शोभना शर्मा। भारत और अमेरिका के बीच हाल ही में व्यापार और टैरिफ को लेकर तनाव गहराता जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाकर 50% करने के फैसले के बाद कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे अमेरिका का “दोहरे मापदंड” अपनाने का उदाहरण बताया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अब वह समय बीत चुका है जब कोई देश भारत को आदेश देकर अपनी शर्तें मनवा सकता था।
ट्रंप के आरोपों पर शशि थरूर का पलटवार
शशि थरूर ने अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के उस बयान पर भी कड़ी प्रतिक्रिया दी, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारतीय रुपया यूक्रेन में युद्ध के लिए रूसी मशीनों को ईंधन दे रहा है, जबकि अमेरिकी डॉलर ऐसा नहीं कर रहा। थरूर ने इसे पूरी तरह “पाखंड” करार देते हुए कहा कि अमेरिका खुद रूस से अरबों डॉलर का आयात करता है और फिर भारत को दोषी ठहराता है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि अमेरिका हर साल रूस से करीब 2 अरब डॉलर मूल्य का फर्टिलाइजर आयात करता है। इसके अलावा, अमेरिका रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड नामक पदार्थ और पैलेडियम जैसी महत्वपूर्ण धातु भी खरीदता है, जिसका इस्तेमाल कैटेलिटिक कन्वर्टर्स में किया जाता है। थरूर के अनुसार, सिर्फ जनवरी से मई 2025 के बीच ही अमेरिका ने रूस से 2.4 बिलियन डॉलर का आयात किया, जो पिछले साल की तुलना में 20% अधिक है।
‘वो दिन लद चुके हैं, जब कोई हुक्म चला सके’
एनडीटीवी को दिए एक साक्षात्कार में थरूर ने कहा, “आप ऐसी स्थिति स्वीकार नहीं कर सकते, जहां एक ओर से हुक्म दिए जाएं और दूसरी ओर से उम्मीद की जाए कि बिना सवाल किए उसे मान लिया जाए। वो दिन लद चुके हैं। 200 वर्षों के उपनिवेशवाद के बाद भारत अब किसी को हुक्म नहीं चलाने देगा।” उन्होंने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था, सैन्य क्षमता और वैश्विक कूटनीतिक स्थिति अब इतनी मजबूत है कि कोई भी देश भारत पर अपनी शर्तें थोपने में सफल नहीं हो सकता।
अमेरिका की चीन और भारत के प्रति अलग नीति
थरूर ने अमेरिका की चीन और भारत के प्रति नीति में फर्क को भी उजागर किया। उन्होंने कहा कि चीन रूस से भारत की तुलना में कहीं अधिक तेल, गैस और अन्य वस्तुओं का आयात करता है, फिर भी अमेरिका ने चीन को बातचीत के लिए 90 दिन का समय दिया, जबकि भारत को केवल 21 दिन का समय दिया गया। इसके परिणामस्वरूप, 27 अगस्त से भारत से अमेरिका को निर्यात होने वाले उत्पादों पर 50% टैरिफ लगेगा, जबकि चीनी उत्पाद 30% टैरिफ के साथ अमेरिकी बाजार में पहुंचेंगे। थरूर के अनुसार, यह न केवल अनुचित है बल्कि अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति में भेदभाव का स्पष्ट उदाहरण है।
ट्रंप का ‘लेन-देन’ वाला रवैया
शशि थरूर ने ट्रंप को “लेन-देन करने वाला प्रसिद्ध और अप्रत्याशित व्यक्ति” बताते हुए कहा कि वह ऐसे फैसले लेते हैं जो तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए होते हैं, न कि दीर्घकालिक रणनीति के आधार पर। उन्होंने कहा कि टैरिफ बढ़ाने जैसे कदम अंतरराष्ट्रीय व्यापार में स्थिरता और विश्वास को नुकसान पहुंचाते हैं।
भारत की संभावित रणनीति
थरूर ने सुझाव दिया कि भारत को इस मामले में ठोस कूटनीतिक पहल करनी चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें बैठकर अमेरिकियों से बात करनी होगी और यह स्पष्ट करना होगा कि इस तरह का भेदभाव स्वीकार नहीं किया जाएगा।” उनके अनुसार, भारत को अपने निर्यात पर बढ़ाए गए टैरिफ के खिलाफ अमेरिका के साथ द्विपक्षीय वार्ता में मजबूती से अपनी स्थिति रखनी चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और भारत की स्थिति
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के विवाद का असर केवल भारत-अमेरिका संबंधों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक व्यापार तंत्र में भी असंतुलन पैदा करेगा। अमेरिका के इस कदम से भारत को अपने निर्यात बाजार में विविधता लाने की आवश्यकता महसूस होगी। भारत पहले से ही यूरोप, दक्षिण-पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में अपने निर्यात बाजार का विस्तार कर रहा है। टैरिफ विवाद के बीच यह कदम और तेज हो सकता है।
भारत-अमेरिका संबंधों की वर्तमान स्थिति
पिछले एक दशक में भारत और अमेरिका के बीच रक्षा, ऊर्जा, तकनीकी और शिक्षा के क्षेत्रों में साझेदारी मजबूत हुई है। लेकिन हाल के टैरिफ विवाद ने दोनों देशों के बीच भरोसे की नींव को झटका दिया है। ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को भारत में कई राजनीतिक दलों ने अनुचित और व्यापारिक दृष्टि से गलत बताया है।