शोभना शर्मा। उदयपुर के सिटी पैलेस में एक ऐतिहासिक और भावनात्मक पल साक्षी बना, जब मारवाड़ क्षेत्र के पांच गांवों के राजपुरोहितों ने पूर्व राजपरिवार के सदस्य डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के आमंत्रण पर आकर परंपरागत रस्में निभाईं। 300 साल पहले टूटी एक पवित्र परंपरा को फिर से जोड़ने का यह प्रयास राजस्थान के सांस्कृतिक इतिहास में एक नया अध्याय बन गया है।
दरअसल, पाली जिले के देसूरी क्षेत्र के पांच गांव — घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव — मेवाड़ राज्य की आखिरी सीमा पर बसे हैं। इन गांवों के राजपुरोहितों का मेवाड़ के राजघराने से गहरा संबंध रहा है। सदियों तक यह संबंध राखी और चूंदड़ी जैसी रस्मों के जरिए जीवित रहा, लेकिन तीन सौ साल पहले कुछ कारणों से यह परंपरा टूट गई थी।
हाल ही में पूर्व महाराणा अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन पर इन गांवों के राजपुरोहितों ने सिटी पैलेस पहुंचकर शोक जताया था। उस समय राजपरिवार के अनुरोध के बावजूद उन्होंने भोजन ग्रहण नहीं किया था, क्योंकि ब्राह्मण और राजपुरोहित परंपरा के अनुसार शोक के दौरान भोजन वर्जित होता है। उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अब डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने पांचों गांवों के राजपुरोहितों को विशेष रूप से आमंत्रित कर, परंपरा को पुनर्जीवित करने का भावपूर्ण प्रयास किया।
स्वागत और रस्मों के साथ पुनर्जीवित हुआ संबंध
सिटी पैलेस में आज जब पांचों गांवों के राजपुरोहित पहुंचे, तो उनका गर्मजोशी से स्वागत किया गया। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ और उनके पुत्र हरितराज सिंह मेवाड़ ने एक-एक कर सभी अतिथियों का अभिनंदन किया। गांवों की तरफ से मेवाड़ परिवार को परंपरागत तलवार और अन्य उपहार भेंट किए गए। रस्मों के अनुसार तलवार भेंट करना वीरता और विश्वास का प्रतीक माना जाता है, जिससे यह संबंध और भी अधिक पवित्र और अटूट बनता है।
डॉ. लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने अपने संबोधन में कहा, “ये पांचों गांव अब रिश्तों की नई कहानी लिखेंगे। हम चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां इन संबंधों को जानें, समझें और निभाएं। अब फासले नहीं रहेंगे, रिश्ते और भी मजबूत होंगे।” उन्होंने स्पष्ट किया कि इस पहल का उद्देश्य सिर्फ एक रस्म अदायगी नहीं, बल्कि एक स्थायी सामाजिक और सांस्कृतिक संवाद स्थापित करना है।
राजपुरोहितों का आभार और संकल्प
पिलोवणी गांव से आए रिटायर्ड आईएएस अधिकारी श्याम सिंह राजपुरोहित ने इस मौके पर भावुक होकर कहा कि इन गांवों का सदियों से मेवाड़ के राजघराने से निकट संबंध रहा है। उन्होंने बताया कि पुराने समय में इन गांवों की बहन-बेटियां हर साल सिटी पैलेस में राखी भेजती थीं और इसके बदले महल से चूंदड़ी आती थी। लेकिन कई दशकों पहले यह परंपरा टूट गई थी। अब लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ के प्रयासों से इस टूटे हुए रिश्ते को फिर से जोड़ा जा रहा है। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि भावनाओं का गहरा बंधन है, जिसे हम आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखेंगे।”
300 साल पुरानी परंपरा क्यों टूटी थी?
इतिहासकार बताते हैं कि महाराणा प्रताप के समय हल्दीघाटी युद्ध में नारायण दास राजपुरोहित ने वीरगति प्राप्त की थी। उनकी वीरता और बलिदान के सम्मान में महाराणा ने उनके वंशजों को पाली जिले के पास घेनड़ी, पिलोवणी, वणदार, रूंगड़ी और शिवतलाव गांव जागीर के रूप में प्रदान किए थे। इसके बाद से इन गांवों का राजमहल से गहरा संबंध बना रहा। हर साल राखी भेजने और चूंदड़ी पाने की परंपरा चलती रही। लेकिन कुछ प्रशासनिक और सामाजिक कारणों से, महल की ओर से चूंदड़ी भेजनी बंद कर दी गई, जिससे गांवों की ओर से राखी भेजना भी धीरे-धीरे बंद हो गया। तब से एक अनकही दूरी बन गई थी, जो अब समाप्त हो रही है।
भावनाओं से भरा संदेश
राजपुरोहितों ने भी स्पष्ट किया कि अब किसी भी सूरत में यह रिश्ता फिर से टूटने नहीं देंगे। बहनों द्वारा राखी भेजने की परंपरा फिर से शुरू होगी और हर त्योहार पर एक-दूसरे से जुड़े रहने की भावना को बढ़ावा मिलेगा। श्याम सिंह राजपुरोहित ने कहा, “जो बीत गया, उस पर अफसोस करने की जरूरत नहीं है। हमें वर्तमान को संजोकर भविष्य को सुनहरा बनाना है।”
लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ ने भी कहा कि स्नेह और अपनत्व के इन रिश्तों को सिर्फ रस्मों तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि हर उत्सव, हर पर्व पर इसे जीवित रखा जाएगा। उन्होंने वादा किया कि आने वाले समय में सिटी पैलेस और इन पांचों गांवों के बीच संवाद और आदान-प्रदान लगातार चलता रहेगा।
ऐतिहासिक पहल की भविष्य की दिशा
इस पहल को मेवाड़ की गौरवशाली परंपराओं को पुनर्जीवित करने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का यह प्रयास ना सिर्फ सांस्कृतिक विरासत को संजोने का कार्य है, बल्कि युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का भी एक सशक्त माध्यम बन रहा है। इस पहल से यह संदेश भी जा रहा है कि इतिहास से जुड़े रिश्ते केवल किताबों तक सीमित नहीं होने चाहिए, बल्कि उन्हें वर्तमान में भी जिया जाना चाहिए।