रेवदर में आंजनी माता मंदिर में एक धार्मिक समारोह के दौरान राजे ने एक मार्मिक शायरी प्रस्तुत की, जिससे पूरे प्रदेश के सियासी गलियारों में चर्चा का माहौल बन गया है।

कार्यक्रम में राजे के हाथ में प्रतीकात्मक तलवार और चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन उनकी जुबान से निकले शेर किसी राजनीतिक पीड़ा या आत्ममंथन की ओर इशारा करते दिखे। उन्होंने मंच से जो शायरी पढ़ी, वह थी:

“गमों की आंच पर आंसू उबालकर देखो
बनेंगे रंग किसी पर भी डाल कर देखो
तुम्हारे दिल की चुभन जरूर कम होगी
किसी के पांव से कांटा निकाल कर तो देखो।”

यह शायरी मशहूर शायर कुंवर बेचैन की है और इसका भावार्थ यह है कि अपने दुखों को भुलाकर यदि कोई दूसरों की मदद करता है, तो उसका मन भी हल्का होता है। वसुंधरा राजे ने यह शायरी धार्मिक पृष्ठभूमि में जरूर पढ़ी, लेकिन इसके निहितार्थ गहरे राजनीतिक माने जा रहे हैं।

राजनीति के संकेत या व्यक्तिगत भावनाएं?

भाजपा की सरकार राजस्थान और केंद्र दोनों जगह सत्ता में है, ऐसे में राजे के शेर पढ़ने की टाइमिंग पर सियासी विश्लेषकों की नजरें टिकी हैं। क्या यह राजे की पीड़ा का संकेत था? क्या वे भाजपा में अपनी स्थिति को लेकर चिंतित हैं? या फिर वे संकेत दे रही हैं कि अब भी वे लोगों की सेवा में समर्पित हैं, भले ही उन्हें दरकिनार किया गया हो?

लंबे राजनीतिक अनुभव की झलक

रेवदर के इस धार्मिक आयोजन में लोकसभा सांसद लुंबाराम चौधरी सहित बड़ी संख्या में स्थानीय गणमान्य और महिलाएं उपस्थित रहीं। मंच से अपने संबोधन में राजे ने अपने 25 वर्षों के राजनीतिक अनुभव का जिक्र करते हुए कहा कि उन्होंने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, लेकिन जनता हमेशा उनके साथ ढाल बनकर खड़ी रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जनता ने कभी उनके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचने दी।

पहले भी दे चुकी हैं कई इशारे

यह पहली बार नहीं है जब वसुंधरा राजे ने इशारों में गहरे राजनीतिक संदेश दिए हों। पिछले छह महीनों में वे कई बार मंच से शायरी या मुहावरों के जरिए ऐसी बातें कह चुकी हैं, जिन्हें लेकर पार्टी के भीतर और बाहर कयास लगाए गए।

उदाहरण के तौर पर, जब मदन राठौड़ भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष बने और जयपुर आए, तब राजे ने कहा था:
“सबको साथ लेकर चलना बहुत मुश्किल काम है, कई लोग इसमें फेल हो चुके हैं।”

उदयपुर में धर्मसभा के दौरान उन्होंने कहा था:
“काश ऐसी बारिश आए, जिसमें अहम डूब जाएं, मतभेद के किले ढह जाएं, घमंड चूर-चूर हो जाए।”

सितंबर 2024 में जब ओम माथुर राज्यपाल बने, उस वक्त के सम्मान समारोह में राजे ने कहा था:
“ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें पीतल की लौंग मिल जाए तो वह अपने आप को सर्राफा समझने लगते हैं।”

इतना ही नहीं, हाल ही में झालरापाटन में महाराणा प्रताप जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा था:
“सांप से कितना ही प्रेम कर लो, वह अपने स्वभाव के अनुरूप कभी न कभी आप पर जहर उगलेगा ही।”

इन सभी बयानों और शायरियों को राजनीतिक संकेतों के तौर पर देखा गया और अब रेवदर की इस शायरी को भी उसी दृष्टिकोण से देखा जा रहा है।

भविष्य की राजनीति का संकेत?

राजे के हालिया तेवरों से यह साफ झलकता है कि वे अभी भी पूरी तरह से राजनीतिक सक्रियता बनाए रखना चाहती हैं। भाजपा नेतृत्व से उनकी नाराजगी की खबरें पहले भी आती रही हैं। माना जाता है कि राजस्थान भाजपा में उन्हें दरकिनार किया जा रहा है, लेकिन उनकी जनाधार की ताकत आज भी बनी हुई है। ऐसे में उनकी यह शायरी, तलवार हाथ में और मुस्कुराता चेहरा, आने वाले समय में राजस्थान की राजनीति में किसी बड़े घटनाक्रम का संकेत हो सकता है।

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