शोभना शर्मा। राजस्थान विधानसभा में भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की अयोग्यता को लेकर कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। कांग्रेस का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा मीणा की सजा को बरकरार रखने के बावजूद, स्पीकर ने अब तक उनकी सदस्यता समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू नहीं की है, जो संविधान और कानून का उल्लंघन है।
20 साल पुराना मामला और कानूनी प्रक्रिया
कंवरलाल मीणा, जो वर्तमान में बारां जिले की अंता विधानसभा सीट से विधायक हैं, को 2005 में एक उपखंड अधिकारी को बंदूक दिखाकर धमकाने और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में दोषी ठहराया गया था। दिसंबर 2020 में, झालावाड़ की एडीजे अदालत ने उन्हें तीन साल की सजा सुनाई थी। मीणा ने इस फैसले को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 1 मई 2025 को हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी और सजा को बरकरार रखा। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने भी 7 मई को उनकी अपील खारिज कर दी और उन्हें दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया ।
कांग्रेस का आरोप: स्पीकर की निष्क्रियता
कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने आरोप लगाया है कि विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी जानबूझकर कार्रवाई में देरी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जब राहुल गांधी को 2023 में दोषी ठहराया गया था, तो उन्हें 24 घंटे के भीतर अयोग्य घोषित कर दिया गया था, लेकिन मीणा के मामले में, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के 12 दिन बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है ।
कानूनी प्रावधान और स्पीकर की भूमिका
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 191 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के अनुसार, यदि किसी विधायक को दो या दो से अधिक वर्षों की सजा होती है, तो वह स्वतः अयोग्य हो जाता है। इस स्थिति में, विधानसभा अध्यक्ष को केवल औपचारिक रूप से सदस्यता समाप्त करने की घोषणा करनी होती है। हालांकि, स्पीकर देवनानी ने कहा है कि उन्हें अदालत के आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त नहीं हुई है, इसलिए वे कानूनी सलाह ले रहे हैं और उचित प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं ।
कांग्रेस की चेतावनी और आगामी कदम
कांग्रेस ने स्पीकर को 24 घंटे का अल्टीमेटम दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि यदि मीणा की सदस्यता समाप्त नहीं की गई, तो वे कानूनी कार्रवाई और राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे । कांग्रेस का कहना है कि यह मामला न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों और विधानसभा की गरिमा के लिए भी खतरा है।