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जोजरी नदी प्रदूषण से गांवों में पानी की भयानक किल्लत

जोजरी नदी प्रदूषण से गांवों में पानी की भयानक किल्लत

मनीषा शर्मा। राजस्थान के जोधपुर जिले से बहने वाली जोजरी नदी के प्रदूषण ने अब सुप्रीम कोर्ट का ध्यान खींच लिया है। फैक्ट्रियों और सीवरेज का गंदा पानी सीधे नदी में छोड़े जाने से हालात इतने भयावह हो गए हैं कि आसपास बसे गांवों में पीने लायक शुद्ध पानी तक नहीं बचा है। इंसान ही नहीं, पशु-पक्षी भी इस जहरीले पानी को पीकर मर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राजस्थान सरकार और संबंधित एजेंसियों से जवाब मांगा है।

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती

मंगलवार को जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि जोजरी नदी में फैक्ट्रियों से निकलने वाला प्रदूषित पानी और कचरा डाला जा रहा है, जिससे अनगिनत गांव प्रभावित हैं। कोर्ट ने इस पर स्वत: संज्ञान केस दर्ज कराने का आदेश भी दिया। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि पानी प्रदूषण जैसे गंभीर मुद्दे पर किसी प्रकार की लापरवाही स्वीकार नहीं की जाएगी।

जोजरी नदी: राजस्थान की मौसमी धारा

जोजरी नदी राजस्थान की एक प्रमुख मौसमी नदी है। यह नागौर जिले के पंडालू गांव की पहाड़ियों से निकलती है और जोधपुर जिले के खेजलड़ा खुर्द गांव के पास लूणी नदी में मिलती है। लूणी-जोजरी का संगम क्षेत्र सदियों से जीवनदायिनी माना जाता था, लेकिन अब यह जहरीला तालाब बन चुका है।

फैक्ट्रियों और उद्योगों से बढ़ा संकट

पिछले कई दशकों से जोधपुर, बालोतरा, जालोर और पाली जिलों की टैक्सटाइल इकाइयां, स्टील रीरोलिंग यूनिट्स और अन्य फैक्ट्रियां अपना रासायनिक कचरा सीधे जोजरी नदी में डाल रही हैं। नतीजतन, नदी के किनारे बसे 50 से अधिक गांव गंभीर जल संकट और प्रदूषण का सामना कर रहे हैं। जिन गांवों में कभी लोग नदी का पानी पीते थे, अब वहां टैंकरों से पानी पहुंचाना पड़ रहा है।

गांवों और लोगों की दुर्दशा

बरसात के मौसम के बाद स्थिति और भी विकराल हो जाती है। चारों ओर काले पानी से भरे तालाब बन जाते हैं। मवेशी जब इस पानी को पीते हैं तो बीमार होकर मर जाते हैं। पक्षियों की मौतें भी लगातार बढ़ रही हैं। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि प्रदूषित पानी से न केवल उनकी सेहत खराब हो रही है, बल्कि खेती भी बर्बाद हो रही है। अनुमान है कि लूणी-जोजरी नदी के प्रदूषण से करीब 15 से 20 लाख लोग प्रभावित हो चुके हैं।

सीवरेज और इंडस्ट्रियल वेस्ट की दोहरी मार

राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के ताजा आंकड़े इस समस्या की गंभीरता को और उजागर करते हैं। जोधपुर शहर में प्रतिदिन लगभग 230 मेगा लीटर घरेलू अपशिष्ट निकलता है, जिसमें से सिर्फ 120 मेगा लीटर का ही ट्रीटमेंट हो पाता है। शेष 110 मेगा लीटर बिना किसी शोधन के सीधे नदी में चला जाता है। वहीं, औद्योगिक अपशिष्ट की मात्रा लगभग 20 मेगा लीटर प्रतिदिन है, लेकिन इसमें से भी सिर्फ 11 मेगा लीटर का ही शोधन होता है। शेष गंदा पानी पाइपलाइन नेटवर्क की अक्षमता और लापरवाही के चलते नदी में मिल जाता है।

जीव-जंतुओं और पर्यावरण पर असर

जोजरी और लूणी नदी का जहरीला पानी न केवल इंसानों के लिए खतरनाक है, बल्कि इससे पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ रहा है। पानी में घुलते केमिकल्स से जमीन की उर्वरता नष्ट हो रही है। पशुधन की मौतें ग्रामीण अर्थव्यवस्था को तोड़ रही हैं। पशु-पक्षियों की संख्या घटने से जैव विविधता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

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