शोभना शर्मा। राजस्थान की राजनीति में एक बार फिर सियासी तापमान चरम पर है। अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की सदस्यता रद्द होने के बाद अब कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर सीधा हमला बोला है। कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया है कि सजायाफ्ता विधायक को बचाने के लिए विधानसभा अध्यक्ष ने निर्णय लेने में जानबूझकर देरी की और यह निर्णय भी तब लिया गया जब न्यायपालिका में अगली सुनवाई से पहले किरकिरी की आशंका बन गई।
टीकाराम जूली का हमला: ‘विधानसभा की गरिमा धूमिल की गई’
नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने विधानसभा अध्यक्ष पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि जब हाईकोर्ट ने कंवरलाल मीणा की तीन साल की सजा को बरकरार रखा, तब उनकी सदस्यता स्वतः समाप्त हो जानी चाहिए थी। इसके बजाय, सदस्यता बचाने के प्रयास किए जाने लगे। जूली के अनुसार, यह संवैधानिक प्रावधानों और विधानसभा की कार्यवाही के नियमों की सीधी अवहेलना थी।
उन्होंने बताया कि कांग्रेस विधायक दल ने इस मुद्दे को लेकर तीन बार विधानसभा अध्यक्ष और एक बार राज्यपाल से मुलाकात की थी और ज्ञापन सौंपे थे। इसके अलावा निर्वाचन आयोग तक भी शिकायत पहुंचाई गई। लेकिन इसके बावजूद सदस्यता रद्द करने का फैसला नहीं लिया गया।
‘अंत में कोर्ट की डांट से टूटा जादू’
जूली ने दावा किया कि आखिरकार कांग्रेस को राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी, जिसमें बुधवार को सुनवाई होनी थी। इसी सुनवाई से पहले राजनीतिक और संवैधानिक किरकिरी से बचने के लिए विधानसभा अध्यक्ष ने मीणा की सदस्यता रद्द करने का निर्णय ले लिया। जूली ने यह भी कहा कि यह फैसला दबाव में लिया गया और इससे पहले तक अध्यक्ष केवल सजायाफ्ता विधायक को बचाने में लगे रहे।
डोटासरा ने कहा- संविधान को बचाने के लिए कांग्रेस मैदान में
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी विधानसभा अध्यक्ष को आड़े हाथों लिया। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “सत्यमेव जयते। कांग्रेस के दबाव और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली द्वारा सुप्रीम कोर्ट में कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की अर्जी लगाने के बाद विधानसभा अध्यक्ष को भाजपा विधायक की सदस्यता रद्द करनी पड़ी।”
डोटासरा का कहना है कि यह फैसला बहुत पहले लिया जाना चाहिए था, क्योंकि कानून के अनुसार, जैसे ही किसी विधायक को दो साल या उससे अधिक की सजा मिलती है, उसकी सदस्यता स्वतः रद्द हो जाती है। उन्होंने कहा कि भाजपा के नेताओं को संविधान की सर्वोच्चता को समझना होगा और उसे मानना पड़ेगा।
डोटासरा ने यह भी कहा कि एक अभियुक्त विधायक को बचाने के लिए न सिर्फ पक्षपात किया गया, बल्कि कोर्ट के आदेश की भी अवहेलना की गई। हालांकि अंततः सत्य की जीत हुई और यह साबित हो गया कि भारत में एक ही कानून चलता है, चाहे व्यक्ति किसी भी पार्टी से जुड़ा हो।