मनीषा शर्मा। राजस्थान हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के एक चर्चित मामले में अहम फैसला सुनाते हुए आरोपी अजय तंवर को अग्रिम जमानत दे दी है। यह निर्णय जस्टिस शुभा मेहता की एकलपीठ ने दिया। अदालत ने कहा कि प्रस्तुत परिस्थितियों और उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को हिरासत में लेने की आवश्यकता नहीं है। यह मामला भिवाड़ी के टपूकड़ा थाना क्षेत्र में दर्ज हुआ था, जिसमें पीड़िता ने आरोप लगाया था कि 29-30 जून की रात आरोपी ने बंदूक की नोक पर दुष्कर्म किया और जान से मारने की धमकी दी। हालांकि, अदालत ने कई महत्वपूर्ण तथ्यों पर गौर करते हुए माना कि आरोपी को अग्रिम जमानत दी जा सकती है।
कोर्ट ने किन बिंदुओं पर दिया फैसला?
अदालत ने अपने आदेश में कई अहम बिंदुओं का उल्लेख किया। सबसे पहले अदालत ने ध्यान दिलाया कि आरोपी और पीड़िता दोनों शादीशुदा हैं और पहले से एक-दूसरे को जानते हैं। पीड़िता ने आरोप लगाया था कि घटना बंदूक की नोक पर हुई, लेकिन घटना के अगले दिन भी वह आरोपी के साथ गुड़गांव के एक मॉल में घूमती हुई दिखी। इतना ही नहीं, वह आरोपी के डेबिट कार्ड से शॉपिंग भी करती रही। कोर्ट ने कहा कि प्रस्तुत वीडियो फुटेज में पीड़िता आरोपी के साथ खुश नजर आ रही है। यह तथ्य उसके दावों पर सवाल खड़ा करता है।
देरी से दर्ज एफआईआर और मेडिकल की अनुपस्थिति
इस केस में अदालत ने एफआईआर दर्ज करने में देरी को भी गंभीरता से देखा। घटना 29 जून की थी, लेकिन पीड़िता ने 22 दिन बाद यानी 22 जुलाई को पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। इसके अलावा पीड़िता ने घटना वाले दिन पहने कपड़े पुलिस को जांच के लिए नहीं दिए। उसने अपना मेडिकल परीक्षण भी नहीं करवाया। वहीं दूसरी ओर आरोपी ने मेडिकल परीक्षण करवाया और पुलिस जांच में सहयोग किया। अदालत ने माना कि इस परिस्थिति में आरोपी को हिरासत में लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
आरोपी की ओर से पेश तर्क
आरोपी अजय तंवर के वकील भरत यादव ने अदालत को बताया कि घटना के समय आरोपी भिवाड़ी से 50 किलोमीटर दूर एक टोल नाके पर था। इसकी सीसीटीवी फुटेज भी उपलब्ध है, जिससे साबित होता है कि वह घटना स्थल पर मौजूद नहीं था। वकील ने यह भी कहा कि पीड़िता, आरोपी और उसके पति के साथ एक शादी समारोह में शामिल हुई थी। यह दर्शाता है कि दोनों पक्षों के बीच सामान्य संबंध थे। बचाव पक्ष ने दावा किया कि यह मामला रंजिश और व्यक्तिगत दुश्मनी के चलते झूठा दर्ज किया गया है।
पीड़िता और सरकारी पक्ष का विरोध
दूसरी ओर पीड़िता और सरकारी वकील ने अग्रिम जमानत का कड़ा विरोध किया। उनका कहना था कि पीड़िता ने पुलिस और मजिस्ट्रेट दोनों के सामने दुष्कर्म की बात दोहराई है। इसके अलावा सरकारी पक्ष ने यह भी बताया कि आरोपी अजय तंवर के खिलाफ पहले से दो आपराधिक मामले दर्ज हैं और उसके खिलाफ फरारी का वारंट भी जारी हो चुका है। इन परिस्थितियों में आरोपी को जमानत देना उचित नहीं होगा। फिर भी अदालत ने उपलब्ध सबूतों, परिस्थितियों और आरोपी के सहयोग को देखते हुए अग्रिम जमानत का आदेश दिया।
जमानत आदेश का महत्व
यह आदेश न केवल इस मामले में बल्कि भविष्य में होने वाले ऐसे मामलों के लिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अदालत ने यह संकेत दिया है कि केवल आरोपों के आधार पर किसी व्यक्ति को हिरासत में नहीं लिया जा सकता, जब तक कि आरोपों की पुष्टि करने वाले ठोस सबूत न हों। एफआईआर दर्ज करने में देरी, मेडिकल परीक्षण न कराना और आरोपी के खिलाफ उपलब्ध वीडियो फुटेज जैसे तथ्यों ने अदालत को यह मानने के लिए प्रेरित किया कि फिलहाल आरोपी को हिरासत में लेने की आवश्यकता नहीं है।
समाज और कानून के लिए संदेश
यह फैसला समाज और कानून, दोनों के लिए कई संदेश देता है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि दुष्कर्म जैसे संवेदनशील मामलों में भी न्यायालय केवल आरोपों पर भरोसा नहीं करेगा। सबूतों और परिस्थितियों का गहन परीक्षण करने के बाद ही आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। वहीं, यह मामला यह भी दर्शाता है कि यदि पीड़िता द्वारा उचित समय पर रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई जाती और मेडिकल साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराए जाते तो अदालत उन बिंदुओं को गंभीरता से देखती है।