मनीषा शर्मा। प्रदेश में अफसरशाही का दबदबा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इस बार यह बात 19 जून को दोपहर साढ़े तीन बजे मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में बुलाई गई बजट पूर्व बैठक में साफ नजर आई। इस बैठक के आदेश में उद्योग एवं वाणिज्य राज्यमंत्री केके विश्नोई को आमंत्रित नहीं किया गया, जबकि डिप्टी सीएम दीया कुमारी और उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री कर्नल राज्यवर्धन सिंह राठौड़ को बुलाया गया है।
यह बैठक मुख्यमंत्री कार्यालय स्थित कन्वेशन हॉल में व्यापार, कर सलाहकार और उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधियों के साथ होने जा रही है। इसमें अधिकारियों के अलावा 29 संगठनों को बजट पूर्व चर्चा के लिए आमंत्रित किया गया है। इस प्रकार की घटनाएं अफसरशाही के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती हैं, जहां मंत्री भी उनके सामने बौने नजर आते हैं।
गौरतलब है कि इससे पहले भी वित्त विभाग ने कुछ दिनों पहले कर्मचारी संगठनों की प्री बजट बैठक में वित्तमंत्री दीया कुमारी को नजरंदाज कर दिया था। जब यह मामला मीडिया में आया, तो आनन-फानन में संशोधित आदेश जारी किए गए। परंतु ऐसी चूकों के लिए जिम्मेदार अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती, जिससे सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को उठाया है और अधिकारियों की इन गलतियों पर सरकार की चुप्पी पर सवाल खड़े किए हैं। अफसरशाही के इस बढ़ते प्रभाव से सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। अब देखना होगा कि सरकार इस मामले में क्या कदम उठाती है।
प्रदेश की सरकार को चाहिए कि वह अपनी अफसरशाही पर नियंत्रण रखे और इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोके, ताकि जनप्रतिनिधियों का मान-सम्मान बना रहे।