मनीषा शर्मा। राजस्थान की राजनीति में 14 नवंबर का दिन बेहद अहम साबित होने वाला है। इस दिन अंता विधानसभा सीट के उपचुनाव का नतीजा आएगा, जो इस बार राज्य के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी (BJP) और विपक्षी कांग्रेस (Congress) दोनों के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। यह उपचुनाव एक तरह से राज्य की मौजूदा राजनीतिक दिशा का संकेत देने वाला होगा। दरअसल, अंता सीट पर उपचुनाव इसलिए हो रहा है क्योंकि 2023 में इस सीट से जीते बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा को 20 साल पुराने एक आपराधिक मामले में सजा हो गई, जिसके चलते उनकी सदस्यता रद्द कर दी गई। अब इस सीट पर फिर से जनता का फैसला आने वाला है, और पूरा राजस्थान इस परिणाम पर निगाहें लगाए हुए है।
भजनलाल शर्मा और वसुंधरा राजे की साख दांव पर
राजस्थान के सियासी हलकों में यह उपचुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए ‘प्रतिष्ठा की परीक्षा’ माना जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह न केवल राज्य सरकार के कामकाज की जन-परख का अवसर है, बल्कि वसुंधरा राजे की पुराने गढ़ में पकड़ की मजबूती का भी परीक्षण है। राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा का कहना है — “यह उपचुनाव मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के प्रशासनिक कामकाज की एक तरह से परीक्षा है कि जनता उनकी सरकार को कितना स्वीकार कर रही है। वहीं, यह पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके बेटे सांसद दुष्यंत सिंह के लिए भी चुनौती है, क्योंकि अंता इलाका उनके राजनीतिक प्रभाव क्षेत्र में आता है।” बीजेपी ने इस चुनाव में मोरपाल सुमन को उम्मीदवार बनाया है, जो कंवरलाल मीणा के करीबी माने जाते हैं और वसुंधरा राजे के समर्थक भी हैं। ऐसे में यह सीट राजे गुट की साख से सीधे तौर पर जुड़ गई है।
राजनीतिक प्रतिष्ठा की परीक्षा बन गया चुनाव
यह चुनाव महज़ एक सीट का नहीं, बल्कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों के नेतृत्व की परीक्षा बन चुका है। राज्य की सत्ता में आए लगभग एक साल पूरे करने जा रही भजनलाल शर्मा सरकार के लिए यह देखना अहम होगा कि जनता उनके कार्यों पर कितना भरोसा दिखाती है। राज्य में सरकार बनने के बाद यह पहला बड़ा उपचुनाव है, इसलिए इसे जनता के मूड का बैरोमीटर भी कहा जा रहा है। अगर बीजेपी जीतती है, तो यह मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए एक राजनीतिक मजबूती का प्रमाण होगा। लेकिन अगर हार होती है, तो विपक्ष इसे सरकार के खिलाफ जनमत के रूप में पेश करेगा।
गहलोत और पायलट के लिए भी है बड़ी परीक्षा
अंता उपचुनाव कांग्रेस के लिए भी किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है। यह उपचुनाव प्रदेश कांग्रेस के दो प्रमुख नेताओं — अशोक गहलोत और सचिन पायलट — की एकजुटता की परीक्षा बन गया है। कांग्रेस ने इस सीट से प्रमोद जैन भाया को टिकट दिया है, जो पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, जातीय समीकरणों के लिहाज से प्रमोद भाया मजबूत उम्मीदवार नहीं माने जाते, लेकिन गहलोत खेमे की सिफारिश के चलते उन्हें टिकट मिला। कांग्रेस ने इस बार गुटबाजी को दरकिनार कर एकजुट प्रचार अभियान चलाने की कोशिश की। सचिन पायलट ने प्रमोद भाया के लिए रैली की, जबकि प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने भी मैदान में उतरकर पूरा सहयोग दिया। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस की यह एकजुटता वोट में बदल पाती है या नहीं।
नरेश मीणा ने बनाया त्रिकोणीय मुकाबला
अंता उपचुनाव में सबसे बड़ी रोचकता निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा के मैदान में उतरने से पैदा हुई है। नरेश मीणा ने पहले कांग्रेस से टिकट की उम्मीद की थी, लेकिन जब पार्टी ने प्रमोद जैन भाया को उम्मीदवार घोषित किया, तो उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला लिया। उनकी जाति के करीब 40 हजार वोटर अंता सीट पर हैं, जो मुकाबले को बेहद दिलचस्प बना देते हैं। राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा के अनुसार, “नरेश मीणा इस बार RLP नेता हनुमान बेनीवाल, AAP सांसद संजय सिंह और राजेंद्र गुढ़ा के समर्थन से मैदान में हैं। ऐसे में देखना होगा कि उनका वोट शेयर कितना बढ़ता है — क्या वे जीत की लड़ाई में हैं या फिर किसी एक पक्ष के वोट काटने का काम करेंगे।”
हनुमान बेनीवाल का भी है राजनीतिक टेस्ट
अंता उपचुनाव ने RLP सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल के लिए भी एक बड़ा राजनीतिक टेस्ट तैयार कर दिया है। उन्होंने इस चुनाव में आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता संजय सिंह के साथ रोडशो किया और नरेश मीणा के पक्ष में समर्थन की अपील की। बेनीवाल के लिए यह मौका है यह दिखाने का कि उनकी पार्टी का प्रभाव सिर्फ नागौर क्षेत्र तक सीमित नहीं है। अगर उनके समर्थक उम्मीदवार नरेश मीणा को अच्छा प्रदर्शन मिलता है, तो यह RLP के विस्तार का संकेत माना जाएगा।
राजनीतिक समीकरणों की तिकड़ी
अंता सीट पर मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है —
बीजेपी के मोरपाल सुमन,
कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया, और
निर्दलीय नरेश मीणा के बीच।
तीनों उम्मीदवारों के समर्थन में अलग-अलग सियासी ताकतें हैं — भजनलाल और वसुंधरा की जोड़ी बीजेपी प्रत्याशी के साथ, गहलोत और पायलट की एकजुटता कांग्रेस प्रत्याशी के साथ, और बेनीवाल-केजरीवाल का गठजोड़ निर्दलीय के साथ। इस तरह यह सीट राजस्थान की राजनीतिक दिशा तय करने वाली मिनी बैटलग्राउंड बन गई है।
नतीजे से तय होगी राजनीतिक हवा
14 नवंबर को आने वाले नतीजे न केवल अंता के भविष्य का फैसला करेंगे, बल्कि राजस्थान की राजनीति की हवा का रुख भी तय करेंगे। अगर बीजेपी यह सीट बरकरार रखती है, तो यह मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व की पुष्टि मानी जाएगी। लेकिन अगर कांग्रेस या निर्दलीय प्रत्याशी जीतते हैं, तो यह राज्य की सियासत में नई हलचल पैदा कर सकता है।


