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ब्यावर से शुरू हुआ DPDPA कानून के खिलाफ नया आंदोलन, RTI को बचाने का संकल्प

ब्यावर से शुरू हुआ DPDPA कानून के खिलाफ नया आंदोलन, RTI को बचाने का संकल्प

मनीषा शर्मा, अजमेर। ब्यावर में आयोजित सूचना के अधिकार (RTI) मेले में एक ऐतिहासिक घोषणा हुई। मजदूर किसान शक्ति संगठन (MKSS) द्वारा आयोजित इस मेला-आंदोलन में डेटा संरक्षण कानून — Digital Personal Data Protection Act, 2023 (DPDPA) — के खिलाफ एक नए राष्ट्रव्यापी आंदोलन की शुरुआत की गई। यह वही ब्यावर है, जहां से दो दशक पहले सूचना के अधिकार आंदोलन की नींव रखी गई थी और आज इसी भूमि से पारदर्शिता के लिए एक नई लड़ाई की घोषणा की गई।

ब्यावर में गूंजी पारदर्शिता की आवाज

रविवार को आयोजित इस मेला-आंदोलन में देशभर से आए सामाजिक कार्यकर्ताओं, पूर्व न्यायाधीशों, पत्रकारों और नागरिक अधिकार संगठनों ने RTI को बचाने और DPDPA कानून का विरोध करने के लिए एकजुटता दिखाई। इस दौरान ‘सूचना का अधिकार संग्रहालय’ बनाने की घोषणा की गई और ‘ब्यावर घोषणा पत्र – भाग 2’ जारी किया गया। यह घोषणा पत्र पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक नए जन आंदोलन का रोडमैप माना जा रहा है।

अरुणा रॉय: “ब्यावर से फिर उठी आवाज”

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा, “जिस तरह RTI आंदोलन की शुरुआत ब्यावर से हुई थी, उसी तरह अब DPDPA कानून के खिलाफ भी नया आंदोलन यहीं से शुरू होगा। सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही की भावना पर प्रहार कर रही है, लेकिन जनता अब पीछे नहीं हटेगी।” उन्होंने RTI कानून में हुए संशोधनों को वापस लेने की मांग की। अरुणा रॉय ने कहा कि RTI ने देश के आम नागरिक को यह ताकत दी कि वे सत्ता से सवाल कर सकें। लेकिन DPDPA कानून नागरिकों की उस ताकत को सीमित करने की कोशिश है। “यह आंदोलन सत्ता के बंद दरवाजों को फिर से खोलने का संकल्प है,” उन्होंने कहा।

न्यायमूर्ति ए. पी. शाह: “RTI जनता का कानून है”

पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए. पी. शाह ने कहा कि RTI संसद की देन नहीं, बल्कि जनता के संघर्ष का परिणाम है। उन्होंने कहा, “RTI ने जनता को सत्ता के बंद बक्से खोलने की चाबी दी थी। अब DPDPA कानून के जरिए सरकारें फिर से वह चाबी वापस लेना चाहती हैं।” उन्होंने ब्यावर में बनने वाले ‘सूचना का अधिकार संग्रहालय’ को पारदर्शिता की ऐतिहासिक विरासत को जीवित रखने वाला कदम बताया।

वज़ाहत हबीबुल्लाह: “RTI की रक्षा जनता की जिम्मेदारी”

देश के पहले मुख्य सूचना आयुक्त वज़ाहत हबीबुल्लाह ने कहा, “सूचना का अधिकार सत्ता और नागरिकों के संबंध को बदलने वाला ऐतिहासिक कदम था। लेकिन अब सत्ता इसे सीमित करना चाहती है। जब जनता ने इसे जन्म दिया है, तो उसकी रक्षा की जिम्मेदारी भी जनता की ही है।” उन्होंने इस आंदोलन को न केवल RTI की रक्षा बल्कि लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम बताया।

निखिल डे: “अब जवाबदेही कानून की बारी”

MKSS के वरिष्ठ कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा, “पारदर्शिता की लड़ाई हमने RTI से जीती थी, अब जवाबदेही कानून की बारी है। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि सत्ता जनता के प्रति जवाबदेह बने और पारदर्शिता खत्म न हो।” उन्होंने कहा कि DPDPA कानून नागरिकों के ‘जानने के अधिकार’ को सीमित करने का प्रयास है। इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।

रामप्रसाद कुमावत: “ब्यावर को RTI सिटी बनाएं”

पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता रामप्रसाद कुमावत ने कहा, “RTI को जीवित रखना जनता की सतर्कता पर निर्भर है। ब्यावर को ‘RTI City’ घोषित कर हम इस आंदोलन को नया जीवन दे सकते हैं। हर नागरिक अपने पत्रों और दस्तावेज़ों पर ‘RTI City Beawar’ लिखना शुरू करे।” उनका कहना था कि यह केवल एक आंदोलन नहीं बल्कि एक प्रतीक होगा कि जनता अपने अधिकारों के प्रति सजग और एकजुट है।

कविता श्रीवास्तव: “लोकतंत्र की रीढ़ है सूचना का अधिकार”

PUCL की राष्ट्रीय अध्यक्ष कविता श्रीवास्तव ने कहा, “सूचना का अधिकार केवल पारदर्शिता का औजार नहीं, बल्कि लोकतंत्र की रीढ़ है। DPDPA कानून के जरिए जनता के इस जन्मसिद्ध अधिकार को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है, जिसे हम कभी सफल नहीं होने देंगे।” उन्होंने जोर दिया कि RTI केवल एक कानूनी अधिकार नहीं बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की आत्मा है।

15 कार्यशालाओं में उभरे ठोस प्रस्ताव

इस मेला-आंदोलन में 15 अलग-अलग विषयों पर कार्यशालाएं आयोजित की गईं। इनमें पारदर्शिता, जवाबदेही, डेटा सुरक्षा, नागरिक अधिकार और डिजिटल निजता जैसे मुद्दों पर गहन चर्चाएं हुईं। इन कार्यशालाओं से जो ठोस प्रस्ताव निकले, उन्हें आंदोलन की आगामी रणनीति का आधार बनाया जाएगा। कार्यशालाओं में देशभर के सामाजिक संगठनों, सूचना कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने भाग लिया। सभी ने इस बात पर सहमति जताई कि RTI को कमजोर करने की किसी भी कोशिश का जोरदार विरोध किया जाएगा।

सांस्कृतिक सत्रों में गूंजे जनगीत

RTI मेला सिर्फ राजनीतिक या सामाजिक विमर्श तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें जनसांस्कृतिक ऊर्जा भी शामिल थी। सांस्कृतिक सत्रों में “मैं नहीं मांगा” और “जानने का हक़” जैसे जनगीतों ने लोगों को RTI आंदोलन की शुरुआती दिनों की याद दिला दी। इन जनगीतों ने आंदोलन में एकजुटता, संकल्प और जनता की ताकत की भावना को और मजबूत किया।

ब्यावर घोषणा पत्र – भाग 2

आयोजन के अंत में ‘ब्यावर घोषणा पत्र – भाग 2’ जारी किया गया। इसमें DPDPA कानून के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने, RTI को कमजोर करने वाले किसी भी संशोधन का विरोध करने और ब्यावर को RTI आंदोलन के केंद्र के रूप में विकसित करने का आह्वान किया गया।

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