मनीषा शर्मा। बांसवाड़ा-डूंगरपुर के सांसद राजकुमार रोत ने कहा है कि आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म कोड होना चाहिए, जो उनकी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को सुनिश्चित करे। उनका दावा है कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं, और उनकी पूजा पद्धति और मान्यताएं भी अलग हैं। इसलिए, उन्होंने सरकार से आग्रह किया है कि 2024 की जनगणना में आदिवासियों को उनकी धार्मिक पहचान के लिए एक अलग धर्म कोड उपलब्ध करवाया जाए।
एनसीईआरटी की किताब से हटाया गया इतिहास
राजकुमार रोत का कहना है कि 30 साल पहले एनसीईआरटी की किताबों में बिरसा मुंडा और अन्य आदिवासी नायकों का जिक्र था, जिसमें लिखा गया था कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं और उनकी पूजा पद्धति अलग है। उन्होंने कहा कि अब इस इतिहास को एनसीईआरटी की किताबों से हटा दिया गया है, जो भाजपा की सोच का परिणाम है। उनका कहना है कि यह आदिवासी पहचान को मिटाने की एक प्रक्रिया हो सकती है।
रोत ने साफ किया कि उनकी किसी भी धर्म या समुदाय से कोई विरोध नहीं है। बल्कि, उनका उद्देश्य केवल आदिवासियों को एक स्वतंत्र पहचान देना है ताकि वे अपने वास्तविक धर्म का पालन कर सकें और सामाजिक सुरक्षा का लाभ उठा सकें। उन्होंने कहा कि आदिवासी लोग अलग-अलग जगहों पर विभाजित हैं और अपनी परिस्थिति के अनुसार विभिन्न धर्मों को अपनाते हैं।
आदिवासी स्वतंत्र पहचान के लिए संघर्ष
सांसद रोत का मानना है कि आदिवासी समाज की अपनी पहचान होनी चाहिए ताकि उनके सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार संरक्षित रहें। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय का देश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण योगदान रहा है, लेकिन उन्हें उनकी पहचान से वंचित रखा गया है। आज के समय में धर्म की राजनीति ने आदिवासियों की इस पहचान को और भी जटिल बना दिया है। उनका कहना है कि आदिवासी समाज हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं है, और उन्हें उनकी वास्तविक पहचान मिलनी चाहिए।
भाजपा सरकार पर निशाना
राजकुमार रोत ने भाजपा सरकार पर भी निशाना साधते हुए कहा कि राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसे मुद्दे अपने चरम पर हैं। उनका दावा है कि मनरेगा मजदूरों को भुगतान नहीं किया जा रहा है, छात्रों की छात्रवृत्ति बकाया है, और सामाजिक सुरक्षा पेंशन भी नियमित रूप से नहीं मिल रही है।
उन्होंने कहा कि टीएडी (जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग) विभाग के हॉस्टल में वार्डन तीन साल तक नियुक्त किए जाने का नियम है, परंतु कई वर्षों से कई वार्डन अपनी जगह पर जमे हुए हैं। रोत ने यह भी कहा कि उन्होंने विधायक रहते हुए इन मुद्दों को विधानसभा में उठाया था, लेकिन एक पूर्व मंत्री ने इन मुद्दों को नजरअंदाज कर दिया।
आदिवासी मंत्रियों पर भी सवाल
रोत ने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों से दो मंत्रियों को नियुक्त किया गया है, लेकिन वे अपने कार्यों पर ध्यान देने के बजाय पार्टी प्रचारक की तरह काम कर रहे हैं। उनके अनुसार, इन मंत्रियों का कोई वास्तविक योगदान नहीं है और वे केवल विभागों को कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि आदिवासी छात्रावासों में घटिया सामग्री का वितरण किया जा रहा है, लेकिन सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है।
आगामी विधानसभा उपचुनाव में स्वतंत्र रूप से लड़ने का ऐलान
रोत ने घोषणा की है कि आगामी विधानसभा उपचुनाव में भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) किसी भी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी और स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ेगी। डूंगरपुर की चौरासी विधानसभा और सलूंबर विधानसभा के उपचुनाव में बीएपी ने अपनी जीत का दावा किया है।
शुद्धिकरण विवाद
सांसद राजकुमार रोत के आदिवासी तीर्थ स्थल घोटिया आंबा धाम में दर्शन करने के बाद इस स्थान का शुद्धिकरण किया गया। आदिवासी सनातन हिंदू जन जागरण समिति के सदस्यों ने घोटेश्वर महादेव के मंदिर को पवित्र जल से धोने का आयोजन किया।
पूर्व मंत्री धन सिंह रावत ने कहा कि जो लोग हिंदू धर्म को नहीं मानते हैं, उनके यहां दर्शन करने से मंदिर की पवित्रता भंग होती है। इसी कारण समिति द्वारा शुद्धिकरण आवश्यक समझा गया।
यह विवाद तब शुरू हुआ जब आदिवासी अधिकार दिवस के अवसर पर भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा द्वारा इस स्थल पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम को लेकर समिति ने प्रशासन से इसे निरस्त करने की मांग की थी, लेकिन अंततः दोनों पक्षों के बीच समन्वय से कार्यक्रम संपन्न हुआ।
आदिवासी समाज के लिए अहम मुद्दा
सांसद रोत के अनुसार, आदिवासी समाज की स्वतंत्र पहचान उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। जनगणना में आदिवासियों के लिए एक अलग धर्म कोड की मांग आदिवासी समाज की पहचान को मजबूत बनाने के उद्देश्य से है। उनका मानना है कि यह कदम आदिवासियों के धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अधिकारों की सुरक्षा करेगा और उन्हें मुख्यधारा में सम्मानजनक स्थान दिलाने में सहायक होगा।