शोभना शर्मा। राजस्थान की वित्तीय स्थिति कर्ज के बढ़ते दबाव के कारण गंभीर होती जा रही है। राज्य की भजनलाल शर्मा सरकार ने अपने कार्यकाल के पहले ही वर्ष में 50,000 करोड़ रुपए का नया कर्ज ले लिया है। इसके अलावा, हाल ही में दो बड़े बैंकों से 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपए का अतिरिक्त कर्ज लेने के लिए सहमति दी गई है। यह कर्ज राजस्थान के आधारभूत ढांचे और परियोजनाओं को विकसित करने के उद्देश्य से लिया जा रहा है, लेकिन इसका बढ़ता बोझ राज्य के राजस्व और विकास को प्रभावित कर सकता है।
कर्ज की वर्तमान स्थिति
राजस्थान सरकार ने दिसंबर 2024 तक 50,000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है। यह आंकड़ा राज्य के कुल कर्ज को 5 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचाने के करीब है। पिछले वित्तीय वर्ष के अंत में, राजस्थान पर कुल कर्ज का भार 4 लाख 44 हजार करोड़ रुपए था। यह भार अब लगातार बढ़ रहा है, और अनुमान है कि यह मार्च 2025 तक 5 लाख करोड़ के आंकड़े को पार कर जाएगा।
मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की उपस्थिति में वित्त विभाग ने हाल ही में बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ महाराष्ट्र के साथ एक एमओयू साइन किया। इस समझौते के तहत बैंक ऑफ बड़ौदा प्रति वर्ष 20 हजार करोड़ रुपए और बैंक ऑफ महाराष्ट्र 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज अगले छह वर्षों तक उपलब्ध कराएंगे। कुल मिलाकर, यह राशि 1 लाख 80 हजार करोड़ रुपए होगी, जिसे राज्य सरकार विभिन्न परियोजनाओं, जैसे बिजली और नवीकरणीय ऊर्जा, सड़क, पेयजल और स्वच्छता के लिए उपयोग करेगी।
बोर्ड-कॉरपोरेशन का संकट
राजस्थान सरकार के कर्ज का बड़ा हिस्सा बोर्ड और कॉरपोरेशन के माध्यम से भी लिया गया है। सीएजी के ऑडिटेड आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में इन बोर्ड और कॉरपोरेशन पर लगभग 1 लाख 12 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है। इनमें से अधिकांश ऐसे संस्थान हैं, जिनके पास कर्ज चुकाने के लिए आवश्यक आमदनी का कोई स्रोत नहीं है।
आरबीआई ने पहले ही सरकार को कर्ज सीमा से अधिक कर्ज लेने के प्रति आगाह किया था। वित्त वर्ष 2022-23 और 2023-24 के दौरान राज्य को तय सीमा से अधिक कर्ज लेने के लिए चेतावनी दी गई थी। हालांकि, राज्य सरकार ने इन चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए अधिक कर्ज लेना जारी रखा।
कर्ज का बोझ और बढ़ता ब्याज
राजस्थान सरकार को अपने कर्ज के ब्याज के रूप में बड़ी राशि चुकानी पड़ रही है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में, राज्य को केवल ब्याज के रूप में 37 हजार करोड़ रुपए चुकाने होंगे। यह राशि सरकार के वार्षिक बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो अन्य विकास कार्यों पर खर्च किए जाने वाले धन को सीमित कर देती है।
पिछले बजट में सरकार ने कर्ज के ब्याज के लिए 35 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया था। लेकिन बढ़ते कर्ज और ब्याज दरों में वृद्धि के कारण यह राशि अब 2 हजार करोड़ रुपए अधिक हो चुकी है।
कर्ज का असर और संभावित परिणाम
कर्ज की यह स्थिति राज्य की वित्तीय स्थिरता को दीर्घकालिक रूप से प्रभावित कर सकती है। तय सीमा से अधिक कर्ज लेने से ब्याज दरों में बढ़ोतरी होती है, जिससे कर्ज को चुकाने की अवधि भी बढ़ जाती है।
इसका एक और नकारात्मक प्रभाव यह है कि आने वाली सरकारों को इस बढ़े हुए कर्ज का सामना करना पड़ेगा। यदि वर्तमान सरकार ने दिसंबर तक 50 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लिया है, तो यह राशि भविष्य में नई परियोजनाओं और विकास कार्यों के लिए उपयोग होने के बजाय ब्याज चुकाने में ही खर्च हो जाएगी।
राजस्व संकट और सीमित संसाधन
राजस्थान सरकार के राजस्व संग्रह की स्थिति भी इस कर्ज संकट को हल करने में पर्याप्त नहीं है। राज्य के टैक्स और नॉन-टैक्स राजस्व से जो आय हो रही है, वह बढ़ते कर्ज और उसके ब्याज को चुकाने के लिए पर्याप्त नहीं है। बाजार से लगातार नए कर्ज लेने की वजह से यह समस्या और गंभीर होती जा रही है।
क्या हो सकते हैं उपाय?
कर्ज प्रबंधन: राज्य को कर्ज के प्रबंधन के लिए एक ठोस योजना बनानी होगी। अतिरिक्त कर्ज लेने से पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके लिए स्थायी राजस्व स्रोत हों।
राजस्व बढ़ाना: टैक्स और नॉन-टैक्स राजस्व बढ़ाने के लिए नई नीतियां लागू करनी होंगी।
परियोजनाओं का पुनर्मूल्यांकन: उन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जो राजस्व उत्पन्न करने में मददगार हो सकती हैं।
सुधारवादी कदम: राज्य को अपने बोर्ड और कॉरपोरेशन के लिए वित्तीय सुधार लागू करने होंगे ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें।