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चुनाव आयोग सख्त: ब्योरा नहीं देने पर राजस्थान की 7 पार्टियों को नोटिस

चुनाव आयोग सख्त: ब्योरा नहीं देने पर राजस्थान की 7 पार्टियों को नोटिस

मनीषा शर्मा। भारत में लोकतंत्र की मजबूती के लिए राजनीतिक दलों की जवाबदेही और पारदर्शिता बेहद अहम मानी जाती है। इसी कड़ी में चुनाव आयोग ने एक बार फिर सख्त रुख अपनाया है। आयोग ने राजस्थान की 7 राजनीतिक पार्टियों को नोटिस जारी किया है। इन दलों पर आरोप है कि उन्होंने न तो पिछले तीन वित्तीय वर्षों के सालाना ऑडिटेड अकाउंट जमा कराए हैं और न ही चुनावी खर्च का ब्योरा दिया है। आयोग ने सभी दलों से 15 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है, अन्यथा इनके रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिए जाएंगे।

चुनाव आयोग की सार्वजनिक सूचना

निर्वाचन विभाग ने इन सातों दलों को नोटिस की सार्वजनिक सूचना जारी करते हुए साफ कर दिया है कि जवाबदेही से बचना संभव नहीं होगा। चुनाव आयोग ने 2021-22, 2022-23 और 2023-24 के ऑडिटेड अकाउंट पेश नहीं करने और चुनाव खर्च का ब्योरा न देने के कारण इन दलों पर सवाल खड़े किए हैं। साथ ही आयोग ने यह भी पूछा है कि क्या इन दलों ने अपनी गतिविधियां सीमित कर दी हैं या पूरी तरह से कामकाज बंद कर दिया है।

15 दिन की समयसीमा

नोटिस में साफ लिखा गया है कि यदि 15 दिनों में दलों ने संतोषजनक जवाब नहीं दिया तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। आयोग के नियमों के अनुसार, ऐसे मामलों में पार्टी का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है।

देशभर में 359 दलों पर भी कार्रवाई की तैयारी

राजस्थान तक सीमित नहीं, बल्कि चुनाव आयोग ने पूरे देश में ऐसे दलों की पहचान की है जिन्होंने तीन साल से अकाउंट और चुनावी खर्च का ब्योरा नहीं दिया। आंकड़ों के मुताबिक, देशभर में 359 राजनीतिक दल इस श्रेणी में आते हैं। इन सभी को चुनाव आयोग की ओर से नोटिस जारी किए जा रहे हैं।

राजनीतिक दलों के पंजीकरण से जुड़ी गाइडलाइन में स्पष्ट लिखा है कि यदि कोई दल लगातार छह साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ता है तो उसे पंजीकृत दलों की सूची से बाहर कर दिया जाएगा। यही कारण है कि चुनाव आयोग निष्क्रिय दलों को छांटकर उनके खिलाफ एक्शन की प्रक्रिया तेज कर रहा है।

2019 से शुरू हुआ छंटनी का अभियान

चुनाव आयोग ने 2019 से ही यह काम शुरू कर दिया था। आयोग ने उन दलों की लिस्ट बनाई जो पिछले छह वर्षों से किसी भी चुनाव में सक्रिय नहीं थे। अब उन दलों को नोटिस देकर जवाब मांगा जा रहा है और जवाब न मिलने की स्थिति में उन्हें सूची से बाहर किया जा रहा है।

राजस्थान की 17 पार्टियों का रजिस्ट्रेशन पहले ही रद्द

इससे पहले भी राजस्थान की 17 राजनीतिक पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा चुका है। ये पार्टियां पिछले छह साल में किसी भी चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं हुई थीं और निष्क्रिय हो गई थीं। आयोग ने इन दलों को नोटिस दिया था, लेकिन संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर इनका रजिस्ट्रेशन खत्म कर दिया गया।

चुनाव आयोग का सख्त रुख

चुनाव आयोग का मानना है कि राजनीतिक दल केवल नाम मात्र के लिए पंजीकरण करवाकर निष्क्रिय नहीं रह सकते। यदि दल जनता से वोट मांगते हैं और चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं तो उन्हें अपनी वित्तीय स्थिति और खर्च का ब्योरा देना ही होगा। आयोग के मुताबिक, पारदर्शिता ही लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है, और जो दल इस नियम का पालन नहीं करेंगे उन्हें सूची से बाहर कर दिया जाएगा।

लोकतंत्र और पारदर्शिता का सवाल

विशेषज्ञों का मानना है कि आयोग की यह कार्रवाई लोकतंत्र की मजबूती के लिए जरूरी है। समय-समय पर यह सवाल उठता रहा है कि कई छोटे दल केवल पंजीकरण के नाम पर मौजूद रहते हैं और चुनावी मैदान में उतरते भी नहीं। ऐसे दल न तो जनता से जुड़े होते हैं और न ही अपने खर्च का कोई हिसाब-किताब देते हैं। यही कारण है कि चुनाव आयोग की यह पहल राजनीतिक पारदर्शिता की दिशा में अहम मानी जा रही है।

पार्टियों के सामने चुनौती

अब राजस्थान की सातों पार्टियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे तय समयसीमा में आयोग को जवाब दें और अपने वित्तीय दस्तावेज पेश करें। ऐसा नहीं करने पर उनका हश्र भी उन 17 निष्क्रिय पार्टियों जैसा हो सकता है जिनका रजिस्ट्रेशन पहले ही रद्द कर दिया गया है।

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