मनीषा शर्मा, अजमेर। सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को लेकर हिंदू सेना द्वारा शिव मंदिर का दावा किए जाने के मामले में नया मोड़ आ गया है। दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान ने राजस्थान हाईकोर्ट में रिट याचिका दाखिल कर इस दावे पर रोक लगाने की मांग की है। संस्था ने इसे दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम 1955 और वाद मूल्यांकन अधिनियम 1961 का उल्लंघन बताया है।
यह रिट उस सिविल वाद (66/2024, संख्या 437/2024) के खिलाफ दायर की गई है, जिसे अजमेर पश्चिम के प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में हिंदू सेना द्वारा भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान के नाम पर दरगाह समिति के विरुद्ध दायर किया गया था। याचिका में दरगाह परिसर को हिंदू मंदिर घोषित करने की मांग की गई है, जिसे अंजुमन ने अनुचित, बेबुनियाद और सांप्रदायिक सौहार्द के खिलाफ बताया है।
दो प्रमुख आधारों पर दायर की गई रिट
1. वाद की फीस बेहद कम:
रिट याचिका में अंजुमन ने बताया कि याचिकाकर्ता ने करोड़ों रुपये मूल्य की दरगाह संपत्ति के अधिकार की घोषणा के लिए मात्र 50 रुपये की फीस अदा की है, जो राजस्थान कोर्ट फीस एवं वाद मूल्यांकन अधिनियम 1961 के स्पष्ट उल्लंघन में है। संस्था का कहना है कि यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है।2. क्षेत्राधिकार की कमी:
रिट में यह भी कहा गया है कि ट्रायल कोर्ट को इस मामले की सुनवाई करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि यह मामला दरगाह ख्वाजा साहब अधिनियम 1955 के अंतर्गत आता है, जिसके अनुसार धार्मिक समारोहों या संपत्ति से जुड़े मामलों में सिविल न्यायालय का कोई हस्तक्षेप नहीं हो सकता।
“700 सालों में मंदिर का कोई दावा नहीं हुआ” – सैयद सरवर चिश्ती
अंजुमन के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि उनके खिलाफ 17 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। उन्होंने यह भी कहा कि दरगाह परिसर को मंदिर घोषित करने का दावा पूरी तरह से बेबुनियाद है, क्योंकि पिछले सात सौ वर्षों में कभी भी इस तरह का कोई दावा नहीं किया गया। चिश्ती ने यह भी कहा कि “दरगाह अजमेर शरीफ सदियों से शांति, भाईचारे और सांप्रदायिक एकता का प्रतीक रहा है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब इसे राजनीतिक लाभ के लिए विवादों में घसीटा जा रहा है।”
रिट में धार्मिक प्रकृति का हवाला
रिट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि हिंदू सेना द्वारा दायर याचिका सिविल प्रकृति की नहीं है, बल्कि इसमें धार्मिक अनुष्ठानों और परंपराओं का मुद्दा है, जिस पर न्यायालय का दखल उचित नहीं है। दरगाह परिसर एक पवित्र धार्मिक स्थल है, जहां तीन ऐतिहासिक मस्जिदें मौजूद हैं और यह सभी जायरीन के लिए खुला रहता है।
कोर्ट में अगली सुनवाई 19 अप्रैल को
हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा यह याचिका 23 सितंबर 2023 को अजमेर कोर्ट में दाखिल की गई थी, जिसमें दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को पार्टी बनाया गया है। पिछली सुनवाई में दरगाह कमेटी ने जवाब के लिए समय मांगा था। 1 मार्च को अजमेर बंद के कारण कार्यवाही नहीं हो सकी। अब अगली सुनवाई 19 अप्रैल 2024 को निर्धारित की गई है।