मनीषा शर्मा। राजस्थान में बिजली उपभोक्ताओं के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। प्रदेश की बिजली कंपनियों पर इस समय लगभग 47 हजार करोड़ रुपए के रेगुलेटरी एसेट्स का बोझ है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश के बाद यह बोझ खत्म करना अनिवार्य हो गया है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि आने वाले समय में उपभोक्ताओं को ज्यादा बिजली बिल चुकाना पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश और राजस्थान की चुनौती
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में दिल्ली से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि देशभर की बिजली कंपनियां अपने रेगुलेटरी एसेट्स को 1 अप्रैल 2024 से चार साल के भीतर खत्म करें। इसका मतलब है कि कंपनियों को 2028 तक यह वित्तीय बोझ समाप्त करना ही होगा।
राजस्थान के लिए स्थिति और गंभीर है क्योंकि इस फैसले के बाद से डेढ़ साल पहले ही बीत चुका है। अब राज्य की बिजली कंपनियों के पास केवल ढाई साल का समय बचा है। इतनी बड़ी रकम की वसूली करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा।
रेगुलेटरी एसेट क्या होता है?
बिजली कंपनियां उपभोक्ताओं को बिजली उपलब्ध कराती हैं, जिसके लिए उन्हें उत्पादन, खरीद, ट्रांसमिशन और रखरखाव पर खर्च करना पड़ता है। कई बार यह खर्च सरकार या नियामक आयोग द्वारा तय की गई दरों से ज्यादा होता है।
जब समय पर बिजली के दाम (टैरिफ) नहीं बढ़ाए जाते तो कंपनियां पूरी लागत उपभोक्ताओं से नहीं वसूल पातीं। इस बचे हुए अंतर को ही रेगुलेटरी एसेट कहा जाता है। इसे बाद में उपभोक्ताओं से टैरिफ बढ़ाकर वसूला जाता है।
जब तक यह वसूली नहीं होती, कंपनियों को अपना खर्च चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ता है। यही कारण है कि राजस्थान की बिजली कंपनियों पर अब तक का बोझ बढ़कर 47 हजार करोड़ रुपए हो चुका है।
टैरिफ याचिका और रेगुलेटरी सरचार्ज
राजस्थान की डिस्कॉम कंपनियों ने हाल ही में राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग (RERC) में टैरिफ याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने रेगुलेटरी एसेट्स की वसूली के लिए एक रुपए प्रति यूनिट रेगुलेटरी सरचार्ज लगाने का प्रस्ताव रखा है।
इसके अलावा, याचिका में कुछ श्रेणियों में बिजली शुल्क घटाने का सुझाव भी दिया गया है। दरअसल, कंपनियां बेस फ्यूल सरचार्ज की राशि को समायोजित करके उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार कम करने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन फिर भी इतने कम समय में इतनी बड़ी राशि वसूलना आसान नहीं होगा।
आयोग की जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि राज्य विद्युत विनियामक आयोग इस वसूली की प्रक्रिया का रोडमैप तैयार करे। साथ ही मौजूदा रेगुलेटरी एसेट्स की लगातार बढ़ती संख्या पर ऑडिट कराना भी आयोग की जिम्मेदारी होगी।
इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी विद्युत अपीलीय प्राधिकरण (APTEL) करेगा। यानी अब राज्य के नियामक आयोग पर पूरी जिम्मेदारी आ गई है कि वह इस आर्थिक बोझ से बिजली कंपनियों को बाहर निकाले और उपभोक्ताओं पर असर को संतुलित करे।
उपभोक्ताओं की चिंता
जैसे ही यह खबर सामने आई है कि बिजली कंपनियां रेगुलेटरी एसेट्स की वसूली के लिए नया रोडमैप बना रही हैं, वैसे ही उपभोक्ताओं की चिंताएं बढ़ गई हैं। आम जनता को आशंका है कि यदि वसूली का रास्ता चुना गया तो सीधे-सीधे उनके बिजली बिलों में बढ़ोतरी होगी।
राजस्थान के लाखों घरेलू और औद्योगिक उपभोक्ता पहले ही बढ़ते बिजली खर्च से परेशान हैं। ऐसे में यदि बिल और बढ़ते हैं तो इसका असर आम जीवन के साथ-साथ औद्योगिक उत्पादन पर भी पड़ सकता है।
सरकार और कंपनियों की दुविधा
अब बिजली कंपनियों और ऊर्जा विभाग के सामने तीन ही विकल्प हैं:
सरकार इस बोझ को खुद वहन करे।
उपभोक्ताओं से अतिरिक्त वसूली की जाए।
या फिर इस फैसले के खिलाफ दोबारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाए।
फिलहाल, कंपनियों और ऊर्जा विभाग ने कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है, लेकिन यह तय है कि आने वाले महीनों में बिजली बिलों को लेकर बड़ा फैसला उपभोक्ताओं को प्रभावित करेगा।