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राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में अगले 6 महीने टिड्डी दल का खतरा

राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में अगले 6 महीने टिड्डी दल का खतरा

मनीषा शर्मा। राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में टिड्डियों की संभावित समस्या पर अध्ययन करने के लिए इटली की एक टीम ने हाल ही में दौरा किया। जैसलमेर, बीकानेर और बाड़मेर जैसे जिलों में सर्वे कर पता चला कि टिड्डियां यहाँ केर, गोखरू, दूधी और बूई जैसे पौधों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाती हैं। यह पौधे टिड्डियों के पसंदीदा हैं, क्योंकि इनमें कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं।

 इटली से आए एक्सपर्ट्स का सर्वे:
इटली के रोम स्थित FAO (डेजर्ट लोकस्ट फोरकास्टिंग) के विशेषज्ञ डॉ. सिरिल ने अक्टूबर में 9 दिनों तक इन क्षेत्रों का निरीक्षण किया और टिड्डियों के आहार, व्यवहार और इनके आकर्षण के कारणों पर शोध किया। सर्वे में पाया गया कि अगले 6 महीने तक राजस्थान में टिड्डियों का खतरा नहीं है, लेकिन तीन जिलों में एहतियात के तौर पर अलर्ट जारी किया गया है।

 टिड्डियों का जीवन चक्र और उनके नुकसान:
टिड्डियों की आयु ढाई से तीन महीने होती है और यह अपने वजन से दोगुना फसल को खा सकती हैं। ये दल बारिश के बाद नमी वाले मौसम में प्रजनन करते हैं और समूह में फसलों पर हमला करते हैं। रात में खेतों में बैठकर ये बड़ी मात्रा में फसल को नष्ट कर सकते हैं और सुबह होते ही उड़ जाते हैं।

 टिड्डी नियंत्रण के लिए कदम:
राजस्थान में टिड्डियों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए टिड्डी नियंत्रण विभाग के सहायक निदेशक डॉ. वीरेंद्र कुमार ने ई-लोकस्ट ऐप और हाई-क्वालिटी कैमरों का इस्तेमाल किया। इसके जरिए, स्थानीय स्तर पर टिड्डियों के हमलों को रोकने के लिए विस्तृत योजना बनाई गई है, ताकि किसानों को भविष्य में होने वाले नुकसान से बचाया जा सके।

 टिड्डियों की संभावित प्रजनन साइट्स:
वर्तमान में, टिड्डियों का प्रजनन मोरक्को और यमन में हुआ है, जो भारत की ओर संभावित हमले का संकेत हो सकता है। हालांकि, हवाओं के उल्टे बहाव और सर्दियों के कारण इनकी भारत में आने की संभावना कम है, फिर भी जिन क्षेत्रों में केर, गोखरू, दूधी और बूई की अधिकता है, वहां खतरा बना हुआ है।

 टिड्डी हमले से पहले की तैयारी:
टिड्डी नियंत्रण विभाग के अनुसार, यदि टिड्डी दल का आक्रमण होता है, तो इन जिलों में अलर्ट कर दिया गया है ताकि किसानों को तुरंत जानकारी दी जा सके। इसके लिए मोबाइल ऐप्स के जरिए जीपीएस और कैमरा तकनीक का इस्तेमाल कर सर्वेक्षण किया गया है और इसे विस्तृत नक्शों पर दर्ज किया गया है।

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