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राजस्थान लैंड-रेवेन्यू बिल 2025 पर सियासी घमासान

राजस्थान लैंड-रेवेन्यू बिल 2025 पर सियासी घमासान

मनीषा शर्मा। राजस्थान विधानसभा में बुधवार को राजस्थान भू-राजस्व संशोधन और विधिमान्यकरण विधेयक 2025 (Rajasthan Land Revenue Amendment and Validation Bill 2025) पारित किया गया। इस बिल का उद्देश्य औद्योगिक विकास की राह आसान करना है, लेकिन इसके साथ ही किसानों की जमीन पर खतरे की आशंकाएं भी जोर पकड़ने लगी हैं। जहां सरकार ने इसे प्रदेश के औद्योगिक भविष्य के लिए अहम बताया, वहीं निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने किसानों की जमीन को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

सरकार का पक्ष: औद्योगिक विकास के लिए जरूरी कानून

संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल ने सदन में सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कहा कि यह विधेयक प्रदेश में निवेश को आकर्षित करने और औद्योगिक ढांचे को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

पटेल ने स्पष्ट किया कि इस कानून के जरिए रीको (RIICO) को ज्यादा अधिकार मिलेंगे। अब रीको औद्योगिक क्षेत्रों में जमीन के ट्रांसफर, उप-विभाजन, विलय और भू-उपयोग में बदलाव कर सकेगा। इतना ही नहीं, इस विधेयक के जरिए रीको द्वारा पहले से किए गए सभी भूमि संबंधी कार्यों को कानूनी मान्यता भी मिल जाएगी।

सरकार का तर्क है कि निवेशक जब औद्योगिक परियोजनाओं में निवेश करते हैं, तो भूमि संबंधी कानूनी उलझनों की वजह से उन्हें अड़चनों का सामना करना पड़ता है। नया विधेयक इन बाधाओं को दूर करेगा और राज्य को निवेश के लिए और आकर्षक बनाएगा।

रविंद्र भाटी की चिंता: किसानों पर न टूटे संकट

निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने बिल पारित होने के बाद किसानों की ओर से अपनी चिंता व्यक्त की। उनका कहना था कि औद्योगिक विकास की आड़ में किसानों की जमीन का अनुचित अधिग्रहण किया जा सकता है।

भाटी ने कहा, “ऐसा न हो कि किसानों की जमीन बिना उचित मुआवजे के ले ली जाए। जब भी उद्योगों के लिए जमीन चाहिए होती है, तो किसानों की जमीन सबसे पहले निशाना बनती है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसानों का हक सुरक्षित रहे।”

उनके इस बयान ने सदन में बहस को नया मोड़ दे दिया। यह मुद्दा सीधे उस तबके से जुड़ा है, जो खेती-किसानी पर निर्भर है और जिनकी जमीन ही उनकी रोजी-रोटी का आधार है।

हीरालाल नागर का जवाब: किसानों के लिए सहूलियत वाला कानून

ऊर्जा राज्य मंत्री हीरालाल नागर ने भाटी की चिंताओं को खारिज करते हुए कहा कि यह विधेयक किसानों के खिलाफ नहीं, बल्कि उनकी सहूलियत के लिए है।

नागर ने बताया कि ‘राइजिंग राजस्थान’ जैसे आयोजनों में राज्य ने 32 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश आकर्षित किया है। ऐसे में उद्योगों को जमीन उपलब्ध कराने के लिए यह विधेयक जरूरी है। उन्होंने कहा कि रीको को जमीन अलॉट करने और उसके उप-विभाजन का अधिकार मिलने से निवेशक बिना देरी के काम शुरू कर पाएंगे।

नागर ने आश्वासन दिया कि यदि किसी किसान की जमीन अधिग्रहित की जाती है, तो उन्हें उचित मुआवजा दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार पूरी तरह पारदर्शिता बरतेगी और किसी भी किसान के साथ अन्याय नहीं होगा

रीको को क्यों दिए गए विशेष अधिकार?

इस विधेयक का मुख्य प्रावधान यह है कि रीको अब अपने औद्योगिक क्षेत्रों में जमीन से जुड़े सभी मामलों को सरलता से निपटा सकेगा। जमीन के पट्टों का उप-विभाजन, नए पट्टों का जारी होना, भू-उपयोग में परिवर्तन और भूमि हस्तांतरण जैसे अधिकार अब सीधे रीको के पास होंगे।

सरकार का मानना है कि इस कानून से पुरानी कानूनी बाधाएं खत्म होंगी और राज्य का औद्योगिक विकास तेज होगा।

किसानों और उद्योग के बीच संतुलन का सवाल

हालांकि, सवाल यह है कि इस औद्योगिक विकास के बीच किसानों का क्या होगा? राजस्थान जैसे कृषि प्रधान राज्य में यदि किसानों की जमीन अधिग्रहित होती है और उन्हें पर्याप्त मुआवजा या पुनर्वास नहीं मिलता, तो इसका सीधा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।

वहीं, सरकार का कहना है कि इस विधेयक से दोनों पक्षों का संतुलन बना रहेगा—जहां उद्योगों को जमीन मिलेगी, वहीं किसानों को उनका हक भी सुरक्षित रहेगा।

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