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प्रोबा-3 मिशन लॉन्च: सूर्य की गहराईयों को समझने की एक कोशिश

प्रोबा-3 मिशन लॉन्च: सूर्य की गहराईयों को समझने की एक कोशिश

शोभना शर्मा।  प्रोबा-3 मिशन की सफलता अंतरिक्ष विज्ञान और सौर अध्ययन के क्षेत्र में एक नया अध्याय है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के इस महत्वाकांक्षी मिशन को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) ने अपनी तकनीकी कुशलता के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया। पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) से गुरुवार शाम 4:04 बजे लॉन्च हुआ यह मिशन सूर्य के बाहरी वातावरण और अंतरिक्ष मौसम की बारीकियों को समझने में मदद करेगा।

लॉन्च और मिशन का उद्देश्य

इस मिशन का उद्देश्य दो उपग्रहों, कोरोनोग्राफ और ऑकुल्टर, के माध्यम से सूर्य की गतिविधियों का अध्ययन करना है। इन दोनों उपग्रहों को पृथ्वी की अण्डाकार कक्षा में स्थापित किया गया है। इनकी सबसे अधिक दूरी पृथ्वी से 60,530 किलोमीटर और न्यूनतम दूरी 600 किलोमीटर तक होगी।

यह दोनों उपग्रह एक अद्वितीय तकनीक के तहत 150 मीटर की निश्चित दूरी पर रहकर एक यूनिट की तरह कार्य करेंगे। इस मिशन के जरिए न केवल सूर्य के बाहरी हिस्से यानी कोरोना का अध्ययन होगा, बल्कि स्पेस वेदर जैसे विषयों पर भी नई जानकारियां सामने आएंगी।

प्रोबा-3 की विशेषताएं

1. कृत्रिम सूर्य ग्रहण की तकनीक:
ऑकुल्टर उपग्रह में 1.4 मीटर की ऑकुलेटिंग डिस्क लगाई गई है, जो सूर्य की तेज चमकदार डिस्क को ब्लॉक करती है। यह प्रक्रिया एक कृत्रिम सूर्य ग्रहण का निर्माण करती है, जिससे कोरोनोग्राफ उपग्रह को सूर्य के कोरोना का गहन निरीक्षण करने का अवसर मिलता है।

2. सौर तूफान और कोरोनल मास इजेक्शन की स्टडी:
प्रोबा-3 का मुख्य उद्देश्य सौर तूफानों और कोरोना मास इजेक्शन (CME) की प्रकृति को समझना है। यह मिशन वैज्ञानिकों को यह जानने में मदद करेगा कि सौर हवा कैसे तेज होती है और सूर्य का कोरोना सतह की तुलना में अधिक गर्म क्यों है।

3. फॉर्मेशन-फ्लाइंग टेक्नोलॉजी:
प्रोबा-3 मिशन में इस्तेमाल की गई फॉर्मेशन-फ्लाइंग टेक्नोलॉजी अंतरिक्ष अभियानों में एक क्रांतिकारी तकनीक साबित हो सकती है। यह तकनीक अंतरिक्ष में सटीक पोजिशनिंग और नियंत्रण को सुनिश्चित करती है।

अंतरिक्ष विज्ञान में संभावनाओं का विस्तार

प्रोबा-3 मिशन के जरिए वैज्ञानिक अंतरिक्ष मौसम की भविष्यवाणी में सुधार लाने की कोशिश करेंगे। अंतरिक्ष मौसम, जो सौर गतिविधियों के कारण प्रभावित होता है, हमारे उपग्रहों, दूरसंचार, और पृथ्वी पर बिजली ग्रिड्स को भी प्रभावित कर सकता है। यह मिशन इन प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने और उनसे निपटने की रणनीतियां विकसित करने में मदद करेगा।

इसरो और ESA की साझेदारी

इस मिशन का क्रियान्वयन इसरो और यूरोपियन स्पेस एजेंसी की साझेदारी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। जहां ESA ने प्रोबा-3 के डिजाइन और मिशन योजना में योगदान दिया, वहीं इसरो ने अपनी लॉन्च क्षमता के माध्यम से इसे सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित किया। यह सहयोग दोनों एजेंसियों के लिए नई तकनीकों और अनुसंधानों के दरवाजे खोलता है।

सूर्य की गहराईयों को समझने की नई उम्मीद

प्रोबा-3 मिशन सूर्य के गहन अध्ययन और अंतरिक्ष मौसम की सटीक जानकारी के लिए एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। वैज्ञानिक अब सौर गतिविधियों की बेहतर भविष्यवाणी कर सकेंगे, जो पृथ्वी पर विभिन्न प्रणालियों को सुरक्षित रखने में मददगार होगी।

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