शोभना शर्मा । खाने-पीने की चीजों में मिलावट और खतरनाक केमिकल्स का उपयोग आम होता जा रहा है। व्यापारी ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए सेहत के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। दूध, चीनी, आटा, चावल, तेल, दाल, घी, पनीर, नमक आदि में खतरनाक केमिकल्स मिलाए जा रहे हैं। ताजा मामला सेब पर कृत्रिम रंग और खतरनाक केमिकल्स के उपयोग का है। सेब पर केमिकल्स की पॉलिश होना आम बात है । सालभर तक सेब को खराब होने से बचाने के लिए और उसकी सुंदरता बनाए रखने के लिए सेब के ऊपर फफूंदनाशक और वैक्स केमिकल का प्रयोग किया जाता है।
केमिकल वाले फलों के सेहत को खतरा
फलों को चमकाने के लिए उन पर केमिकल्स और वैक्स की कोटिंग की जाती है। असली-नकली की पहचान करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन ऐसे फल सेहत को बर्बाद कर सकते हैं और कैंसर का खतरा पैदा करते है। सेब को चमकदार और लाल दिखाने के लिए उस पर मोम की परत चढ़ाई जाती है। मोम की परत में मॉर्फलिन रसायन का इस्तेमाल लीवर या किडनी की खराबी पैदा कर सकता है। इससे मतली, उल्टी और पेट दर्द हो सकता है। फलों पर कीटनाशक लगाए जाने के कारण, मोम की परत से अवशेष रह सकते हैं, जो नुकसानदायक हो सकते हैं।
एसे करें पहचान
सेब में केमिकल वाले रंग और मोम की पहचान के लिए कुछ टिप्स अपनाए जा सकते हैं। पेड़ से टूटे सेब के रंग विभिन्न हो सकते हैं। कृत्रिम रंग वाले सेब एक जैसे और बहुत चमकीले दिखते हैं। यह पता लगाने के लिए कि आपके सेब में मोम है या नहीं, उन्हें गर्म पानी में डालें। अगर छिलके पर सफेद, मोमी परत दिखाई दे तो समझें कि मोम है। पेड़ से टूटे सेब कम चमकते हैं और वैक्स की कोटिंग के सेब ज्यादा चमकदार और चिपचिपे लगते हैं। सेब को धोकर देखें कि रंग छूटता है या नहीं। प्राकृतिक रंग नहीं छूटेंगे। सूखे कपड़े से रगड़ें, अगर कृत्रिम मोम है तो हल्का सा अवशेष कपड़े पर लग सकता है। थोड़ा सा छीलकर देखें कि अंदर का रंग कैसा है। कृत्रिम रंग छिलके के नीचे तक जा सकता है।