मनीषा शर्मा, अजमेर । अजमेर का रामसेतु ब्रिज एक बार फिर कानूनी और प्रशासनिक विवादों के घेरे में आ गया है। बुधवार को सिविल न्यायालय पश्चिम अजमेर में इस मामले पर सुनवाई हुई, जिसमें अदालत ने जिला कलेक्टर लोक बंधु, नगर निगम आयुक्त देशलदान और परियोजना निदेशक चारु मित्तल को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अब तक की गई कार्रवाई का पूरा ब्यौरा शपथ पत्र के रूप में पेश किया जाए और अगली सुनवाई पर सक्षम अधिकारी को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होगा। न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने मामले की अगली सुनवाई 24 सितंबर 2025 को निर्धारित की है।
पूर्व विधायक ने लगाई अवमानना याचिका
रामसेतु ब्रिज मामले को लेकर यह याचिका पूर्व विधायक डॉ. राजकुमार जयपाल द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि अदालत ने 11 जुलाई को इस मामले में जो आदेश पारित किया था, उसकी अब तक पालना नहीं की गई। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि रामसेतु ब्रिज के प्रमुख स्थानों पर आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर के साथ सार्वजनिक सूचना बोर्ड लगाए जाएं। यह निर्देश नागरिकों की सुरक्षा और सुविधा को ध्यान में रखकर दिया गया था, लेकिन आज तक इन बोर्डों को लगाने की कार्रवाई नहीं की गई।
कोर्ट को गुमराह करने का आरोप
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए एडवोकेट विवेक पाराशर ने बताया कि इस मामले में सिर्फ आदेशों की अनदेखी ही नहीं हुई, बल्कि अदालत को गलत तथ्यों से गुमराह करने की कोशिश भी की गई। उन्होंने कहा कि राजस्थान राज्य सड़क विकास निगम (RSRDC) यूनिट अजमेर ने न्यायालय में शपथ पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें दावा किया गया कि एलिवेटेड रोड को शुरू करने से पहले सभी सुरक्षा मानकों और आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया गया है। लेकिन वास्तविकता यह है कि सोनी जी की नसियां वाली भुजा अब तक शुरू ही नहीं की गई है।
जांच अधूरी, फिर भी शपथ पत्र दाखिल
एडवोकेट पाराशर ने यह भी बताया कि इस मामले की तकनीकी जांच एमएनआईटी (मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान) द्वारा अभी प्रारंभिक स्तर पर ही है। यानी सुरक्षा और संरचना से जुड़े सवालों का पूरी तरह समाधान नहीं हुआ है। इसके बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों ने जल्दबाजी में अदालत में शपथ पत्र दाखिल कर दिया, मानो सभी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी हों। इस तरह की जल्दबाजी को लेकर अदालत ने गंभीरता दिखाई और संबंधित अधिकारियों से स्पष्ट जवाब मांगा।
न्यायालय का सख्त रुख
सुनवाई के दौरान अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि न्यायालय के आदेशों की अनदेखी किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अदालत ने जिला कलेक्टर, नगर निगम आयुक्त और परियोजना निदेशक को नोटिस जारी कर 24 सितंबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने और लिखित जवाब पेश करने का निर्देश दिया है। न्यायालय ने यह भी साफ किया कि अगर आदेशों की पालन में लापरवाही बरती जाती है, तो यह अदालत की अवमानना मानी जाएगी और सख्त कार्रवाई की जाएगी।
रामसेतु ब्रिज विवाद की पृष्ठभूमि
अजमेर का रामसेतु ब्रिज लंबे समय से विवादों और कानूनी अड़चनों में उलझा हुआ है। यह ब्रिज शहर के यातायात और कनेक्टिविटी के लिहाज से बेहद अहम है। इसे एक बड़े प्रोजेक्ट के रूप में विकसित किया गया था, ताकि शहर में जाम और ट्रैफिक की समस्या को दूर किया जा सके। लेकिन इसके निर्माण और संचालन से जुड़े कई पहलुओं पर सवाल उठते रहे हैं। सुरक्षा मानकों, अधूरी जांच, और अधूरी सुविधाओं को लेकर स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों ने लगातार आवाज उठाई है। इसी कड़ी में पूर्व विधायक डॉ. जयपाल ने अदालत की शरण ली थी।
जनता की चिंता
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि रामसेतु ब्रिज अजमेर की लाइफलाइन है। इस पर रोजाना हजारों वाहन चलते हैं। ऐसे में अगर सुरक्षा मानकों की अनदेखी हुई तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। यही वजह है कि लोग चाहते हैं कि इस मामले की गहन जांच हो और अदालत के आदेशों का पूरी तरह पालन किया जाए। याचिकाकर्ता डॉ. जयपाल का कहना है कि यह मामला जनता की सुरक्षा से जुड़ा है और प्रशासन को इसमें कोई भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।
अगली सुनवाई पर टिकी निगाहें
अब सभी की नजरें 24 सितंबर 2025 को होने वाली अगली सुनवाई पर टिकी हुई हैं। अदालत ने साफ कर दिया है कि सक्षम अधिकारी को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होकर यह बताना होगा कि आदेशों की पालना क्यों नहीं की गई और आगे क्या कदम उठाए जा रहे हैं। अगर प्रशासन संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया, तो अदालत और सख्त रुख अपना सकती है। इस मामले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में सुरक्षा मानकों और न्यायालय के आदेशों की अनदेखी की जा रही है?