मनीषा शर्मा। राजस्थान हाईकोर्ट ने सड़क हादसे में मृत महिला के परिजनों को मुआवजा राशि बढ़ाकर 3 लाख 15 हजार 720 रुपए अतिरिक्त देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा कि गृहिणी द्वारा घर में किए जाने वाले निस्वार्थ कार्यों की आय को कम नहीं आंका जा सकता। उनकी सेवाओं को आर्थिक मूल्य देना आवश्यक है क्योंकि उनका योगदान समाज और परिवार के लिए अमूल्य होता है। यह आदेश जस्टिस डॉ. नूपुर भाटी की एकलपीठ ने सुनाया।
घटना : 2011 में सड़क हादसे में महिला की मौत
3 नवंबर 2011 को सुबह लगभग 6 बजे कमला कंवर अपने खेत की ओर जा रही थीं। तभी शेरगढ़ की ओर से आ रही बोलेरो ने उन्हें टक्कर मार दी, जिससे मौके पर ही उनकी मौत हो गई। इसके बाद मृतका के पति पुरखा सिंह ने मुआवजे के लिए दावा याचिका दायर की। लेकिन केस के दौरान उनका निधन हो गया। तब मृतका के ससुर आनंद सिंह को आश्रित के रूप में केस में पक्षकार बनाया गया।
ट्रिब्यूनल का फैसला : 4.33 लाख रुपए मुआवजा
मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (जोधपुर) ने 24 मई 2017 को अपना निर्णय सुनाया। इसमें ट्रिब्यूनल ने बोलेरो चालक को लापरवाही का दोषी माना और कुल 4 लाख 33 हजार रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया।
इसमें
निर्भरता की हानि : 4 लाख 8 हजार रुपए
अंतिम संस्कार खर्च : 25 हजार रुपए
ट्रिब्यूनल ने मृतका की मासिक आय मात्र 3,000 रुपए मानकर एक तिहाई खर्च घटाया और शेष पर मुआवजा तय किया। इसी फैसले को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील दायर की गई।
अपील में तर्क : गृहिणी की आय को कम आंकना गलत
अपीलकर्ता के वकील प्रवीण चौधरी ने दलील दी कि ट्रिब्यूनल ने मृतका की आय बहुत कम आंकी। उन्होंने कहा— कानून के अनुसार गृहिणी की काल्पनिक आय को कम नहीं आंका जा सकता। 40 वर्ष से कम आयु वाले मामलों में 40% भविष्य की संभावनाएं जोड़ना आवश्यक है। विवाहित महिला के मामले में यदि केवल एक ही आश्रित है, तो व्यक्तिगत खर्च के लिए आधा घटाना चाहिए, न कि एक तिहाई। वहीं बीमा कंपनी के वकील विशाल सिंघल ने तर्क दिया कि मृतका कोई वास्तविक कमाई नहीं कर रही थीं, इसलिए 3,000 रुपए मासिक का आकलन ज्यादा है। उनके अनुसार गृहिणी के कार्यों की तुलना रोजगार आय से नहीं की जा सकती।
हाईकोर्ट का अवलोकन : गृहिणी का योगदान अमूल्य
जस्टिस डॉ. नूपुर भाटी ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के कई महत्वपूर्ण फैसलों का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा— पत्नी द्वारा घर में किया गया योगदान अमूल्य है। गृहिणी द्वारा किए जाने वाले कार्यों की विविधता और समय को देखते हुए इसे आर्थिक मूल्य देना जरूरी है। ट्रिब्यूनल का आकलन त्रुटिपूर्ण था और भविष्य की संभावनाएं जोड़ना आवश्यक था।
हाईकोर्ट की गणना : 3.15 लाख रुपए की बढ़ोतरी
कोर्ट ने मृतका की मासिक आय को 2011 में प्रचलित कुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी 4,650 रुपए माना।
40% भविष्य की संभावनाएं जोड़कर आय = 6,510 रुपए
निर्भरता की हानि = 6,64,020 रुपए
अंतिम संस्कार खर्च = 18,150 रुपए
संपत्ति की हानि = 18,150 रुपए
कंसोर्टियम की हानि = 48,400 रुपए
कुल मुआवजा = 7,48,720 रुपए
पहले दिए गए 4,33,000 रुपए घटाकर 3,15,720 रुपए की अतिरिक्त राशि तय की गई। साथ ही, कोर्ट ने आदेश दिया कि यह अतिरिक्त राशि ट्रिब्यूनल द्वारा निर्धारित ब्याज दर से दावा याचिका दाखिल करने की तारीख से जमा तिथि तक देय होगी।
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला
हाईकोर्ट ने इस मामले में प्रणय सेठी बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और सरला वर्मा बनाम दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख किया। इन फैसलों में स्पष्ट किया गया था कि— गृहिणी की आय का आकलन न्यूनतम मजदूरी के आधार पर किया जाना चाहिए। भविष्य की संभावनाएं जोड़ना अनिवार्य है। आश्रितों की स्थिति के अनुसार व्यक्तिगत खर्च में कटौती तय करनी चाहिए।
राजस्थान हाईकोर्ट का यह फैसला गृहिणियों की आर्थिक महत्ता और उनके योगदान को मान्यता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि घर में निस्वार्थ भाव से किए गए कार्य भी अमूल्य हैं और उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


