मनीषा शर्मा। राजस्थान हाईकोर्ट ने शनिवार को बहुचर्चित 8 करोड़ रुपये के गेहूं घोटाले से जुड़े मामले में रिटायर्ड IAS अधिकारी निर्मला मीणा को बड़ा झटका दिया है।
मीणा ने राज्य सरकार द्वारा दी गई अभियोजन स्वीकृति (Prosecution Sanction) को रद्द करने की मांग करते हुए याचिका दायर की थी, लेकिन जस्टिस सुनील बेनीवाल की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने रिपोर्टेबल फैसले में कहा कि अभियोजन स्वीकृति देने का निर्णय न तो मनमाना है और न ही अवैध, बल्कि यह प्राकृतिक न्याय और प्रशासनिक विवेक के तहत लिया गया वैध निर्णय है।
क्या है मामला – 8 करोड़ रुपये का गेहूं घोटाला
मामला वर्ष 2017 का है, जब निर्मला मीणा जोधपुर की जिला रसद अधिकारी (DSO) के पद पर तैनात थीं।आरोप है कि उस दौरान उन्होंने सरकारी गेहूं की अतिरिक्त सप्लाई के आदेश देकर करोड़ों रुपये का गबन किया। एसीबी (Anti-Corruption Bureau) ने जांच के बाद पाया कि मीणा के आदेश से सरकारी राशन वितरण प्रणाली में बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हुआ और लगभग 8 करोड़ रुपये का गेहूं गलत तरीके से आवंटित किया गया। इस मामले में ACB जयपुर ने उनके खिलाफ FIR दर्ज की और 2018 में चालान पेश किया। निर्मला मीणा उस समय जोधपुर की सबसे पॉश कॉलोनी उम्मेद हेरिटेज में निवास करती थीं। एसीबी ने जांच के दौरान कई दस्तावेज और रिकॉर्ड जब्त किए थे, जिनमें गेहूं के अनियमित आवंटन के प्रमाण मिले थे।
सात साल की लंबी कानूनी लड़ाई
निर्मला मीणा के खिलाफ मामला सामने आने के बाद रसद विभाग ने 2017 में विभागीय चार्जशीट जारी की थी। विभागीय जांच अधिकारी ने मीणा को क्लीन चिट (बरी) देने की सिफारिश की थी। हालांकि, समानांतर रूप से चल रही ACB जांच में मामला गंभीर पाया गया। साल 2018 में एसीबी ने कोर्ट में चालान पेश कर दिया, लेकिन अभियोजन स्वीकृति (सरकारी अनुमति) के अभाव में आगे की कानूनी कार्रवाई अटक गई। सरकार ने उस समय अभियोजन स्वीकृति देने से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। फिर, भजनलाल सरकार ने जनवरी 2025 में मामले को दोबारा खंगाला और 27 जनवरी 2025 को अभियोजन स्वीकृति जारी कर दी।
मीणा ने हाईकोर्ट में दायर की रिट याचिका
सरकार से अभियोजन स्वीकृति मिलने के बाद निर्मला मीणा ने राजस्थान हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि अभियोजन स्वीकृति मनमाने तरीके से दी गई है और यह शक्ति के अनुचित प्रयोग का उदाहरण है। मीणा ने अपने पक्ष में तीन प्रमुख तर्क रखे—
विभागीय जांच अधिकारी ने उन्हें क्लीन चिट दी थी।
सरकार ने पहले अभियोजन स्वीकृति अस्वीकार कर दी थी।
कार्मिक विभाग ने बिना पिछली अस्वीकृति पर विचार किए दोबारा स्वीकृति दे दी।
उनके वकील सी.एस. कोटवानी और समर्पित गुप्ता ने कोर्ट में दलील दी कि अभियोजन स्वीकृति देने का निर्णय 7 साल बाद लिया गया, जो प्रशासनिक मनमानी को दर्शाता है।
सरकार की ओर से सख्त तर्क – ‘करोड़ों का गेहूं गबन’
सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट और अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) राजेश पंवार तथा एडवोकेट मीनल सिंघवी ने मामले में पक्ष रखा।
उन्होंने कहा कि अभियोजन स्वीकृति देने या रोकने के मामलों में न्यायालय का हस्तक्षेप सीमित होता है।सरकार के वकीलों ने बताया कि—
निर्मला मीणा के खिलाफ FIR दर्ज है और उन्होंने जिला रसद अधिकारी रहते हुए अपने पद का दुरुपयोग किया।
मीणा पर करोड़ों रुपये के गेहूं गबन का गंभीर आरोप है।
जांच में स्पष्ट हुआ कि उनके आदेश से राशन वितरण में गड़बड़ी हुई।
वे इस मामले में लगभग एक महीने तक जेल में भी रही हैं।
सरकार ने कहा कि पूर्व में अभियोजन स्वीकृति नहीं देना एक प्रशासनिक निर्णय था, लेकिन अब जांच में पर्याप्त साक्ष्य सामने आने पर सरकार ने उचित रूप से मंजूरी दी है।
कोर्ट ने कहा – अभियोजन स्वीकृति न तो अवैध, न मनमानी
जस्टिस सुनील बेनीवाल ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि अभियोजन स्वीकृति देने का निर्णय कानून के अनुसार और प्रशासनिक विवेकाधिकार के तहत लिया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी लोक सेवक के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति देने का निर्णय मूल रूप से कार्यपालिका का अधिकार है, जिसमें न्यायालय को सीमित दखल देना चाहिए। कोर्ट ने अपने रिपोर्टेबल जजमेंट में लिखा— “अभियोजन स्वीकृति देने का निर्णय न तो मनमाना है और न ही अवैध। राज्य सरकार ने पर्याप्त साक्ष्य और जांच रिपोर्टों के आधार पर यह अनुमति दी है।” इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने निर्मला मीणा की याचिका को पूर्ण रूप से खारिज कर दिया।
एसीबी जांच की स्थिति
एसीबी ने अपनी 2018 की चार्जशीट में बताया था कि निर्मला मीणा ने अपने पद का दुरुपयोग कर सरकारी खाद्यान्न की आपूर्ति में गंभीर अनियमितताएं कीं।
उनके आदेश से जरूरत से ज्यादा गेहूं उठाया गया और वितरण में वित्तीय हेराफेरी हुई।इसके अलावा, 2018 में उनके खिलाफ दो अन्य एफआईआर भी दर्ज की गई थीं—
आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का मामला।
पुलिस विश्वविद्यालय में गड़बड़ी का मामला।
हालांकि, इन दोनों मामलों में 30 जनवरी 2023 को FR (Final Report) लगा दी गई, लेकिन गेहूं घोटाले में एसीबी ने अपनी रिपोर्ट में घोटाले को सिद्ध माना।
निर्मला मीणा का करियर और विवाद
निर्मला मीणा राजस्थान प्रशासनिक सेवा से प्रोन्नत होकर IAS बनी थीं। अपने करियर के दौरान उन्होंने कई जिलों में प्रशासनिक पदों पर कार्य किया। जोधपुर में तैनाती के दौरान उनके खिलाफ पहली बार भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे। उनके खिलाफ कार्रवाई को लेकर लंबे समय तक प्रशासन में राजनीतिक और नौकरशाही खींचतान चलती रही। कई बार विभागीय स्तर पर उन्हें राहत मिली, लेकिन एसीबी की जांच ने उन्हें घेर लिया।


