मनीषा शर्मा। राजस्थान सरकार ने राज्य की विकास योजनाओं को गति देने के लिए 5000 करोड़ रुपये का कर्ज रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के जरिए स्टेट ग्रांटेड सिक्योरिटीज (SGS) बॉन्ड के रूप में जुटाया है। यह राशि सरकार ने सीधे कर्ज लेने के बजाय तीन अलग-अलग बॉन्ड के माध्यम से प्राप्त की है। इन बॉन्ड्स को आरबीआई की नीलामी प्रक्रिया से जारी किया गया, जिसका नतीजा 20 अक्टूबर को दिवाली के दिन घोषित किया गया। सरकार को इस रकम को 10 से 26 साल की अवधि में वापस चुकाना होगा। बॉन्ड्स पर ब्याज दर 7.23% से 7.57% के बीच है, जो अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है। इससे सरकार पर ब्याज भुगतान का अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा।
तीन अलग-अलग बॉन्ड्स के जरिए जुटाई गई राशि
आरबीआई से मिली जानकारी के अनुसार राजस्थान सरकार ने तीन प्रकार के स्टेट ग्रांटेड सिक्योरिटीज (SGS) बॉन्ड्स के जरिए यह राशि जुटाई है।
राजस्थान एसजीएस 2035 — इस बॉन्ड से 2000 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं। इसकी अवधि 10 वर्ष है और ब्याज दर 7.23% तय की गई है।
राजस्थान एसजीएस 2043 (री-इश्यू) — इस बॉन्ड से 1500 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं। इस पर 7.57% ब्याज देना होगा। इसकी अवधि 18 वर्ष रखी गई है।
राजस्थान एसजीएस 2051 — इसके जरिए 1500 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं, जो 26 साल के लिए है। इस पर सरकार को 7.30% ब्याज देना होगा।
इन तीनों बॉन्ड्स के जरिए कुल 5000 करोड़ रुपये की राशि राज्य सरकार को प्राप्त हुई है। इन बॉन्ड्स पर ब्याज दर अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक होने से यह साफ है कि निवेशकों को आकर्षित करने के लिए राजस्थान को ऊंची ब्याज दर देनी पड़ी।
दूसरे राज्यों ने भी जुटाए फंड
आरबीआई के स्टेट ग्रांटेड सिक्योरिटीज बॉन्ड्स के जरिए महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ ने भी हाल में फंड जुटाया है।
महाराष्ट्र ने कुल 5000 करोड़ रुपये विभिन्न बॉन्ड्स के जरिए 7.20% से 7.29% ब्याज दर पर जुटाए।
तमिलनाडु ने 3000 करोड़ रुपये 6.99% से 7.34% ब्याज दर पर जुटाए।
छत्तीसगढ़ ने 2000 करोड़ रुपये 7.14% और 7.34% ब्याज पर जुटाए।
उत्तर प्रदेश ने 2000 करोड़ रुपये के बॉन्ड जारी किए।
इन राज्यों में राजस्थान को सबसे अधिक ब्याज दर पर फंड जुटाना पड़ा। यह इंगित करता है कि राज्य की वित्तीय स्थिति और क्रेडिट रेटिंग के आधार पर निवेशक उच्च रिटर्न की मांग कर रहे हैं।
विकास योजनाओं में लगेगा पैसा
राज्य सरकार ने बताया कि यह रकम विकास परियोजनाओं, सड़क निर्माण, जल संसाधन और बुनियादी ढांचा सुधार जैसे कार्यों में इस्तेमाल की जाएगी। बॉन्ड से जुटाई गई राशि सीधे राज्य के पूंजीगत व्यय को बढ़ाती है, जिससे आर्थिक गतिविधियों को बल मिलता है। सरकारी अधिकारी बताते हैं कि इन योजनाओं का लक्ष्य ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आधारभूत सुविधाओं का विस्तार करना है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि कर्ज के जरिए जुटाई गई राशि से विकास तो होगा, लेकिन दीर्घकाल में ब्याज भुगतान का दबाव राज्य की आर्थिक स्थिति पर असर डाल सकता है।
सरकार पर लगातार बढ़ रहा है कर्ज का बोझ
राजस्थान सरकार पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ रहा है। वित्त विभाग के अनुसार, राज्य का कुल कर्ज इस वित्तीय वर्ष में 8 लाख करोड़ रुपये के करीब पहुंचने वाला है। पिछले 10 वर्षों में राज्य के कर्ज में लगभग दोगुना इजाफा हुआ है। सरकार की आय का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान में चला जाता है। विकास योजनाओं के लिए सरकार को बाहरी स्रोतों से फंड जुटाने की आवश्यकता पड़ती है। बजट दस्तावेजों के अनुसार 2025-26 तक राज्य का कर्ज अनुपात जीडीपी के 40% के करीब पहुंच सकता है, जो वित्तीय स्थिरता के लिहाज से चिंताजनक संकेत है।
क्या हैं स्टेट ग्रांटेड सिक्योरिटीज (SGS) बॉन्ड?
हर राज्य सरकार विकास योजनाओं और पूंजीगत निवेश के लिए धन जुटाने के उद्देश्य से स्टेट ग्रांटेड सिक्योरिटीज (SGS) बॉन्ड जारी करती है। इन बॉन्ड्स को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के माध्यम से जारी किया जाता है और इन्हें सरकार की गारंटी प्राप्त होती है। इन बॉन्ड्स में आम निवेशक, बैंक, बीमा कंपनियां और वित्तीय संस्थाएं निवेश करती हैं क्योंकि इन पर ब्याज दर अन्य निवेश विकल्पों की तुलना में बेहतर होती है।
बॉन्ड की मैच्योरिटी पूरी होने पर सरकार निवेशकों को ब्याज सहित पूरी राशि लौटाती है।
ब्याज दर अधिक होने से बढ़ेगा भविष्य का भार
राज्य सरकार ने इस बार 7.57% तक की ब्याज दर पर कर्ज लिया है। यह दर तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे विकसित राज्यों से अधिक है। वित्त विशेषज्ञों का कहना है कि इससे सरकार पर दीर्घकालिक ब्याज भुगतान का बोझ बढ़ेगा। यदि ब्याज दरों में भविष्य में वृद्धि होती है, तो पुराने बॉन्ड्स के पुनर्भुगतान के साथ नया ऋण और महंगा पड़ सकता है। राज्य सरकार की वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि कर्ज का उपयोग उत्पादक परियोजनाओं में किया जाए, जिससे दीर्घकालिक राजस्व बढ़ सके।


