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राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर नगर निगम की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए

राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर नगर निगम की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए

मनीषा शर्मा।  राजस्थान हाईकोर्ट ने जयपुर नगर निगम की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि निगम के विजिलेंस विभाग में भ्रष्टाचार व्याप्त है। कोर्ट ने निगम अधिकारियों की संपत्तियों की तुलना कर यह जानने का सुझाव दिया कि वे अपनी नियुक्ति के समय कितनी संपत्ति के मालिक थे और वर्तमान में उनके पास कितनी संपत्ति है। इससे भ्रष्टाचार की वास्तविकता उजागर हो जाएगी।

अतिक्रमण पर हाईकोर्ट की नाराजगी

बुधवार को हाईकोर्ट में मानसरोवर स्थित स्वर्ण पथ पर अतिक्रमण से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। यह याचिका रामगोपाल अटल द्वारा दायर की गई थी, जिसमें बताया गया था कि स्वर्ण पथ स्थित पार्क के मुख्य मार्ग और पार्क व फ्लैट्स के बीच की जमीन पर आवासन मंडल के पूर्व कर्मचारी ने अवैध कब्जा कर रखा है। इस मामले में नगर निगम ग्रेटर जयपुर की ओर से रिपोर्ट पेश की गई, लेकिन अदालत ने इसे असंतोषजनक बताया।

विजिलेंस टीम की कार्यशैली पर उठे सवाल

इस सुनवाई के दौरान जस्टिस अवनीश झिंगन और जस्टिस मनीष शर्मा की खंडपीठ ने नगर निगम ग्रेटर जयपुर की आयुक्त रुक्मणी रियार से अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई को लेकर सवाल पूछे। जब निगम की ओर से रिपोर्ट पेश की गई, तो अदालत ने इसे नकारते हुए स्पष्ट रूप से कहा कि विजिलेंस टीम भ्रष्टाचार में लिप्त है और उनकी संपत्तियों की जांच से यह सामने आ जाएगा कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कितनी अवैध कमाई की है।

फर्जी दस्तावेजों से कब्जे का खेल

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान एक अहम टिप्पणी की कि वर्तमान में लोग आधार कार्ड और बिजली के बिल के आधार पर अतिक्रमण कर रहे हैं और अवैध रूप से संपत्ति पर दावा कर रहे हैं। अदालत ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा कि अगर केवल बिजली का बिल किसी संपत्ति का मालिकाना हक देने के लिए पर्याप्त होता, तो हमें भी सरकारी आवास आवंटित कर दिया जाए ताकि सेवानिवृत्ति के बाद उसमें आराम से रह सकें।

चंडीगढ़ की तुलना में जयपुर की बदहाल स्थिति पर कोर्ट की चिंता

हाईकोर्ट ने जयपुर और चंडीगढ़ की तुलना करते हुए नगर निगम और हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों को फटकार लगाई। अदालत ने कहा कि चंडीगढ़ में हर छोटी से छोटी जगह पर सुचारू पार्किंग की व्यवस्था है, जबकि जयपुर में ऐसा कोई भी बाजार नहीं है जहां व्यवस्थित पार्किंग हो। अदालत ने आगे कहा कि जयपुर शहर में शायद ही कोई सड़क ऐसी होगी जहां अतिक्रमण न हुआ हो।

शोरूम और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की मनमानी पर कोर्ट की फटकार

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि जयपुर में कई बड़े शोरूम के बाहर पार्किंग की व्यवस्था नहीं होती, जबकि बाद में पता चलता है कि उन्हीं शोरूम मालिकों ने अतिक्रमण कर निर्माण कर लिया है। यह दर्शाता है कि नगर निगम और संबंधित विभाग अतिक्रमण रोकने में पूरी तरह विफल रहे हैं।

हाईकोर्ट के आदेश और आगे की कार्रवाई

अदालत ने नगर निगम को निर्देश दिए कि विजिलेंस टीम की कार्यशैली की जांच होनी चाहिए और अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई को प्रभावी तरीके से लागू किया जाना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि सरकारी अधिकारी ही भ्रष्टाचार में लिप्त रहेंगे, तो अतिक्रमण की समस्या कभी खत्म नहीं होगी।

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