शोभना शर्मा। राजस्थान के अलवर जिले में सरिस्का टाइगर सेंचुरी की घनी पहाड़ियों के बीच स्थित है पांडुपोल हनुमान मंदिर, जो न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि महाभारत काल की एक प्रेरणादायक कथा से भी जुड़ा हुआ है। यह मंदिर आज भी उस ऐतिहासिक घटना का साक्षी है, जब महाबली भीम का अभिमान स्वयं बजरंगबली हनुमानजी ने तोड़ा था।
कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों को कई स्थानों पर भ्रमण करना पड़ा। इसी क्रम में भीम एक दिन इन जंगलों से होकर गुजर रहे थे। मार्ग में उन्हें एक वृद्ध वानर लेटा मिला जिसकी लंबी पूंछ रास्ते को अवरुद्ध कर रही थी। भीम ने वानर से पूंछ हटाने को कहा, लेकिन वानर ने शांत भाव से उत्तर दिया, “मैं वृद्ध हूँ, तुम चाहो तो स्वयं इसे हटा लो।” भीम ने पूरी ताकत लगाकर पूंछ हटाने की कोशिश की, पर वह हिला भी नहीं सके।
भीम को आश्चर्य हुआ कि एक बूढ़े वानर की पूंछ वे क्यों नहीं हटा पा रहे। तब उन्होंने उस वानर से निवेदन किया कि वह अपना असली स्वरूप दिखाएं। उसी क्षण हनुमानजी ने अपना दिव्य रूप प्रकट किया। यह देख भीम उनके चरणों में नतमस्तक हो गए। हनुमानजी ने न केवल भीम के अहंकार को शांत किया, बल्कि उन्हें आशीर्वाद भी दिया कि महाभारत युद्ध में वे ध्वजा के रूप में अर्जुन के रथ पर विराजमान रहेंगे और पांडवों को विजय दिलाएंगे।
आज भी जिस स्थान पर यह दिव्य मिलन हुआ, वह स्थान पांडुपोल हनुमान मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। यहां हनुमानजी की लेटी हुई विशाल मूर्ति भक्तों को दिव्यता और शक्ति का एहसास कराती है। मंदिर तक पहुंचने के रास्ते में एक बड़ा पत्थर का द्वार ‘बड़ा पोल’ नाम से जाना जाता है, जिसे लेकर मान्यता है कि भीम ने अपनी गदा से इसे तोड़कर मार्ग प्रशस्त किया था। यह स्थान ना केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिक ऊर्जा के लिए भी प्रसिद्ध है। सरिस्का के जंगलों में स्थित यह मंदिर हर मंगलवार और शनिवार को विशेष भीड़ आकर्षित करता है।