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राजस्थान के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने सीएम को लिखा पत्र

राजस्थान के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने सीएम को लिखा पत्र

मनीषा शर्मा।  राजस्थान सरकार के ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर हाल के दिनों में लगातार प्रशासनिक सक्रियता दिखा रहे हैं। झालावाड़ जिले के पीपलोदी में हुए दर्दनाक स्कूल हादसे के बाद उन्होंने शिक्षा विभाग और निर्माण एजेंसियों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। नागर ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को एक कड़ा पत्र लिखकर पिछले पांच वर्षों में बने सभी स्कूल भवनों की स्वतंत्र जांच की मांग की है।

इस पत्र में मंत्री ने न केवल निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए, बल्कि शिक्षा विभाग के समग्र शिक्षा अभियान (समसा) की सिविल विंग पर भ्रष्टाचार और लापरवाही के भी गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा कि यदि जांच निष्पक्ष रूप से की गई, तो करोड़ों रुपये के निर्माण कार्यों में बड़े घोटाले उजागर हो सकते हैं।

बिशनपुरा में घटिया निर्माण पर कार्रवाई

हीरालाल नागर ने हाल ही में अपने विधानसभा क्षेत्र सांगोद के बिशनपुरा गांव में निर्माणाधीन स्कूल का निरीक्षण किया था, जहां घटिया निर्माण कार्य की शिकायतें मिली थीं। उन्होंने मौके पर ही कई हिस्सों को ध्वस्त करने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए।

मंत्री नागर का कहना है कि यह समस्या केवल सांगोद तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे राजस्थान में स्कूल भवनों की यही स्थिति है। उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि प्रदेश में शिक्षा से जुड़े सभी निर्माण कार्यों की उच्च स्तरीय समिति से जांच कराई जाए, ताकि जिम्मेदार अधिकारियों और ठेकेदारों को जवाबदेह बनाया जा सके।

‘समसा सिविल विंग को भंग करें’ — नागर की सिफारिश

मुख्यमंत्री को लिखे विस्तृत पत्र में नागर ने समग्र शिक्षा अभियान (समसा) की सिविल विंग को तुरंत भंग करने की मांग की है। उन्होंने कहा कि इस विंग का कामकाज बेहद अव्यवस्थित है और इसमें तकनीकी विशेषज्ञता की भारी कमी है।

उन्होंने सुझाव दिया कि आगे से सभी सिविल कार्य लोक निर्माण विभाग (PWD) को सौंपे जाएं, ताकि निर्माण की गुणवत्ता और जवाबदेही सुनिश्चित की जा सके। नागर के अनुसार, पहले जब स्कूलों का निर्माण PWD के तहत होता था, तब भवन मजबूत और टिकाऊ बनते थे, लेकिन अब हालात बिल्कुल उलट हैं।

शिक्षकों से कराए जा रहे हैं इंजीनियरिंग कार्य

मंत्री नागर ने शिक्षा विभाग पर एक और गंभीर आरोप लगाया कि समसा सिविल विंग में योग्य इंजीनियरों की भारी कमी है। इस कमी को पूरा करने के लिए जिन शिक्षकों के पास इंजीनियरिंग या डिप्लोमा की डिग्री है, उन्हें प्रतिनियुक्ति (Deputation) पर लेकर निर्माण कार्यों में लगाया जा रहा है।

नागर ने कहा कि “जब शिक्षकों से इंजीनियरिंग का काम कराया जाएगा, तो गुणवत्ता पर असर पड़ना स्वाभाविक है। नतीजा यह है कि स्कूल भवनों की दीवारें समय से पहले टूटने लगती हैं और छतों से पानी टपकने लगता है।”

छतें टपक रही हैं, फर्श उखड़ रहे हैं

हीरालाल नागर ने अपने पत्र में प्रदेश के कई स्कूलों की दयनीय स्थिति का उल्लेख किया है। उन्होंने बताया कि कई जगहों पर नई इमारतों की छतें टपकने लगी हैं, फर्श उखड़ गए हैं और कुछ स्थानों पर तो छतें गिरने की घटनाएं भी हुई हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि समसा के अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत के कारण निर्माण कार्य BSR (Basic Schedule of Rates) से भी कम दर पर कराए जा रहे हैं, जिससे गुणवत्ता से समझौता होता है। इससे सरकार की छवि पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।

भुगतान प्रक्रिया में भी गड़बड़ी

नागर ने पत्र में भुगतान प्रणाली में हो रहे भ्रष्टाचार का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि नियमों के अनुसार, ₹10 लाख से अधिक लागत वाले निर्माण कार्य की गारंटी अवधि पांच वर्ष होती है और ठेकेदार की 10 प्रतिशत राशि रोक ली जाती है।

यह राशि तभी जारी होनी चाहिए जब प्रधानाचार्य निर्माण स्थल का निरीक्षण कर संतोषजनक रिपोर्ट दें। लेकिन कई मामलों में, अतिरिक्त जिला परियोजना समन्वयक (समग्र शिक्षा) के दबाव में प्रधानाचार्य बिना निरीक्षण के ही NOC जारी कर देते हैं। इस कारण ठेकेदारों को पूरा भुगतान हो जाता है, जबकि भवनों में खामियां बनी रहती हैं।

मंत्री ने उठाई पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग

मंत्री हीरालाल नागर ने पत्र में स्पष्ट कहा है कि शिक्षा विभाग की यह लापरवाही सीधे बच्चों की सुरक्षा से जुड़ी है। उन्होंने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल जांच के आदेश जारी करें और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए।

उन्होंने याद दिलाया कि “पूर्व में स्कूलों का निर्माण जब PWD के माध्यम से होता था, तब गुणवत्तापूर्ण भवन बनते थे। लेकिन समसा के अंतर्गत ठेकेदारों और अधिकारियों के गठजोड़ ने पूरे सिस्टम को खोखला कर दिया है।”

सरकार से बड़े फैसले की उम्मीद

मंत्री नागर का यह पत्र अब मुख्यमंत्री कार्यालय पहुंच चुका है, और राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि सरकार इस मामले पर कड़ा निर्णय ले सकती है। यदि उनकी सिफारिशें मान ली जाती हैं, तो पिछले पांच वर्षों में समसा द्वारा किए गए करोड़ों रुपये के निर्माण कार्यों की स्वतंत्र जांच समिति गठित की जा सकती है।

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