मनीषा शर्मा। राजस्थान विधानसभा में पीपल्दा से कांग्रेस विधायक चेतन पटेल ने सुल्तानपुर को उप तहसील से पूर्ण तहसील का दर्जा देने की मांग उठाई है। उन्होंने विधानसभा में कार्य संचालन संबंधी नियम 295 के तहत इस विषय को उठाते हुए कहा कि किसानों और ग्रामीणों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए बजट सत्र में इस मांग को पूरा किया जाना चाहिए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि झालावाड़ के असनावर में 13, बूंदी के रायथल में 12 और अजमेर के टाटोती में मात्र 5 पटवार मंडलों के आधार पर तहसील बनाई गई थी, जबकि सुल्तानपुर में वर्तमान में 19 पटवार मंडल मौजूद हैं। इसके बावजूद, सुल्तानपुर को अब तक तहसील का दर्जा नहीं दिया गया है।
क्यों उठी सुल्तानपुर को तहसील बनाने की मांग?
विधायक चेतन पटेल ने बताया कि पीपल्दा विधानसभा क्षेत्र में दो तहसीलें हैं – पीपल्दा और दीगोद। हालांकि, दीगोद तहसील मुख्यालय सांगोद विधानसभा क्षेत्र में आता है, और इसके अंतर्गत उप तहसील सुल्तानपुर को शामिल किया गया है। सुल्तानपुर एक बड़ा कस्बा है जहां पंचायत समिति, नगर पालिका, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सांख्यिकी कार्यालय, थाना, महिला एवं बाल विकास कार्यालय, कृषि विभाग, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी कार्यालय सहित कई प्रशासनिक कार्यालय स्थित हैं।
इसके अलावा, सुल्तानपुर में 5 कानूनगो सर्किल, 19 पटवार मंडल और 75 गांव शामिल हैं। सुल्तानपुर की जनसंख्या वर्तमान में दीगोद से भी अधिक हो चुकी है, ऐसे में यह पूरी तरह से एक स्वतंत्र तहसील बनने के योग्य है।
ग्रामीणों को हो रही असुविधा
सुल्तानपुर में प्रशासनिक सुविधाएं मौजूद होने के बावजूद ग्रामीणों को दीगोद तहसील के अधीन काम करना पड़ता है, जिससे उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
42 किलोमीटर की लंबी दूरी: सुल्तानपुर के अंतिम गांव मोहम्मदपुरा (मदनपुरा) से दीगोद तहसील मुख्यालय तक 42 किलोमीटर की दूरी है।
किसानों को दिक्कतें: किसान और ग्रामीण लोग अपने भूमि संबंधी, राजस्व और अन्य प्रशासनिक कार्यों के लिए दीगोद तहसील जाने को मजबूर हैं, जिससे उन्हें समय और धन दोनों की हानि होती है।
बढ़ती जनसंख्या और संसाधन: सुल्तानपुर की तेजी से बढ़ती जनसंख्या, प्रशासनिक सुविधाओं की उपलब्धता और आर्थिक गतिविधियों की बढ़ती संख्या इस कस्बे को पूर्ण तहसील का दर्जा देने के लिए उपयुक्त बनाती है।
तहसील बनने से क्या होगा फायदा?
यदि सुल्तानपुर को तहसील का दर्जा मिलता है, तो इससे क्षेत्र के ग्रामीणों, किसानों और आम जनता को कई लाभ होंगे:
प्रशासनिक कार्यों की सुगमता: तहसील कार्यालय स्थानीय स्तर पर होने से ग्रामीणों को आसानी से राजस्व और अन्य सरकारी सेवाएं मिलेंगी।
समय और धन की बचत: दीगोद तक जाने में होने वाला समय और किराए का खर्च बचेगा।
कृषि और व्यापार को बढ़ावा: प्रशासनिक विकास से कृषि, व्यापार और अन्य आर्थिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा।
नागरिकों को बेहतर सुविधाएं: लोगों को दस्तावेज़ सत्यापन, भू-अभिलेख, नामांतरण, फसल बीमा जैसी सेवाओं के लिए दूर नहीं जाना पड़ेगा।
क्या सरकार इस मांग पर विचार करेगी?
विधायक चेतन पटेल ने बजट सत्र में सुल्तानपुर को तहसील का दर्जा देने की मांग की है। अब यह देखना होगा कि राज्य सरकार इस पर क्या निर्णय लेती है। वर्तमान में राजस्थान में प्रशासनिक पुनर्गठन की मांग को लेकर कई क्षेत्रों से मांग उठ रही है। यदि सरकार इस मुद्दे को प्राथमिकता देती है, तो सुल्तानपुर को पूर्ण तहसील बनाने का निर्णय लिया जा सकता है। इस मांग का समर्थन स्थानीय ग्रामीणों और जनप्रतिनिधियों द्वारा भी किया जा रहा है, जिससे यह मुद्दा सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और राजनीतिक विषय बन सकता है।