मनीषा शर्मा, अजमेर। अजमेर के पुष्कर में इस समय देश का सबसे बड़ा पशु मेला परवान पर है। रेतीले नए मेला मैदान में हजारों पशु, घोड़े और ऊंट अपनी खूबसूरती और ताकत का प्रदर्शन कर रहे हैं। इस साल मेले की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां करोड़ों रुपए के घोड़े, लाखों का भैंसा और अनोखी नस्लों की गायें पहुंची हैं।
घोड़ों की बढ़ती संख्या, लग्जरी टेंट में रह रहे पशुपालक
मेले के नए रेतीले मैदान में इस बार घोड़ों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से आए पशुपालक अपने घोड़ों के साथ पहुंचे हैं। इनमें से कई पशुपालक लग्जरी टेंट में ठहर रहे हैं और उनके बाहर कीमती लग्जरी गाड़ियां खड़ी हैं। मेले का नजारा किसी अंतरराष्ट्रीय शो से कम नहीं लग रहा।
800 किलो का ‘बुलबुल’ भैंसा बना आकर्षण
बीकानेर के एक पशुपालक 800 किलो वजन वाले मुर्रा नस्ल के भैंसे ‘बुलबुल’ को लेकर पुष्कर पहुंचे हैं। इस भैंसे की कीमत लगभग 10 लाख रुपए बताई जा रही है। पशुपालक के अनुसार, वह इसे बेचने के लिए लाए हैं और अब तक कई खरीदार इसमें दिलचस्पी दिखा चुके हैं। बुलबुल का विशाल शरीर और शानदार बनावट पर्यटकों और पशु प्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बन गई है।
पंजाब का ‘शाबाज’ घोड़ा: 15 करोड़ की कीमत और 6 शो का विजेता
पंजाब के पशुपालक गेरी अपने करोड़ों रुपए के घोड़ों के साथ पुष्कर पहुंचे हैं। इनमें सबसे चर्चित नाम है ‘शाबाज’, जिसकी कीमत 15 करोड़ रुपए आंकी गई है। शाबाज अब तक 6 शो जीत चुका है और उसकी ब्रीडिंग फीस 2 लाख रुपए तक जाती है। गेरी ने बताया कि वह हर साल करीब 40 से ज्यादा घोड़े लेकर मेले में आते हैं। इस बार उन्होंने अपने दूसरे घोड़े दबंग, भारत ध्वज और नागेश्वर को भी प्रदर्शन के लिए लाया है। शाबाज की ऊंचाई 65 इंच है और यह पंजाब की मशहूर नस्लों में से एक है।
केकड़ी का ‘बादल’: 285 बच्चों का पिता, कीमत 11 करोड़
राजस्थान के केकड़ी के अश्वपालक राहुल जेतवाल अपने 17 सफेद रंग के घोड़ों के साथ पुष्कर पहुंचे हैं। इनमें उनका सबसे खास घोड़ा ‘बादल’ है, जिसकी लोकप्रियता पूरे देश में है। बादल अब तक 285 बच्चों का पिता बन चुका है और फिलहाल उसकी 120 घोड़ियां गर्भवती हैं। राहुल के अनुसार, नुगरा नस्ल का यह घोड़ा 5 साल का है और इसकी ऊंचाई 68 इंच से अधिक है। कई व्यापारी इसे 11 करोड़ रुपए में खरीदने की पेशकश कर चुके हैं, लेकिन राहुल इसे केवल प्रदर्शन के लिए लाए हैं।
सबसे छोटी गाय भी बनी आकर्षण – 16 इंच की पुंगनूर नस्ल
जयपुर जिले के बगरू के रहने वाले अभिनव तिवारी मेले में 15 से अधिक गायों के साथ पहुंचे हैं। इनमें सबसे खास है 16 इंच ऊंची पुंगनूर नस्ल की गाय, जो देखने में किसी छोटे बछड़े जैसी लगती है। अभिनव ने बताया कि वे तीन नस्लों की गायें लेकर आए हैं — पुंगनूर, बिछु, और मिनी माउस ब्रीड। पुंगनूर नस्ल की 12 गायें उन्होंने यहां प्रदर्शन के लिए लाई हैं। ये गायें अपने छोटे आकार और दूध की उच्च गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं।
30 से ज्यादा सैंड आर्ट ने बढ़ाई शोभा
पुष्कर के प्रसिद्ध सेंड आर्टिस्ट अजय रावत ने मेले के रेतीले मैदान में 30 से ज्यादा सैंड आर्ट तैयार किए हैं। इन कलाकृतियों में 1 लाख टन से अधिक रेत का उपयोग हुआ है। बारिश के कारण इन कलाकृतियों को पॉलीथीन से ढककर सुरक्षित किया गया है। ये सैंड आर्ट धार्मिक और सांस्कृतिक विषयों पर आधारित हैं, जो घरेलू और विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केंद्र बने हुए हैं।
पर्यटकों की भीड़ और कार्तिक मेले की शुरुआत
पुष्कर में इस समय न केवल पशु मेला बल्कि धार्मिक कार्तिक मेला भी अपनी तैयारियों के चरम पर है। कार्तिक एकादशी स्नान (2 नवंबर) से धार्मिक मेले की शुरुआत होगी। इस बीच, सरोवर के घाटों, मंदिरों और बाजारों में श्रद्धालुओं और विदेशी पर्यटकों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है। श्रद्धालु सरोवर में स्नान, पूजा और मंदिरों के दर्शन कर रहे हैं, जबकि विदेशी पर्यटक पशु मेले में ऊंट, घोड़े और भैंसों की प्रदर्शनी देख रहे हैं।
3021 पशु हुए पंजीकृत, एक दिन में आए 1500 घोड़े
पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक और मेला अधिकारी डॉ. सुनील घीया के अनुसार, रविवार शाम तक मेले में 3021 पशु पंजीकृत हो चुके हैं। इनमें सबसे ज्यादा 2102 घोड़े, 917 ऊंट, 1 गौवंश और 1 भैंस शामिल हैं। उन्होंने बताया कि रविवार को अकेले एक दिन में ही 1500 घोड़े पहुंचे हैं। 234 पशु राजस्थान के बाहर से आए हैं, जिससे मेला अब अंतरराज्यीय पशु व्यापार का बड़ा केंद्र बन गया है।
पशुपालकों के बीच लाखों का लेन-देन
खुले आसमान के नीचे रेतीले धोरों पर पशुपालकों और व्यापारियों के बीच लाखों रुपए के सौदे हो रहे हैं। हर तरफ पशुओं की आवाजें, खरीद-फरोख्त की चर्चा और पर्यटकों की भीड़ मेला मैदान को जीवंत बना रही है। पुष्कर पशु मेला न केवल परंपरा और संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि यह राजस्थान की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी नई ऊर्जा देता है। इस बार का मेला तकनीकी प्रगति, पशुपालन की विविधता और भारतीय संस्कृति के अद्भुत संगम का प्रतीक बन गया है।


