मनीषा शर्मा, अजमेर। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने शुक्रवार को महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय (MDSU) के 37वें स्थापना दिवस समारोह में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत शिक्षा के क्षेत्र में एक नए युग में प्रवेश कर चुका है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति केवल शिक्षा का स्वरूप नहीं बदल रही, बल्कि भारतीयता, सनातन संस्कृति और राष्ट्र गौरव को जाग्रत कर एक सुयोग्य नागरिक और श्रेष्ठ राष्ट्र निर्माण की दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रही है।
देवनानी ने कहा कि अब विश्वविद्यालयों को भी अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना होगा। केवल पुस्तकों तक सीमित शिक्षा नहीं, बल्कि शोध, तर्क और व्यावहारिक ज्ञान को बढ़ावा देना होगा। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को केवल कक्षा में लाना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उन्हें सह-शैक्षणिक गतिविधियों, सामाजिक सहभागिता और चरित्र निर्माण की ओर भी ले जाना होगा। शिक्षकों को चाहिए कि वे विद्यार्थियों से संवाद बढ़ाएं, उनके घर जाएं और उनके सर्वांगीण विकास में भागीदार बनें।
विश्वविद्यालय को चाहिए नई सोच
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि MDSU जैसे विश्वविद्यालय को अब केवल परंपरा नहीं, बल्कि ग्लोबल विजन के साथ आगे बढ़ना होगा। उन्होंने कहा कि यह संस्थान भी तक्षशिला और नालंदा की तरह अंतरराष्ट्रीय पहचान बना सकता है। देवनानी ने शिक्षा के माध्यम से सनातन संस्कृति को मजबूत करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि हमारी संस्कृति ही हमारी पहचान, सोच और जीवनशैली को दिशा देती है।
विश्वविद्यालय के सामने चुनौतियां भी
समारोह में उपस्थित जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत ने कहा कि विश्वविद्यालय की समस्याओं जैसे अतिक्रमण, शिक्षकों और स्टाफ की कमी आदि को दूर करने के लिए सरकार पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि वे स्वयं इसी विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं और इस संस्थान को ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए हरसंभव सहयोग देंगे।
शिक्षा की मूल अवधारणा पर लौटने का आह्वान
मुख्य वक्ता शिक्षाविद् हनुमान सिंह राठौड़ ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिस महापुरुष के नाम पर विश्वविद्यालय का नाम रखा गया है, वह केवल संत नहीं, बल्कि महान शिक्षाविद और समाज सुधारक थे। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने जातिवाद, अंधविश्वास, छुआछूत और अन्य कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई और भारतीय ज्ञान प्रणाली को एक सशक्त विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया।
उन्होंने कहा कि डीएवी आंदोलन इसी दिशा में एक ऐतिहासिक प्रयास था, जिसने अंग्रेजी माध्यम में भी भारतीय संस्कृति को बनाए रखने का माध्यम प्रस्तुत किया। राठौड़ ने कहा कि आज शिक्षा को मूल भाषा में दिए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि बच्चे उसी भाषा में सपने देखते हैं। उन्होंने अंग्रेजी को केवल कैरियर का माध्यम मानने की मानसिकता पर चिंता जाहिर की।
कुलगुरु का आत्मवलोकन का संदेश
कुलगुरु प्रो. सुरेश कुमार अग्रवाल ने स्थापना दिवस को आत्ममंथन का दिन बताया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि विश्वविद्यालय यह तय करे कि उसे केवल राष्ट्रीय नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर का संस्थान कैसे बनाना है। इसके लिए शोध, नवाचार और वैश्विक मानकों के अनुसार शिक्षण प्रक्रिया अपनानी होगी।
अन्य वक्ताओं की भागीदारी
इस मौके पर राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय बीकानेर के पूर्व कुलपति प्रो. बी.आर. छीपा ने भी स्वामी दयानंद सरस्वती को भारतीय संस्कृति के पुरोधा के रूप में याद किया और उनके साहित्य तथा शिक्षा दर्शन को मार्गदर्शक बताया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रिया भार्गव, पूर्व कुलपति प्रो. लोकेश शेखावत, प्रबंध बोर्ड सदस्य प्रो. अनिल दाधीच, प्रो. ऋतु माथुर, शिक्षक प्रो. सुब्रतो दत्ता, प्रो. रीटा मेहरा, प्रो. शिव प्रसाद, प्रो. नरेश कुमार धीमान, डॉ. आशीष पारीक, डॉ. लारा शर्मा सहित अनेक गणमान्य जन, शिक्षाविद, अधिकारी, विद्यार्थी और कर्मचारी उपस्थित रहे।