मनीषा शर्मा, अजमेर । अजमेर की पहचान मानी जाने वाली ऐतिहासिक आनासागर झील प्रदूषण की चपेट में आने के कारण एक बार फिर चर्चा में है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने झील में नालों से गिर रहे गंदे पानी को लेकर नगर निगम अजमेर पर सख्त कार्रवाई करते हुए 38 करोड़ 70 लाख 75 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। एनजीटी का कहना है कि झील के संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में नगर निगम नाकाम रहा है। एनजीटी ने साफ निर्देश दिया है कि नगर निगम को यह राशि 60 दिन के भीतर जमा करनी होगी, अन्यथा हर महीने 1.5 प्रतिशत पेनल्टी के रूप में अतिरिक्त रकम चुकानी होगी।
दुर्गंध और बीमारियों से प्रभावित झील का पर्यावरण
भारतीय पब्लिक लेबर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बाबूलाल साहू ने बताया कि पिछले कई महीनों से आनासागर झील के आसपास तेज दुर्गंध फैल रही थी। झील में लगातार गिर रहे गंदे नालों के कारण न केवल पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा था, बल्कि स्थानीय लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा था। आसपास रहने वाले लोगों ने शिकायत की कि झील के पास मच्छरों और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। यही कारण था कि साहू ने मार्च 2023 में एनजीटी के समक्ष एक परिवाद दायर किया। इस पर एनजीटी ने मामले की सुनवाई करते हुए इसे गंभीरता से लिया और झील प्रदूषण के प्रकरण को दर्ज कर लिया।
मामला भोपाल बेंच में ट्रांसफर और नगर निगम का दावा
एनजीटी ने इस केस को आगे की कार्रवाई के लिए अपनी भोपाल बेंच में ट्रांसफर किया। सुनवाई के दौरान नगर निगम अजमेर की ओर से हलफनामा (एफिडेविट) दायर कर कहा गया कि आनासागर झील में गिरने वाले सभी नालों को पूरी तरह पैक कर दिया गया है और अब गंदा पानी झील में नहीं जा रहा। लेकिन एनजीटी ने इस दावे को परखने के लिए एक निरीक्षण टीम गठित की, जिसमें पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और राजस्थान पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण मंडल के विशेषज्ञों को शामिल किया गया।
सर्वे रिपोर्ट में सामने आई हकीकत
एनजीटी की टीम ने 30 जुलाई 2025 को आनासागर झील और आसपास का विस्तृत सर्वे किया। टीम ने पाया कि झील में सीधे तौर पर 13 नाले अब भी गिर रहे हैं। इन नालों से आने वाला गंदा पानी झील के पानी को न केवल प्रदूषित कर रहा था बल्कि झील की जैविक संरचना और प्राकृतिक संतुलन को भी नुकसान पहुंचा रहा था। टीम ने यह पूरी रिपोर्ट एनजीटी को सौंप दी। रिपोर्ट में साफ लिखा गया कि नगर निगम का दावा झूठा था और वास्तव में गंदे नाले अब भी झील में गिर रहे हैं।
एनजीटी का आदेश और जुर्माना
एनजीटी ने 16 अप्रैल 2025 को अपना आदेश जारी किया। आदेश में कहा गया कि नगर निगम अजमेर पर्यावरण संरक्षण में लापरवाह रहा है और उसने अदालत को गुमराह करने की कोशिश की। इसके चलते एनजीटी ने नगर निगम पर ₹38,70,75,000 का जुर्माना लगाया।
साथ ही स्पष्ट निर्देश दिए गए कि जुर्माना 60 दिन के भीतर जमा करना अनिवार्य है। अगर यह राशि समय पर जमा नहीं होती तो हर महीने 1.5% अतिरिक्त पेनल्टी लगाई जाएगी। यह पेनल्टी तब तक जारी रहेगी जब तक जुर्माने की राशि पूरी तरह अदा नहीं हो जाती।
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व वाली झील खतरे में
आनासागर झील केवल अजमेर ही नहीं बल्कि पूरे राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर मानी जाती है। यह झील 12वीं शताब्दी में अर्जुन सिंह चौहान के पुत्र राजा आना जी चौहान ने बनवाई थी। इस झील का धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन की दृष्टि से बहुत महत्व है।
हर साल लाखों पर्यटक और श्रद्धालु अजमेर आते हैं और आनासागर झील उनकी यात्रा का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। लेकिन गंदे नालों और प्रदूषण की वजह से झील की सुंदरता और पवित्रता दोनों पर खतरा मंडरा रहा है।
बाबूलाल साहू का बयान
परिवाद दर्ज कराने वाले बाबूलाल साहू का कहना है कि यह जुर्माना जनता की जीत है। उन्होंने कहा कि लंबे समय से झील के संरक्षण के लिए आवाज उठाई जा रही थी लेकिन नगर निगम ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर भविष्य में भी झील में गंदगी गिरती रही तो और बड़े आंदोलन किए जाएंगे।
नगर निगम की जिम्मेदारी और अगली चुनौती
अब सबसे बड़ी चुनौती नगर निगम अजमेर के सामने है कि वह 60 दिन के भीतर जुर्माने की राशि का भुगतान करे और झील में गिर रहे नालों को स्थायी रूप से रोकने के लिए ठोस कदम उठाए। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तुरंत कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले समय में यह झील पूरी तरह प्रदूषित हो सकती है और पर्यावरणीय आपदा का रूप ले सकती है।
आनासागर झील प्रदूषण का मुद्दा अजमेर के लिए केवल पर्यावरण का नहीं बल्कि इतिहास और पहचान का भी सवाल है। एनजीटी का यह जुर्माना नगर निगम के लिए चेतावनी है कि पर्यावरणीय लापरवाही अब बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अब देखना यह होगा कि नगर निगम इस जुर्माने को समय पर जमा करता है या नहीं और झील को बचाने के लिए कौन-से ठोस कदम उठाए जाते हैं।