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भारत के न्यूक्लियर पावर प्रोग्राम के स्तंभ एम. आर. श्रीनिवासन का निधन

भारत के न्यूक्लियर पावर प्रोग्राम के स्तंभ एम. आर. श्रीनिवासन का निधन

शोभना शर्मा।  भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की आधारशिला रखने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक एम. आर. श्रीनिवासन का आज तमिलनाडु के ऊटी में निधन हो गया। वे 95 वर्ष के थे। उनके निधन की पुष्टि उनकी बेटी शारदा श्रीनिवासन ने सोशल मीडिया पर की। उन्होंने बताया कि सोमवार को अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां मंगलवार सुबह करीब 4 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।

बचपन से लेकर वैज्ञानिक यात्रा तक

एम. आर. श्रीनिवासन का जन्म 5 जनवरी 1930 को ब्रिटिश भारत के बेंगलुरु में हुआ था। मैसूर इंटरमीडिएट कॉलेज से विज्ञान में शिक्षा प्राप्त करने के दौरान उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी को माध्यम के रूप में चुना। 1950 में उन्होंने एम. विश्वेश्वरैया इंजीनियरिंग कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री प्राप्त की।

इसके बाद 1952 में मास्टर्स पूरा करने के पश्चात वे उच्च शिक्षा के लिए कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी, मॉन्ट्रियल चले गए। वहां उन्होंने गैस टर्बाइन टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता के साथ पीएचडी की।

भारत के न्यूक्लियर पावर कार्यक्रम में अहम भूमिका

सितंबर 1955 में श्रीनिवासन भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी से जुड़े। उन्होंने देश के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के जनक माने जाने वाले डॉ. होमी जहांगीर भाभा के साथ मिलकर काम करना शुरू किया। अगस्त 1956 में उन्होंने भारत का पहला न्यूक्लियर रिएक्टर ‘अप्सरा’ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

डॉ. भाभा की 1966 में मृत्यु के बाद भी श्रीनिवासन ने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। उन्होंने डॉ. विक्रम साराभाई, डॉ. राजा रामन्ना, डॉ. आर. चिदंबरम, डॉ. अनिल काकोडकर जैसे दिग्गज वैज्ञानिकों के साथ मिलकर भारत को न्यूक्लियर पावर में आत्मनिर्भर बनाने का कार्य जारी रखा।

एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन और NPCIL के संस्थापक

एम. आर. श्रीनिवासन को 1987 में एटॉमिक एनर्जी कमीशन का चेयरमैन बनाया गया। उन्होंने उसी वर्ष न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) की स्थापना की। उनकी अगुवाई में देश में कुल 18 न्यूक्लियर पावर यूनिट्स स्थापित की गईं, जो आज भारत की ऊर्जा सुरक्षा की रीढ़ हैं।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भागीदारी

श्रीनिवासन न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वैज्ञानिक रहे। वे वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ न्यूक्लियर ऑपरेटर्स (WANO) के संस्थापक सदस्यों में शामिल थे। साथ ही वे इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग, इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स और इंडियन न्यूक्लियर सोसाइटी के फेलो और इमेरिटस फेलो भी रहे।

वैज्ञानिक समुदाय और देश को क्षति

एम. आर. श्रीनिवासन के निधन से देश ने एक ऐसा वैज्ञानिक खो दिया है, जिसने न केवल विज्ञान को सेवा का माध्यम बनाया बल्कि देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए दशकों तक योगदान दिया। उनके जाने से भारतीय विज्ञान जगत में एक युग का अंत हुआ है।

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