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नए जिलाध्यक्ष सबको साथ लेकर चलें: अशोक गहलोत

नए जिलाध्यक्ष सबको साथ लेकर चलें: अशोक गहलोत

मनीषा शर्मा।  राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत ने नए जिलाध्यक्षों को बड़ा संदेश देते हुए कहा कि उन्हें संगठन को मजबूत करने के लिए सभी को साथ लेकर चलना होगा। गहलोत ने साफ कहा कि नए जिलाध्यक्षों पर हाईकमान ने विश्वास किया है, इसलिए वे इस भरोसे पर खरे उतरें। साथ ही वे ब्लॉक, मंडल और बूथ कमेटियों को जल्द से जल्द पुनर्गठित करें, जिससे जमीन पर संगठन की पकड़ और मजबूत हो।

गहलोत जोधपुर सर्किट हाउस में मीडिया से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कांग्रेस संगठन में हुए हालिया बदलावों को लेकर संतोष जताया और राहुल गांधी तथा मल्लिकार्जुन खड़गे द्वारा किए जा रहे अभिनव प्रयोग की सराहना की। उन्होंने कहा कि पूरे देश में वरिष्ठ और अनुभववान नेताओं को जिलों में जिम्मेदारी देकर संगठन को नए सिरे से मज़बूती दी जा रही है। राजस्थान में भी यह प्रयोग सफल होने की उम्मीद है।

“निर्णय हो गया, अब उसे सफल बनाना जिलाध्यक्षों की जिम्मेदारी”

अशोक गहलोत ने कहा कि किसी को जिम्मेदारी मिलना पहली सीढ़ी है, लेकिन असली चुनौती उस जिम्मेदारी को सफलता में बदलने की होती है। उन्होंने कहा कि अब समय है जब नए जिलाध्यक्ष एसआईआर (Special Intensive Revision) अभियान में भी सक्रियता से भाग लें और लोकतंत्र की रक्षा के लिए राजनीतिक लड़ाई को मजबूती से आगे बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी फासिस्ट सरकार का मजबूती से मुकाबला कर रहे हैं और संगठन को उनके हाथ मजबूत करने होंगे।

“जब मैं जिलाध्यक्ष बना तब भी विरोध हुआ था, लेकिन सबको साथ लिया”

गहलोत ने अपने जीवन के शुरुआती राजनीतिक अनुभव साझा करते हुए कहा कि वह समय भी याद है जब वे जोधपुर के जिलाध्यक्ष बनाए गए थे। तब कई नेता उनके खिलाफ थे और नाराज भी हुए थे। लेकिन उन्होंने लगातार उन सभी से संवाद बनाए रखा।

उन्होंने कहा, “हर मीटिंग में फोन करके बुलाता था। कोई आता, कोई नहीं आता। लेकिन समय के साथ परिस्थितियां बदलीं और जिला कांग्रेस कमेटी पूरी तरह एकजुट हो गई।”
गहलोत ने बताया कि बाद में इंदिरा गांधी के जेल भरो आंदोलन में नाराज लोग भी उनके साथ खड़े हुए और ऐसी परिस्थिति बनी कि लोकसभा चुनाव में वही नेता जिन्होंने विरोध किया था, उनके टिकट के लिए आगे आए। उन्होंने कहा — यही संगठन का तरीका होता है। चाहे संगठन में विरोध हो, असहमति हो, लेकिन बातचीत और साथ लेकर चलने से विरोधी भी साथी बन जाते हैं।

“नेतृत्व क्षमता और संवाद ही जिला अध्यक्ष की सफलता”

पूर्व मुख्यमंत्री ने जोर देकर कहा कि संगठनात्मक पद जिन्हें मिलते हैं, उनका काम केवल पद धारण करना नहीं होता, बल्कि टीम बनाकर आगे बढ़ना होता है। उन्होंने कहा कि मंत्री बन जाना आसान है क्योंकि वह नियुक्ति होती है, लेकिन संगठनात्मक पद पर वही टिक सकता है, जिसमें संवाद और नेतृत्व की शक्ति हो और जो हर कार्यकर्ता को साथ लेकर चल सके। गहलोत ने कहा — “जिला अध्यक्ष बनना कठिन काम है। जब तक उनमें क्षमता न हो कि सबको साथ लेकर चल सकें, तब तक सफलता नहीं मिलेगी।” उन्होंने आशा जताई कि नए जिलाध्यक्ष इसी रह पर कार्य करेंगे और जहां असहमति हो, वहां धैर्य, संवाद और सम्मान के साथ संगठन को मजबूत करेंगे।

“शिकायतें होंगी, पर संगठन की मजबूती ही प्राथमिकता”

गहलोत ने स्वीकार किया कि कांग्रेस में सभी को पद नहीं मिल सकता, इसलिए शिकायतें होना स्वाभाविक है। लेकिन उन्होंने कहा कि जो लोग जिम्मेदारी पर हैं, उन्हें शिकायतों से ऊपर उठकर संगठन को आगे ले जाना है। उन्होंने पूर्व जिलाध्यक्षों की भी प्रशंसा की और कहा कि उन्होंने संगठन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

एसआईआर और राजनीतिक स्थिति पर टिप्पणी

एसआईआर अभियान पर प्रतिक्रिया देते हुए गहलोत ने कहा कि यह मतदाता सूची की शुद्धिकरण प्रक्रिया है और कांग्रेस इसे मजबूती से करेगी। उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए कांग्रेस की जिम्मेदारी अधिक बढ़ गई है, इसलिए नए जिलाध्यक्षों को सक्रियता दिखानी होगी।

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